उपनिषद क्या है? महत्व, प्रकार और महत्वपूर्ण सूत्र

आज हम इस लेख में आसान शब्दों में उपनिषद क्या है, प्रकार, इनका महत्व, और उपनिषदों को पढने और समझने की आसान विधि आपके साथ सांझा करेंगे। तो हमारे साथ अंत तक बने रहें।

उपनिषद क्या है

अहं ब्रह्मास्मि, सत्यमेव जयते, असदो मा सद्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय जैसे शब्द उपनिषदों से ही आये हैं। साथ ही स्वामी विवेकान्द का यह कथन की उठो जागो, जब तक लक्ष्य की प्राप्ति हो तब तक न रुको, उपनिषदों से ही निकला है, जी हाँ यहाँ तक की ईशावास्य इदं सर्वं महात्मा गांधी का सबसे प्रिय श्लोक था।

भारत हमेशा से ही विश्व के महान दार्शनिकों के लिए विशेष रहा है, क्योंकि यही पर उन्हें, वेदान्त, उपनिषद जैसे अमूल्य रत्न मिले, जो दुनिया में कहीं नहीं थे। पर अफ़सोस जिन उपनिषदों का लाभ दुनिया ने उठाया उससे आम भारतीय जनता हमेशा वंचित रही

चाहे बात हो भारत में स्वामी विवेकानन्द, महात्मा गांधी की या फिर विश्व में सुकरात, प्लेटो जैसे दार्शनिकों की उन सभी ने उपनिषद पढ़ें और उनका पूजन किया। पर हमारी इस अमूल्य धरोहर को जिस तरह हमने संजोकर रखा उतना ध्यान हमने इन्हें पढने और इनका मनन करने में नहीं लगाया।

उपनिषद क्या है?

उपनिषद हिन्दू धर्म के प्राचीनतम और सर्वोच्चतम ग्रन्थ हैं। हजारों वर्षों की लम्बी यात्रा के बाद अनेक ऋषि-मुनियों के ज्ञान से उपनिषद फलीभूत (प्राप्त) हुए हैं। अतः उपनिषद किसी व्यक्ति विशेष की रचना नहीं हैं, बहुत सूझ बूझ के बाद ऋषियों द्वारा जीवन में प्राप्त किया गहरा ज्ञान उपनिषदों में प्रकट होता है।

दूसरे शब्दों में गुरु और शिष्य के बीच बातचीत ही उपनिषद है, उपनिषदों की बातचीत उस शिष्य की है जो जीवन में हारा हुआ है जिसे समझ नहीं आता जीवन क्यों मिला है? ये मन क्या है? प्रकृति क्या है? और शिष्य की उन सभी जिज्ञासाओं, प्रश्नों का हल गुरु देते हैं जिसे एक ग्रन्थ के रूप में हम सभी उपनिषद के तौर पर जानते हैं।

उपनिषदों को श्रीमदभगवद गीता और वेदांत के आधार माना जाता है, यदि उपनिषद न हो तो इन दोनों ग्रन्थों का ज्ञान हमारे काम नहीं आ सकता। उपनिषदों को वेदांत भी कहा जाता है, आइये समझते हैं की किस तरह लम्बे समय बाद उपनिषद हमें आशीर्वाद के तौर पर मिले हैं।

ज्ञान की शुरुवात वेदों से शुरू होती है, और वेदों के मुख्यतया दो भाग हैं, जिनमें पहला भाग कर्मकांड है जिसमें मन्त्र, सहिन्ताएं जिसमें प्रकृति और देवी देवताओं का पूजन किया जाता है। इस भाग में अधिकांश चीजें ऐसी हैं जिन्हें अध्यात्मिक ग्रन्थ तो बिलकुल नहीं कहा जा सकता।

अब वेदों की यह प्रक्रिया आगे बढती है जिसमें ब्राहमण आते हैं, जहाँ तमाम तरह के कर्मकांड, विधियाँ, यज्ञ अनुष्ठान बतलाये जाते हैं, फिर धीरे धीरे बात और आगे बढते हुए गहरी होती चली जाती है अब ऋषि पाते हैं की समस्याओं की जड ये संसार नहीं है बल्कि मनुष्य के भीतर बैठा अज्ञान है।

