यज्ञ क्या है? जानिए घी, लकड़ी की आहुति देना का असली अर्थ

क्या यज्ञ का उद्देश्य अपनी मनोकामना पूरी करने हेतु देवताओं को खुश करना है? यज्ञ में अग्नि में घी और लकड़ी क्यों जलाई जाती है यह हम तभी समझेंगे जब हमें यज्ञ क्या है? इसका वास्तविक उद्देश्य मालूम होगा।

यज्ञ क्या है?

भारत में यज्ञ हवन करने की परंपरा काफी पुरानी रही है, अपनी कामनाओं की पूर्ति हेतु आज भी परिवार के सदस्यों द्वारा मिलकर घरों में यज्ञ किया जाता है।

पर हिंदू धर्म में यज्ञ की यह परंपरा जितनी पवित्र और लाभकारी मानी गई है, उतना ही अंधविश्वास और यज्ञ से जुड़ी भ्रांतियां लोगों के बीच प्रसिद्ध हैं।

कई लोग जो अक्सर विशेष मौके पर घर में सुख शांति लाने के उद्देश्य से यज्ञ करते हैं, उनसे पूछा जाए यज्ञ का वास्तविक उद्देश्य क्या है? वो सीधा और सटीक उत्तर नहीं दे पाते। आइए जानते हैं।

यज्ञ क्या है? यज्ञ का असल अर्थ क्या है?

यज्ञ का तात्पर्य आहुति देने से हैं, अर्थात अपने जीवन में अपने सभी संसाधनों को किसी ऐसे परम लक्ष्य को समर्पित कर देना जिससे व्यक्तिगत अहंकार कम हो अथवा उसका नाश हो।

देखिये, इंसान पूरा जीवन ख़ास उद्देश्य के लिए कर्म करता है, हर काम के पीछे उसकी यही चाहत होती है की उसे ख़ुशी और आनंद मिल सके। पर दुर्भाग्यवश इस संसार में कई तरह की चीजों को पाने के बाद भी उसका मन शांत नहीं होता।

अतः जीवन में वास्तविक शांति और आनन्द पाना तभी सम्भव है जब हम कर्म अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं की खातिर नहीं बल्कि परमात्मा (अपने स्वार्थ से बड़े लक्ष्य) को पाने के लिए करें।

अतः जब इंसान अपनी समझ से किसी ऐसे कार्य को लक्ष्य बना लेता है जो करना इस समय बेहद जरूरी है, तो उस लक्ष्य को पाने में अपना सर्वस्व न्योछावर कर देना ही वास्तव में यज्ञ है।

अतः परम्परिक रूप से हम जो यज्ञ करते हैं, वहां अग्नि में घी और लकड़ी जलाने का अर्थ होता है की हम अपनी मूल्यवान वस्तु की आहुति दे रहे हैं। पर ऐसा यज्ञ सिर्फ प्रतीक मात्र है।

यज्ञ वास्तव में तब सफल होता है जब आप वास्तविक जिन्दगी में भी अपनी सबसे पसंदीदा वस्तु, संसाधनों को उस कार्य में झोंक दें जो आपका परम लक्ष्य हो।

यज्ञ का वास्तविक उद्देश्य क्या है?

यज्ञ का प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति के अहंकार को हल्का करना है, यज्ञ से आशय ऐसे कर्म से है जिसे करने का उद्देश्य कुछ पाकर चीजों को इकट्टा करना नहीं है। बल्कि ऐसा कर्म करना जिसमें पाने की बजाय आप अपनी प्रिय वस्तु की आहुति दे दें वह यज्ञ कहलाता है।

इसलिए साधारण तौर पर जिस यज्ञ हवन को हम देखते हैं वहां पर देने का रीति-रिवाज होता है न, यज्ञ में आयोजन में बैठने पर आपके पास जो कुछ कीमती होता है फिर चाहे फल, घी इत्यादि आवश्यक चीजें उसे आप अग्नि को समर्पित कर देते हैं।

इसी प्रकार जब व्यक्ति किसी ऊँचे यानी श्रेष्ट कार्य को अपना सर्वस्व अर्पित करता है तो उसकी जिन्दगी ही यज्ञ बन जाती है। अब आप समझ सकते हैं की वास्तव में यज्ञ करना कितनी ऊँची चीज़ है, और मन में कितना दृढ संकल्प और पवित्रता चाहिए होती है जीवन में यज्ञ करने के लिए।

अन्यथा हम लोग जो यज्ञ को महज एक पूजा पाठ की तरह रीती रिवाज मानते हैं, पर वास्तव में यज्ञ इंसान की हस्ती को मिटा देता है,उसके भीतर के अहंकार को समाप्त कर उसका जीवन बदल देता है।

गीता में श्री कृष्ण के अनुसार यज्ञ क्या है?

