क्या यज्ञ का उद्देश्य अपनी मनोकामना पूरी करने हेतु देवताओं को खुश करना है? यज्ञ में अग्नि में घी और लकड़ी क्यों जलाई जाती है यह हम तभी समझेंगे जब हमें यज्ञ क्या है? इसका वास्तविक उद्देश्य मालूम होगा।
भारत में यज्ञ हवन करने की परंपरा काफी पुरानी रही है, अपनी कामनाओं की पूर्ति हेतु आज भी परिवार के सदस्यों द्वारा मिलकर घरों में यज्ञ किया जाता है।
पर हिंदू धर्म में यज्ञ की यह परंपरा जितनी पवित्र और लाभकारी मानी गई है, उतना ही अंधविश्वास और यज्ञ से जुड़ी भ्रांतियां लोगों के बीच प्रसिद्ध हैं।
कई लोग जो अक्सर विशेष मौके पर घर में सुख शांति लाने के उद्देश्य से यज्ञ करते हैं, उनसे पूछा जाए यज्ञ का वास्तविक उद्देश्य क्या है? वो सीधा और सटीक उत्तर नहीं दे पाते। आइए जानते हैं।
यज्ञ क्या है? यज्ञ का असल अर्थ क्या है?
यज्ञ का तात्पर्य आहुति देने से हैं, अर्थात अपने जीवन में अपने सभी संसाधनों को किसी ऐसे परम लक्ष्य को समर्पित कर देना जिससे व्यक्तिगत अहंकार कम हो अथवा उसका नाश हो।
देखिये, इंसान पूरा जीवन ख़ास उद्देश्य के लिए कर्म करता है, हर काम के पीछे उसकी यही चाहत होती है की उसे ख़ुशी और आनंद मिल सके। पर दुर्भाग्यवश इस संसार में कई तरह की चीजों को पाने के बाद भी उसका मन शांत नहीं होता।
अतः जीवन में वास्तविक शांति और आनन्द पाना तभी सम्भव है जब हम कर्म अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं की खातिर नहीं बल्कि परमात्मा (अपने स्वार्थ से बड़े लक्ष्य) को पाने के लिए करें।
अतः जब इंसान अपनी समझ से किसी ऐसे कार्य को लक्ष्य बना लेता है जो करना इस समय बेहद जरूरी है, तो उस लक्ष्य को पाने में अपना सर्वस्व न्योछावर कर देना ही वास्तव में यज्ञ है।
अतः परम्परिक रूप से हम जो यज्ञ करते हैं, वहां अग्नि में घी और लकड़ी जलाने का अर्थ होता है की हम अपनी मूल्यवान वस्तु की आहुति दे रहे हैं। पर ऐसा यज्ञ सिर्फ प्रतीक मात्र है।
यज्ञ वास्तव में तब सफल होता है जब आप वास्तविक जिन्दगी में भी अपनी सबसे पसंदीदा वस्तु, संसाधनों को उस कार्य में झोंक दें जो आपका परम लक्ष्य हो।
यज्ञ का वास्तविक उद्देश्य क्या है?
यज्ञ का प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति के अहंकार को हल्का करना है, यज्ञ से आशय ऐसे कर्म से है जिसे करने का उद्देश्य कुछ पाकर चीजों को इकट्टा करना नहीं है। बल्कि ऐसा कर्म करना जिसमें पाने की बजाय आप अपनी प्रिय वस्तु की आहुति दे दें वह यज्ञ कहलाता है।
इसलिए साधारण तौर पर जिस यज्ञ हवन को हम देखते हैं वहां पर देने का रीति-रिवाज होता है न, यज्ञ में आयोजन में बैठने पर आपके पास जो कुछ कीमती होता है फिर चाहे धन, घी इत्यादि आवश्यक चीजें उसे आप अग्नि को समर्पित कर देते हैं।
इसी प्रकार जब व्यक्ति किसी ऊँचे यानी श्रेष्ट कार्य को अपना सर्वस्व अर्पित करता है तो उसकी जिन्दगी ही यज्ञ बन जाती है। अब आप समझ सकते हैं की वास्तव में यज्ञ करना कितनी ऊँची चीज़ है, और मन में कितना दृढ संकल्प और पवित्रता चाहिए होती है जीवन में यज्ञ करने के लिए।
अन्यथा हम लोग जो यज्ञ को महज एक पूजा पाठ की तरह रीती रिवाज मानते हैं, पर वास्तव में यज्ञ इंसान की हस्ती को मिटा देता है,उसके भीतर के अहंकार को समाप्त कर उसका जीवन बदल देता है।
गीता में श्री कृष्ण के अनुसार यज्ञ क्या है?
