सनातन धर्म वैदिक रहा है, परंतु अधिकांश लोगों से पूछ जाए वेद क्या है? प्रमुख वेद कौन से हैं? हिन्दू होने के बावजूद उन्हें इस प्रश्न का सीधा और सटीक उत्तर मालूम नहीं होता।
वेदों के बारे में इसलिए भी समझना बेहद आवश्यक हो जाता है क्योंकि हिन्दू धर्म के सबसे प्राचीनतम ग्रन्थों में वेद आते हैं।
और वेदों से शुरू हुई ज्ञान की धरा से अंततः हमें वेदान्त, उपनिषद जैसे महान धर्म ग्रन्थ मिले जिन्हें न सिर्फ भारतीयों ने पूजा, पश्चिम के देशों ने भी इनके सामने सर झुकाकर आदर किया।
लेकिन अक्सर वेद शब्द आते ही हमारे मस्तिष्क में किसी पौराणिक शास्त्र या ग्रन्थ की छवि दिमाग में उभरने लगती है, पर वेद क्या महज किसी विशेष तरह की पुस्तकों का संग्रह है या फिर वेद का अर्थ इससे अधिक ऊँचा और महत्वपूर्ण है।
महान ऋषि मुनियों के वर्षों का ज्ञान वेदों में निहित है, और उनका आशीर्वाद आपको भी मिले इसके लिए आपको वेद शब्द को जरा बारीकी से समझना होगा ताकि आपको वेदों का सच्चा अर्थ मालूम हो सके तो आइये जानते हैं।
वेद क्या है? वेदों का महत्व
वेद शब्द की उत्पत्ति विद धातु से हुई है जिसका अर्थ है जानना,बोध। और आत्मा का ही दूसरा नाम होता है बोध, अतः आत्मा की अभिव्यक्ति को वेद कहा जाता है! और चूँकि आत्मा हर काल और हर जगह मौजूद है इसलिए वेदों को शाश्वत कहा गया है! प्राचीन काल से वर्तमान तक वेद निरंतर उपज रहे हैं।
सरल शब्दों में समझें तो जब मन अचल, शांत और स्वच्छ होता है तो इसी अवस्था को आत्मा कहकर सम्बोधित किया जाता है! अतः आत्मा से निकले हुए प्रत्येक वाक्य या शब्द को वेदों की संज्ञा दी जा सकती है।
इससे आप यह समझ सकते हैं की मात्र कुछ पौराणिक किताबों या ग्रन्थों का नाम वेद नहीं है, बल्कि आत्मस्थ व्यक्ति के मुख से निकली प्रत्येक बात वेद है।
जो कुछ भी सत्य से उपजे उसका नाम वेद है, इससे आप समझ पा रहे होंगे की अष्टावक्र गीता, उपनिषद बाइबिल इत्यादि सभी वेदों की श्रेणी में आते है लेकिन वेद चूँकि किसी पुस्तक या समय विशेष में कही गई बात नहीं है अतः वेद शाश्वत हैं।
निर्मल मन से जो कुछ भी कहा जाए सो वेद है! सत्य की गूँज जहाँ कही भी सुनाई दे यही वेद है! अतः संक्षेप में कह सकते हैं की पौराणिक ग्रन्थ निश्चित रूप से वेद हैं लेकिन आज के समय में जहाँ कही सत्य मुखरित हो उसे भी हमें वेद ही मानना चाहिए।
वेद कितने वर्ष पुराना है?
विश्व के प्राचीनतम ग्रन्थ वेदों की उत्पत्ति आज से 5000 वर्ष पहले हुई थी।
वेदों की उत्पत्ति कैसे हुई?
वेदों की उत्पत्ति एक बड़े समयकाल में हुई, शुरुवात में मनुष्य अज्ञानी था, प्रकृति के बारे में उसका ज्ञान सीमित और अधूरा था अतः उसके लिए प्रकृति ही सर्वस्व थी! उसे लगता था वह प्रकृति का दास है और प्रकृति को पूजकर ही वह जीवन यापन कर सकता है।
अतः वेदों के पहले भाग में ऋषियों की वाणी से मुखरित ज्ञान के रूप में हमें कर्मकांड की वह सभी विधियाँ, मन्त्र जाप देखने को मिलते हैं जिनका पालन करके मनुष्य देवताओं और प्रकृति का आशीर्वाद प्राप्त कर सकता था।
पर बात थोडा आगे बढ़ी और ऋषियों और ज्ञानीजनों को यह अहसास हुआ की मनुष्य के दुःख का कारण वह स्वयं है, उसे प्रकृति से डरने की आवश्यकता नही है अतः फिर वेदों का ही एक और भाग ज्ञानकाण्ड के रूप में हमारे समक्ष आया।
जिसमें मन, आत्मा और प्रकृति की बात कही गई है! और आगे चलकर वेदों का ज्ञानकाण्ड हमें उपनिषदों और भगवदगीता में देखने को मिलता है।
वेदों का दूसरा नाम क्या है?
