असली उपवास क्या है? जानें उद्देश्य और अन्न त्याग का महत्व

नवरात्रि तथा अनेक विशेष तिथियों के मौके पर हिन्दू धर्म के लोग अक्सर उपवास करते हैं और दूसरों को भी इसके लिए प्रोत्साहित करते हैं पर वास्तव में उपवास क्या है? क्यों उपवास हर इन्सान के लिए जरूरी है, हमें मालूम नहीं होता।

उपवास क्या है

प्रायः हमारे लिए उपवास से आशय एक ऐसे दिन से होता है जिस दिन हम अन्न-अनाज का सेवन नहीं करते, यहाँ तक की कुछ उपवासों में पानी भी त्याज्य होता है। पर क्या उपवास का उद्देश्य सिर्फ खाली पेट रहकर देवताओं को प्रसन्न करना है?

या फिर उपवास करने के पीछे कुछ और बड़ी वजह है? जी हाँ, समाज में उपवास के प्रति जो छवि मन में लोगों के बैठी हुई है, आज हम उसकी सच्चाई साँझा करेंगे।

ताकि आपको उपवास का वास्तव में जिन्दगी में लाभ हो, क्योंकि कई लोग जिन्दगी भर उपवास करते हैं लेकिन जीवन में उनके डर, तनाव, हिंसा बनी रहती है। पर जो व्यक्ति वास्तव में अपने हृदय में राम को स्थान देना चाहता है, और निडर और सच्चा जीवन जीना चाहता है, उसे मालूम होना चाहिए की

उपवास का क्या अर्थ है? यह क्यों जरूरी है?

उपवास का अर्थ है रहने वाला अतः उपवास से आशय सच्चाई के पास रहने से है। जब हमारा हृदय राम/ आत्मा/सत्य के करीब हो तो मनुष्य की यह स्तिथि उपवास कहलाती है।

देखिये सच्चाई कहीं एक विशिष्ठ जगह पर तो ठिकाना नहीं रखती, सत्य तो हर जगह लगातार मौजूद है। अतः हमारे भीतर जो “मैं” भाव है, जिसे अहंकार कहा जाता है वो तमाम जगह निवास करता है।

कभी वह पैसों पर तो कभी किसी के शरीर पर ध्यान देकर वास करता है। अतः जब यही अहम दुनिया की किसी भी चीज़ से ज्यादा सच्चाई को प्राथमिकता देता है तो फिर कहा जाता है की वो हरी/आत्मा के साथ उपवास कर रहा है।

अब बात आती है, उपवास की उपयोगिता क्या है? यह क्यों जरूरी है। देखिये उपवास अत्यंत जरूरी है क्योंकि अगर आप सच्चाई भरा जीवन नहीं जी रहे हैं, आप सच के साथ नहीं है तो जाहिर है आप झूठा जीवन जी रहे हैं।

आप उन चीजों को भी सच मान रहे हैं जो कुछ समय बाद मिट जानी हैं तो जाहिर है झूठा जीवन जीने का फल आपको क्या मिलेगा? जब आपके भ्रम टूटेंगे, आपकी उम्मीदों का नाश होगा तो आप दुखी होंगे।

इसलिए जो उपवासी नहीं है, फिर वो कारावासी हो जाते हैं। यानी ऐसा व्यक्ति संसार से लोभ लेकर तमाम चीजों को जो सच मानकर उन्हीं में अपना ध्यान लगाये रखता है और उन्हीं को जीवन में पाने की कोशिश करता है ताकि उसे सुख/आनंद मिल सके।

पर ऐसा कभी हो नहीं पाता क्योंकि आनंद मात्र सच्चाई में है, इसलिए राम/ सत्य के करीब रहने का यह फायदा है की आप जिन्दगी में उन फालतू की चीजों और बेवकूफियों को करने से बच जाते हैं, जो प्रायः झूठे लोग करते हैं।

उपवास का अन्न और जल त्यागने से क्या सम्बन्ध है?

कई लोगों के लिए उपवास की परिभाषा कुल इतनी है की सांझ ढलने तक अन्न न खाना, जल ग्रहण न करना इत्यादि। पर चूँकि हमने समझा की उपवासी होने का असल अर्थ क्या है?