अतः अब बात होने लगती है मनुष्य की आंतरिक स्तिथि की, और इस तरह यह पूरी वैदिक प्रक्रिया अंततः उपनिषदों के रूप में खत्म होती है। वेदों का दूसरा हिस्सा ज्ञानकाण्ड है जिसे उपनिषद कहा जाता है।

अब बात इतनी अलग हो जाती है की एक तरफ वेदों में प्रकृति को पूजा जा रहा था, देवताओं को प्रसन्न किया जा रहा था। वहीँ उपनिषदों में देवता और ईश्वर जैसा कुछ है ही नहीं वहां मात्र निराकार सत्य है।

संक्षेप में कहें तो उपनिषदों में मनुष्य के आंतरिक जगत की बात कही गई है, वहां मात्र दो की बात कही गई है आत्मा और अहंकार की।

अतः इस प्रकार उपनिषद हमें आइना दिखाते हैं और बताते हैं की अगर हम दुःख पा रहे हैं तो समस्या इस प्रकृति अर्थात संसार में नहीं है बल्कि हमारे भीतर बैठे अज्ञान और नासमझी की है।

उपनिषदों का महत्व | इनका पाठ क्यों जरूरी है?

ऐतिहासिक तौर पर देखने पर मालूम होता है की भारत ही नहीं दुनिया में वे लोग जो सच्चाई के चिंतक और साधक रहे हैं उनके लिये उपनिषद बेहद काम आये हैं।

हम जिन धर्मग्रन्थों को पूजते हैं और पढ़ते हैं चाहे रामायण हो, पुराण हो या भगवद्गीता हो, संतवाणी हो सभी में उपनिषदों के विचार देखेने को मिलते हैं।

अर्थात जिस तरह एक किसी घटना, कहानी से प्रेरित होकर बनाई गई फिल्म में हमें वैसे ही द्रश्य देखने को मिलते हैं जैसा उस घटना में वास्तव में होता है। उसी प्रकार उपनिषदों में जो बातें कही गई हैं। उन्हीं का असल वर्णन हमें रामायण, भगवद गीता जैसे महाकाव्यों में मिलता है।

जो ये बताने के लिए काफी हैं की इतने प्राचीनतम ग्रन्थ होने के बावजूद भी उपनिषदों का आशीर्वाद हमारे सिर पर आज भी बना हुआ है।

यही नहीं उपनिषदों के विचार और सिद्धांत हमें बौद्ध और जैन ग्रन्थों में भी देखने को मिलते हैं। पर चूँकि जितना एक इन्सान या घटना प्रसिद्ध नहीं हो पाती उससे अधिक उसी घटना पर बनाई गई फिल्म लोकप्रिय हो जाती है।

इसी तरह जनमानस के बीच उपनिषदों को पढ़ने वाले भाष्यकार और महापुरुष जितना प्रसिद्ध हुए उतनी लोकप्रियता उपनिषदों को नहीं मिल पाई। पर इससे उपनिषदों का मूल्य कम होने की बजाय और बढ़ जाता है।

आलम ये रहा है की भारत ही नहीं विश्व में जितने भी महान दार्शनिक हुए चाहे सर विलिय्म्म जोन्स, अब्राहम एंकेटिल, प्लूटो, सुकरात इत्यादि सभी के विचारों में उपनिषदों की छाप दिखाई पड़ती है, और  इनमे से कई लोगों ने न सिर्फ उपनिषदों को पढ़ा बल्कि उनका पूजन भी किया।

उन्होंने माना की भारत की धरोहर में सबसे अतुल्य, मूल्यवान चीज़ हैं ये, पर चूँकि जिस अमूल्य हीरे की चमक दुनिया के लोगों पर पड़ी। उसी चमक से भारतीय वंचित रह गए।