वेदों को अपौरुषेय कहा गया है, इन्हें किसी पुरुष/ स्त्री या फिर ईश्वर द्वारा इन्हें नहीं रचा गया है! क्योंकि जितना ज्ञान मन्त्रों और श्लोकों के रूप में हमें वेदों में मिलता है उससे यह साफ़ जाहिर होता है की किसी ऋषि मुनि द्वारा इसकी कल्पना तक करना मुश्किल है।
इसलिए वेद हजारों सालों की लम्बी यात्रा के बाद हम तक पहुंचे हैं! वेद कालातीत हैं यानी समय से भी आगे के हैं इनमें कही गई बातें आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितना वह आदिकाल में थी।
वेद की विशेषताएं लिखिए
1. ज्ञान की शुरुवात हुई वेदों से।
आज हम मनुष्य को एक शिक्षित, सभ्य प्राणी के तौर पर देखते हैं, लेकिन हमारी विकास यात्रा लाखों वर्षों की रही है। शुरुवात में मनुष्य जानवर ही था, लेकिन धीरे धीरे इंसान ने खेती करना शुरू किया और मनुष्य के सोचने समझने की शक्ति विकसित होने लगी।
वेदों के आरम्भ तक आते आते ऋषियों को अहसास हुआ की जो ज्ञान अभी तक हमने संचित किया है, और जो हमने जाना है उसे दूसरों तक भी सहेज कर पहुंचाना चाहिए। इसके लिए वेद रचे गये जिसमें ब्रहामंड, ज्योतिष, विज्ञान जैसे कई विषयों का ज्ञान शामिल किया गया।
और इस प्रकार वेदों को विश्व के सबसे प्राचीनतम ग्रन्थों की संज्ञा दी गई।
सौभाग्य से वेदों में निहित यह ज्ञान हजारों वर्षों के बावजूद आज भी काम आता है, हालाँकि आज टेक्नोलॉजी आगे पहुँच गई है लेकिन वेदों में निहित इस ज्ञान ने मनुष्य को आगे बढ़ने में और नयी खोज करने में बेहद मदद की।
2. वेद शाश्वत हैं।
प्रकृति में सभी चीजें जन्म लेने के पश्चात एक समय में नष्ट हो जाती हैं, लेकिन जो चीजें समय के पार की हों उन्हें कालातीत कहा जाता है। हजारों वर्ष बीत चुके हैं लेकिन वेदों में मौजूद ज्ञान और उसमें लिखी अनेक बातें आज भी मनुष्य के लिए उतनी ही उपयोगी हैं जितनी पहले थी।
खासकर वेदों का ज्ञानकाण्ड जिसमें मन, आत्मा और प्रकृति की बात कही गई है, वह बातें आज भी इन्सान को उसकी सच्चाई बताकर उसे अन्धकार से रोशनी की तरफ बढ़ने के लिए प्रेरित करती है।
और ऐसा नहीं है की वेद सिर्फ हिन्दू धर्म के लोगों के लिए उपयोगी हैं बल्कि वास्तव में वेदों में निहित ज्ञानकाण्ड विश्व में मौजूद प्रत्येक इंसान के लिए उपयोगी है।
2. उच्चतम शीर्षतम ग्रन्थों का आधार हैं वेद
वेदों की रचना के बाद ही उपनिषदों की रचना हुई, जिसमें गुरु, शिष्य की बातचीत का ऐसा अद्भुत संवाद देखें को मिलता है जो हमें एक ऊँचा जीवन जीने के लिए फायदेमंद है।
और उपनिषदों का ज्ञान कितना प्रभावी और फायदेमंद हुआ आप इसी बात से समझ सकते हैं की दूसरे धर्म के अनुयाई होने के बावजूद विश्व के महान दार्शनिकों ने उपनिषदों को पूजा और उनका सम्मान किया।
यही नहीं श्रीमदभगवदगीता जो की हिन्दुओं का श्रेष्ठतम ग्रन्थ कहा जाता है उसकी रचना भी वेदों की उत्पत्ति के बाद हुई! पहले वेद फिर उपनिषद और उसके बाद भगवद्गीता गीता में निहित ज्ञान हमें वेदों के ज्ञानकाण्ड की महिमा का बखान करता है।
3. सनातन धर्म का ज्ञान
एक सनातनी होने का अर्थ है आपको अपने शीर्ष धर्मग्रन्थों का ज्ञान हो, और वेद, उपनिषद और भगवदगीता पढने और फिर उनमे कही गई बातों को जीवन में लागू करने का मतलब है की आप वास्तव में सनातनी हैं।
पर यदि आपको वेदों से और हमारे धर्मग्रथों से कोई प्रयोजन नहीं और आप स्वयं को सनातनी कहते हैं तो ऐसा करके आप स्वयं को ही धोखे में डाल रहे हैं।
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वेदों का सार
वेदों का सार है वेदांत, जिसे वेदों की आत्मा भी कहा जा सकता है! क्योंकि वेदांत ही वास्तव में वो पूँजी है जो हमें धर्म की महत्वता, धर्म के प्रतीकों के बारे में और हमारी मूल समस्या से हमें अवगत कराती है!