अतः चूँकि मनुष्य सत्य के निकट आ पाए, इसलिए फिर ज्ञानियों ने कुछ विधियाँ बनाई जैसे उन्होंने कहा की चलो तुम वर्ष में या माह में इतने दिन अन्न बिलकुल ग्रहण नहीं करोगे। ताकि आप स्वयं को अनुशाषित रख सकें।

उपवास रखना बिलकुल फायदेमंद है लेकिन चूँकि यह मात्र एक विधि है, इसका अर्थ यह बिलकुल नहीं की जो माह में सबसे अधिक उपवास रखता हो उसके हृदय में राम हो।

क्योंकि अगर उपवास के दौरान यदि आपके मन में अन्न का ख्याल नहीं आता। पर धन, सम्मान या लोभ का ख्याल आता है तो ऐसे में आपने वहीँ वास कर लिया न जिसकी तरफ आपका मन आकर्षित था।

अतः यह बिलकुल जरूरी नही की जो नियमित व्रत रखता हो उसका मन शुद्ध हो, और वह सत्यनिष्ठ होकर जीवन जियें, वास्तव में अन्न का त्याग करना भी बहुत बड़ी बात है उसके लिए संयम की जरूरत होती है। लेकिन यह विधि अपने आप में पूर्ण नहीं है।

यह बिलकुल हो सकता है की कोई व्यक्ति व्रत न रखे, उपवास न रखे लेकिन भीतर ही भीतर उसका जीवन राम को सच्चाई को समर्पित हो, वह कुछ पाने के लिए नहीं बल्कि सच्चाई के खातिर निस्वार्थ भाव से कर्म करे।

तो संक्षेप में कहें तो उपवास की उपयोगिता है, आपको कुछ हद तक अनुशासित करने के लिए लेकिन उपवासी आप तभी कहलायेंगे जब आपका जीवन सच्चाई से केन्द्रित होकर चलेगा।

अन्न त्याग करने से आगे बढ़ें, तब उपवास है

ज्ञानियों ने लोगों को यह विधि इसलिए दी थी ताकि उनके हृदय में संसार के प्रति जो लगातार आकर्षण बना रहता है वो कम हो और वह राम के करीब आयें।

और यह विधि इसलिए दी थी ताकि इसका पालन करते-करते एक दिन हम सत्य को ही समर्पित हो जाएँ। हम फिर मन के कहने पर नहीं सच्चाई के कहने पर जीवन जियें। पर दुर्भाग्यवश लोग इस पहले कदम पर ही आकर अटक जाते हैं।

देखा है कई लोगों की उम्र बीत जाती है, वह व्रत तब भी करना जारी रखते हैं लेकिन उनके असल जीवन को देखा जाएँ तो उसमे कहीं भी आपको राम के गुण नहीं मिलते। हमारे परिवारों में भी ऐसा ही होता है की सिर्फ अन्न त्याग देने को ही हम सर्वश्रेष्ठ समझते हैं।

पर समझिएगा ये मात्र पहला कदम है जीवन में सत्य के निकट आने का, इसके अलावा भी मनुष्य को बहुत कुछ त्यागना पड़ता है जैसे सत्य तक आने के लिए, जैसे सही काम को करने में मनुष्य को अक्सर डर लगता है तो मनुष्य को डर त्यागना पड़ता है।

सही काम में अक्सर मन विरोध करता है और लालच देकर उस काम को रोकने के लिए विवश करता है, अतः सच्चाई के खातिर हमें लालच को भी त्यागना पड़ता है।

इस तरह डर, लालच, कामवासना, कामनाओं पर विजय पाकर जो मनुष्य जीवन में आवश्यक कर्म को करता है तब यह माना जाता है की अब उसके ह्रदय में राम बसे हैं और वो अब मन पर नहीं हृदय से जीवन जीता है।

उपवासी बनो | कारावासी नहीं

सही काम में व्यक्ति हो आता है उपवासी

देखिये अभी तक हमने सही कर्म की चर्चा की और सच्चाई भरा जीवन जीने की बात की, तो जब मनुष्य को जीवन में कुछ ऐसा दिख जाता है, समझ आ जाता है की यही कर्म करना इस समय देश दुनिया के लिए सबसे जरूरी है तो फिर उस काम से ही उसे प्रेम हो जाता है।

अब काम के प्रति प्रेम इतना होता है की कई बार वह उस काम को करते हुए इतना डूब जाता है की वह भूख प्यास तो क्या अपने उन सभी निजी कार्यों को भी भूल जाता है जो उसके लिए जरूरी थे।

अतः एक उपवासी व्यक्ति के जीवन में फिर निडरता आ जाती है, शांति आ जाती है और फिर वह निस्वार्थ भाव से कर्म में उतर जाता है।

अब बताइए ऐसा इंसान जिसने अपना सम्पूर्ण दिन, माह या साल ही हार्दिक कार्य को दिया हो फिर उसके लिए एक दिन का अन्न जल का त्याग कितना महत्व रखेगा?

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अंतिम शब्द

तो साथियों इस आशा के साथ की अब आपको उपवास क्या है? और जीवन में अन्न जल त्यागकर उपवास करने की इस विधि की सच्चाई और उपयोगिता आपको पता चल चुकी होगी। प्रस्तुत लेख में दी गई जानकारी आपके लिए फायदेमंद साबित हुई है तो कृपया इस लेख को अधिक से अधिक सांझा करना बिलकुल मत भूलियेगा।

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