उपनिषद के प्रमुख सूत्र 

  1. अहं ब्रह्मास्मि ➥ “मैं ब्रह्मा हूँ” (ब्रह्मदारण्यक उपनिषद, प्रथम अध्याय, चतुर्थ ब्रहामण, श्लोक क्रमांक
  2. तत्वमसि ➥ ” वह ब्रह्मा तू है” (छान्दोग्य उपनिषद, अध्याय ६, अष्टम खण्ड, श्लोक क्रमांक ७)
  3. सत्यमेव ज्यात नानृतम सत्येन ➥ “सत्य की ही जीत होती है, असत्य की नहीं” (मुण्डक उपनिषद, तृतीय मुण्डक, प्रथम खंड, श्लोक ६)
  4. असतो मा सद्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय| मृत्योर्मामृतं गमय ➥ “मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो, मुझे अन्धकार से प्रकश की ओर ले चलो, मुझे मृत्यु से अमरत्व की ओर ले चलो”| (ब्रह्मदारण्यक उपनिषद, अध्याय २, तृतीय ब्रह्ममण, श्लोक २८)
  5. तत्व्मेव त्वमेव तत ➥ “वह तुम ही हो, तुम ही हो” (कैवल्योउपनिषद, श्लोक २६)
  6. ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदम पूर्णात पूर्णमुदच्यते ➥ “वह (अज्ञात ब्रह्मा) पूर्ण है, यह (प्रतीत ब्रहमांड) पूर्ण है; यह पूर्णता उस पूर्णता से उद्भूत हुई है” (शांतिपाठ, ईशावास्य उपनिषद)
  7. तत्सत्यं स आत्मा➥ “वही सत्य है, वही आत्मा है” (छान्दोग्य उपनिषद, अध्याय ६, खंड 7, श्लोक ७)
  8. नाहं कालस्य, अहमेव कालम➥ “मैं समय में नहीं हूँ, समय मुझमें है” (महानारायण उपनिषद, अध्याय २२ , श्लोक २७)

१०८ उपनिषदों की सूची |

  1. ईशावस्य उपनिषद
  2. केन उपनिषद
  3. कठ उपनिषद
  4. प्रश्न उपनिषद
  5. मुंडक उपनिषद
  6. मांडूक्य उपनिषद
  7. तैत्तिरीय उपनिषद
  8. ऐतरेय उपनिषद
  9. छांदोग्य उपनिषद
  10. बृहदारण्यक उपनिषद
  11. ब्रह्मा उपनिषद
  12. कैवल्य उपनिषद
  13. जाबाल उपनिषद
  14. श्वेताश्वतर उपनिषद
  15. हंस उपनिषद
  16. आरुणेय उपनिषद
  17. गर्भ उपनिषद
  18. नारायण उपनिषद
  19. परमहंस उपनिषद
  20. अमृतबिंदु उपनिषद
  21. अमृत नाद उपनिषद
  22. अथर्व-शिर उपनिषद
  23. अथर्व-शिख उपनिषद
  24. मैत्रायणी उपनिषद
  25. कौशीताकि उपनिषद
  26. ब्रहज्जबाल उपनिषद
  27. नृसिंहतापनी उपनिषद
  28. कालाग्निरुद्र उपनिषद
  29. मैत्रेयि उपनिषद
  30. सुबाल उपनिषद
  31. क्षुरिक उपनिषद
  32. मांत्रिक उपनिषद
  33. सर्वसार उपनिषद
  34. निरालंब उपनिषद
  35. शुक-रहस्य उपनिषद
  36. वज्रसूचि उपनिषद
  37. तेजोबिंदु उपनिषद
  38. नादबिंदु उपनिषद
  39. ध्यानबिन्दु उपनिषद
  40. ब्रह्माविधा उपनिषद
  41. योगतत्त्व उपनिषद
  42. आत्मबोध उपनिषद
  43. परिव्रात उपनिषद
  44. त्रि-षिखि उपनिषद
  45. सीता उपनिषद उपनिषद
  46. योगचूडामणि उपनिषद
  47. निर्वाण उपनिषद
  48. मंडलब्राहमण उपनिषद
  49. दक्षिणामूर्ति उपनिषद
  50. शरभ उपनिषद
  51. स्कन्द उपनिषद
  52. महानारायण उपनिषद
  53. अद्वयतारक उपनिषद
  54. रामरहस्य उपनिषद
  55. रामतापणि उपनिषद
  56. वासुदेव उपनिषद
  57. मुद्गल उपनिषद
  58. शांडिल्य उपनिषद
  59. पैगल उपनिषद
  60. भिक्षुक उपनिषद
  61. महत उपनिषद
  62. शारीरक उपनिषद
  63. योगशिखा उपनिषद
  64. तुरीयातीत उपनिषद
  65. संन्यास उपनिषद
  66. परमहंस उपनिषद
  67. अक्षमालिक उपनिषद
  68. अव्यक्त उपनिषद
  69. एकाक्षर उपनिषद
  70. अन्नपूर्ण उपनिषद
  71. सूर्य उपनिषद
  72. अक्षि उपनिषद
  73. अध्यात्म उपनिषद
  74. कुण्डिक उपनिषद
  75. सावित्री उपनिषद
  76. आत्मा उपनिषद
  77. पाशुपत उपनिषद
  78. परब्रहमा उपनिषद
  79. अवधूत उपनिषद
  80. त्रिपुरातपनि उपनिषद
  81. देवी उपनिषद
  82. त्रिपुर उपनिषद
  83. कठरुद्र उपनिषद
  84. भावन उपनिषद
  85. रूद्र-ह्रदय उपनिषद
  86. योग कुंडलिनी उपनिषद
  87. भस्म उपनिषद
  88. रुद्राक्ष उपनिषद
  89. गणपति उपनिषद
  90. दर्शन उपनिषद
  91. तारसार उपनिषद
  92. महावाक्य उपनिषद
  93. पंच-ब्रह्मा उपनिषद
  94. प्राणाग्नि होत्र उपनिषद
  95. गोपाल-तपणि उपनिषद
  96. कृष्ण उपनिषद
  97. याज्ञवल्क्य उपनिषद
  98. वराह उपनिषद
  99. शात्यायनि उपनिषद
  100. हयग्रीव उपनिषद
  101. दत्तात्रेय उपनिषद
  102. गारुड उपनिषद
  103. कलि-संटारण उपनिषद
  104. जाबाल (सामवेद) उपनिषद
  105. सौभाग्य उपनिषद
  106. सरस्वती-रहस्य उपनिषद
  107. बृहच्च उपनिषद
  108. मुक्तिका उपनिषद