उपनिषद, भगवद गीता जैसे वे सभी धर्मग्रन्थ जिनमें आत्मा, अहंकार का वर्णन किया जाता है वे सभी वेदान्तिक ग्रन्थ हैं! अतः वे लोग जो सनातन धर्म को जानना चाहते हैं, इससे सीखना चाहते हैं उनके लिए वेदांत को पढना बहुत जरूरी है!
अन्यथा धर्म के नाम पर कई तरह के अन्धविश्वास जो आजकल बहुत प्रचलित हैं उनको ही आप धर्म मान लेंगे, इससे आप समझ सकते हैं की बाकि सभी धर्म ग्रन्थ जिनमें कर्मकांड और तमाम तरह की पूजा विधि की बात कही जाती है और अहम् और आत्मा के विषय से उन्हें कोई लेना देना नहीं होता उन्हें धार्मिक ग्रन्थ नही कहा जा सकता!
वेद का अर्थ क्या है?
वेद का अर्थ बोध यानि जानने से है। अतः जब कभी भी वेद शब्द को उपयोग में लाया जाता है उससे आशय ज्ञान से होता है।
वेद दुनिया के सबसे प्राचीन और पावन ग्रन्थों की सूची में प्रथम स्थान पर आते हैं, कहा जाता है विश्व में जहाँ कहीं शोधकार्य और आविष्कार हुए या मनुष्य के विचारों ने ऊँचाइयों को छुआ उन्हें वेदों से प्रेरणा मिली!
वेदों के रचयिता कौन है?
वेद किसी एक व्यक्ति विशेष की रचना नहीं हैं, न ही इन्हें किसी एक ऋषि द्वारा रचा गया है! वेदों की रचना सैकड़ों हजारों वर्षों में हुई है! अतः वेदों में निहित ज्ञान का श्रेय किसी विशिष्ट व्यक्ति को नहीं दिया जा सकता!
चारों वेदों में क्या लिखा है? चारों वेद कौन कौन से हैं?
वेदों के चार प्रकार हैं, जिनमें अथर्ववेद, सामवेद, यजुर्वेद और ऋग्वेद शामिल हैं, इन चारों भागों में संसार के विभिन्न क्षेत्रों जैसे ब्रह्मांड, ज्योतिष, ईश्वर, गणित, रसायन, औषधि, प्रकृति, खगोल, भूगोल, धार्मिक नियम, इतिहास, रीति-रिवाज इत्यादि अनेक विषय शामिल हैं!
1. ऋग्वेद:- सबसे प्राचीनतम और प्रथम ग्रन्थों में शामिल है, वेदों के इस प्रकार में सैकड़ों मन्त्र, सूक्त संख्या शामिल हैं, ऋग्वेद में ईश्वर की आराधना पर बल दिया गया है, अतः ऋग्वेद का प्रमुख उद्देश्य ज्ञान प्राप्त करना है!
2. यजुर्वेद:- वेदों के इस प्रकार को पढने पर हमें यज्ञ और कर्मकांड के बारे में ज्ञात होता है, वेदों के इस हिस्से में बलिदान का भी वर्णन किया गया है!
3. सामवेद:- इसका प्रमुख उद्देश्य उपासना है, संगीत शिक्षा पाने के लिए वेदों के इस प्रकार की रचना की गई इसमे 1800 से अधिक संगीतमय मन्त्र शामिल हैं!
4. अथर्ववेद:- यहाँ गुण, धर्म इत्यादि विषयों पर हजारों मन्त्र निहित हैं!
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अंतिम शब्द
तो साथियों इस पोस्ट को पढने के बाद वेद क्या है? वेदों का महत्व आप भली भाँती समझ गये होंगे, इस लेख को पढने के बाद यदि आपके मन में कोई प्रश्न है तो कमेंट बॉक्स में बताएं साथ ही जानकारी पसंद आई हो तो शेयर भी कर दें!