गीता के अनुसार यज्ञ का दूसरा नाम है निष्काम कर्म

महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण श्रीमदभगवद गीता में अर्जुन से कहते हैं की मनुष्य को संसार में रहते हुए हर पल कर्म तो करना पड़ता है, पर जो व्यक्ति निष्काम भाव से कर्म करता है। वह सुख दुःख, लाभ हानि, मान अपमान के बंधन से बाहर आ जाता है।

क्योंकि ऐसा व्यक्ति स्वयं के लिए कर्म नहीं करता, अतः कुछ पाने की आशा या लालच उसके मन में नहीं होता वह तो बस अपने कर्म में डूबा रहता है।

तो हे अर्जुन अपने परम लक्ष्य को अग्नि मानकर जब आप अपना सबकुछ उसमे अर्पित कर देते हैं तो वह आपको भीतर से स्वच्छ कर देती है। जिस प्रकार आप अग्नि में जो कुछ डालते हैं वो उसे साफ़ कर देती है, मिटा देती है।

इसी प्रकार कर्मों को यज्ञ की भांति करने वाले मनुष्य के मन से लालच, डर और तमाम तरह की गंदगी मिट जाती है ऐसे व्यक्ति का मन देवतुल्य हो जाता है। और फिर उसे संसार में शान्ति पाने हेतु इधर उधर दौड़ने भागने की आवश्यकता नहीं होती।

अतः हे अर्जुन कर्म इस उद्देश्य से करो की तुम्हें पाना कुछ नहीं है लेकिन तुम्हारा फल की आसक्ति के बिना कर्म करना ही वास्तव में यज्ञ है।

यज्ञ क्या नहीं है?

हम प्रायः अपने घरों में मंदिरों में जिस यज्ञ का आयोजन देखते हैं, वास्तव में वह मात्र एक प्रतीक है। यज्ञ में जो समिधा, घी, लकड़ी इत्यादि डाली जाती है वो मात्र एक प्रतीक है। इसे आप इस तरह समझ सकते हैं जैसे चुनावों में विभिन्न पार्टियों को चुनाव चिन्ह दिया जाता है।

अब यह चुनाव चिन्ह थोड़ी राज्यों का मुख्यमंत्री या राष्ट्रपति बनता है। इसी प्रकार यज्ञ में आहुति, अग्नि, यज्ञ-कुंड, वेदी, समिधा,”इत्यादि जो भी चीजें डाली जाती हैं मात्र वो इशारा करती हैं किसी ऊँची बात का।

लेकिन जो व्यक्ति इसी को यज्ञ मान लेता है और स्वयं के भीतर कोई बदलाव नहीं लाता और निष्काम कर्म नहीं करता, उसके लिए यज्ञ का कोई महत्व नहीं है। ऐसे लोग फिर चाहे कितने ही यज्ञ हवन करवा लें, उन्हें कोई लाभ नहीं होता। ऐसे ही लोग फिर कहते हैं की यज्ञ से हवा शुद्ध होती है या फ्री ऑक्सीजन मिलती है।

यज्ञ के नियम क्या है?

यज्ञ का एकमात्र नियम है स्वयं की आहुति देना। अर्थात जो कुछ भी आपके पास संसाधन के रूप में मौजूद है फिर चाहे धन, उर्जा, समय इत्यादि उसे ऊँचे से ऊँचे लक्ष्य को समर्पित करना ही यज्ञ का प्रथम और अंतिम नियम है।

जी हाँ, परमार्थ के काम में वो सब कुछ न्योछावर कर देना जो अपने पास है यही यज्ञ की सबसे बड़ी सीख है। उदाहरण के लिए देश की आजादी के दौरान वीर क्रांतिकारियों के द्वारा वो सब कुछ किया गया जिससे की वे अपनी जन्मभूमि को अंग्रेजों से आजादी दे सके।

यहाँ तक की इस महान लक्ष्य हेतु उन्होंने ख़ुशी ख़ुशी अपने शरीर का भी बलिदान कर दिया। इस बात से आप समझ सकते हैं की यज्ञ जो हम मंदिरों में, घरों में होता देखते हैं वो तो महज एक इशारा है, एक प्रतीक है जिससे हम अपने जीवन को ही यज्ञ बना सके।

यज्ञ में किसका ध्यान किया जाता है?

यज्ञ में अपने लक्ष्य का ध्यान किया जाता है। जिस ऊँचे लक्ष्य के खातिर आप जी रहे हैं, उस लक्ष्य को पाने का निरन्तर प्रयास करना ही यज्ञ का ध्येय है।

ठीक वैसे जैसे हम संसार में किसी पसंदीदा वस्तु को पाने के लिए उसके विषय में लगातार सोचते हैं, और उसे पाने के लिए तमाम तरह की विधियाँ बनाते हैं, उसी प्रकार अपने जीवन लक्ष्य की तरफ बढ़ने के लिए योजना बनाना, पैसे जुटाना, खूब मेहनत करना ये सारे कार्य यज्ञ में भी किये जाते हैं।

उदाहरण के लिए पशुओं पर होती क्रूरता को देखकर आप उनके जीवन की रक्षा करने का कोई लक्ष्य बनाते हैं, तो अब आप सोते जागते बस उसी महान लक्ष्य के बारे में सोचेंगे जिसकी खातिर आप जी रहे हैं। आप पैसे भी कमायेंगे, आप खूब यात्रा भी करेंगे, आप लोगों से बात कर उन्हें समझायेंगे भी, बस किसके लिए?