गीता के अनुसार यज्ञ का दूसरा नाम है निष्काम कर्म
महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण श्रीमदभगवद गीता में अर्जुन से कहते हैं की मनुष्य को संसार में रहते हुए हर पल कर्म तो करना पड़ता है, पर जो व्यक्ति निष्काम भाव से कर्म करता है। वह सुख दुःख, लाभ हानि, मान अपमान के बंधन से बाहर आ जाता है।
क्योंकि ऐसा व्यक्ति स्वयं के लिए कर्म नहीं करता, अतः कुछ पाने की आशा या लालच उसके मन में नहीं होता वह तो बस अपने कर्म में डूबा रहता है।
तो हे अर्जुन तुम सभी कर्मों को यज्ञ समझकर करो, अपने परम लक्ष्य को अग्नि मानकर जब आप अपना सबकुछ उसमे अर्पित कर देते हैं तो वह आपको भीतर से स्वच्छ कर देती है। जिस प्रकार आप अग्नि में जो कुछ डालते हैं वो उसे साफ़ कर देती है, मिटा देती है।
इसी प्रकार कर्मों को यज्ञ की भांति करने वाले मनुष्य का मन निर्मल हो जाता है ऐसे व्यक्ति का मन देवतुल्य हो जाता है। और फिर उसे संसार में शान्ति पाने हेतु इधर उधर दौड़ने भागने की आवश्यकता नहीं होती।
अतः हे अर्जुन कर्म इस उद्देश्य से करो की तुम्हें पाना कुछ नहीं है लेकिन तुम्हारा फल की आसक्ति के बिना कर्म करना ही वास्तव में यज्ञ है।
यज्ञ क्या नहीं है?
हम प्रायः अपने घरों में मंदिरों में जिस यज्ञ का आयोजन देखते हैं, वास्तव में वह मात्र एक प्रतीक है। यज्ञ में जो समिधा, घी, लकड़ी इत्यादि डाली जाती है वो मात्र एक प्रतीक है। इसे आप इस तरह समझ सकते हैं जैसे चुनावों में विभिन्न पार्टियों को चुनाव चिन्ह दिया जाता है।
अब यह चुनाव चिन्ह थोड़ी राज्यों का मुख्यमंत्री या राष्ट्रपति बनता है। इसी प्रकार यज्ञ में आहुति, अग्नि, यज्ञ-कुंड, वेदी, समिधा,”इत्यादि जो भी चीजें डाली जाती हैं मात्र वो इशारा करती हैं किसी ऊँची बात का।
लेकिन जो व्यक्ति इसी को यज्ञ मान लेता है और स्वयं के भीतर कोई बदलाव नहीं लाता और निष्काम कर्म नहीं करता, उसके लिए यज्ञ का कोई महत्व नहीं है। ऐसे लोग फिर चाहे कितने ही यज्ञ हवन करवा लें, उन्हें कोई लाभ नहीं होता। ऐसे ही लोग फिर कहते हैं की यज्ञ से हवा शुद्ध होती है या फ्री ऑक्सीजन मिलती है।
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अंतिम शब्द
तो साथियों इस लेख को पढने के पश्चात यज्ञ क्या है? इस विषय पर गहराई से जानकारी मिली होगी। उम्मीद है यज्ञ का वास्तविक उद्देश्य और लाभ कैसे होगा आप भली भाँती जान गए होंगे। अगर इस लेख को पढने के बाद अभी भी मन में कोई प्रश्न है या सुझाव है तो आप नीचे कमेन्ट बॉक्स में बता सकते हैं।