उपनिषद जिनपर आचार्य प्रशांत की व्याख्या उपलब्ध है!

एक तरफ आज की युवा पीढ़ी धर्म को अन्धविश्वास मानती है, और उससे दूर भागती है। तो दूसरी तरफ आज के युग में आचार्य प्रशांत हमारे धर्म ग्रन्थों का शुद्धतम अर्थ सरल और सहज शब्दों में हमारे समक्ष लाकर हमें धर्म की ओर उन्मुख कर हमारे जीवन में फैले अन्धकार और अज्ञान को दूर करने का कार्य कर रही हैं।

आज उनकी शिक्षाओं से लाखों लोगों का जीवन बदला है, प्रस्तुत है उन सभी वेदान्तिक ग्रन्थों के नाम जिनपर आचार्य प्रशांत की व्याख्या उपलब्ध है।

  1. ईशावास्य उपनिषद
  2. कठ उपनिषद
  3. केन उपनिषद
  4. मुण्डक उपनिषद
  5. माण्डुक्य उपनिषद
  6. तैत्तिरीय उपनिषद
  7. ब्रहदारन्यक उपनिषद
  8. श्वेताश्वतर उपनिषद
  9. नारायण उपनिषद
  10. अमृतबिन्दु उपनिषद
  11. मैत्रेयि उपनिषद
  12. सर्वसार उपनिषद
  13. निरालम्ब उपनिषद
  14. वज्रसूचि उपनिषद
  15. अध्यात्म उपनिषद
  16. अवधूत उपनिषद
  17. देवी उपनिषद
  18. दर्शन उपनिषद
  19. आत्मपूजा उपनिषद

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अंतिम शब्द

तो साथियों इस पोस्ट को पढने के बाद उपनिषद क्या है? इनका महत्व, आपको समझने में मदद मिली होगी, इस लेख को पढने के पश्चात आपके मन में उपनिषदों के सम्बन्ध में कोई प्रश्न आया है तो हमें कमेन्ट बॉक्स में बताएं, साथ ही जानकारी पसंद आई है तो शेयर कर दें।

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