अपने लक्ष्य के लिए, ठीक वैसे जैसे भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों ने देश को आजादी दिलाने के लिए पढ़ाई भी की, बहादुरी भी दिखाई, कई तरह के खुफिया काम भी किये।

इसी लिए अपने जीवन लक्ष्य का ध्यान करना ही यज्ञ कहलाता है।

गीता के अनुसार यज्ञ क्या है?

गीता के अनेकों श्लोक हैं जहाँ भगवान कृष्ण अर्जुन को यज्ञ करने का संदेश दे रहे हैं। उन श्लोकों के अर्थ को बारीकी से समझने पर आप पाएंगे की वहां सीधे तौर पर भगवाण कृष्ण अर्जुन को निष्काम कर्म करने के लिए कहते हैं। धर्म की इस लड़ाई में जहाँ अर्जुन अपने प्रियजनों से लड़ाई न करने का फैसला ले चुका था।

ऐसी स्तिथि में भगवान कृष्ण अर्जुन को उपदेश देकर बतलाते हैं की हे अर्जुन। निष्काम भाव से जो व्यक्ति चुपचाप सही कर्म में लीन रहता है। वह मनुष्य दुःख, सुख , मोह, भय हर तरह के बंधन से दूर हो जाता है।

हे अर्जुन तुम युद्ध जीतने या हारने के लिए नहीं बल्कि इसलिए करो क्योंकी यही तुम्हारा धर्म है। जो व्यक्ति अपने धर्म से विमुख होकर अर्थात सच्चाई को छोड़कर कर्म अपनी इच्छाएं पूर्ण करने के लिए करता है और अपने संसाधनों को भोग में लगाता है ऐसा व्यक्ति वास्तव में पापी है।

पर जो मनुष्य जीवन को यज्ञ मानकर अपने संसाधनों को परमलक्ष्य को समर्पित करता है यानी जो कुछ उसके पास कीमती और उपयोगी है उसे वह सत्य की सेवा में लगा देता है। अंततः उसके पास जो बच जाता है उसे प्रसाद रूप में ग्रहण करता है वह वास्तव में यज्ञ करता है।

इस प्रकार यज्ञ करने वाले मनुष्य को भगवान कृष्ण की प्राप्ति हो जाती है।

जानें: निष्काम कर्म क्या है? कैसे करें?

यज्ञ करने के फायदे

वास्तविक यज्ञ करने के अनेकों लाभ हैं जो की निम्नलिखित हैं।

#1. यज्ञ इंसान के मन को निर्मल कर देता है। मनुष्य का डर, लालच, हवस, इच्छाएं उसके मन को अशुद्ध कर देती हैं पर जिस प्रकार यज्ञ में अग्नि सब कुछ राख कर देती है उसी तरह जीवन यज्ञ में इंसान के सभी विकार हट जाते हैं, मन शुद्ध और शांत हो जाता है।

#2. यज्ञ से देवता प्राप्त होते हैं। वह इन्सान जो देवताओं को पाने के लिए तमाम साधनाएं प्रयास करता है उसे यज्ञ का वास्तविक अर्थ समझकर यज्ञ करना चाहिए। क्योंकी देवता बाहर नहीं बल्कि भीतर हैं और सच्ची जिन्दगी जीने वाले व्यक्ति को उनका आशीर्वाद मिलता है।

#3. मात्र वही इन्सान यज्ञ करने के काबिल होता है जो आत्मज्ञानी होता है, जिसे शरीर, मन और इसकी वास्तविक इच्छा का बोध होता है। इसलिए यज्ञ करने वाले व्यक्ति का जीवन बेकार और बर्बाद नहीं होता।

#4. यज्ञ करने वाले व्यक्ति के लिए चूँकि सच्चाई सबसे बड़ी चीज़ होती है इसलिए आम सांसारिक व्यक्ति संसार की चीजों के प्रति लालायित रहता है उन चीजों की वास्तविकता पता होने के कारण यज्ञ करने वाले मनुष्य को फर्क नहीं पड़ता।

#5. जीवन में जो कुछ भी सुन्दर और सच्चा हमें प्राप्त हुआ है फिर चाहे वह आजादी हो या आध्यात्मिक ज्ञान हो इसे पाने के लिए संतों और महापुरुषों ने अपने समय, धन और यहाँ तक की देह की भी बलि दे दी। इसलिए जो लोग महान जीवन जीने की इच्छा रखते हैं उनके लिए यज्ञ बेहद लाभकारी है।

यज्ञ और हवन में क्या अंतर है?

यज्ञ और हवन दोनों ही धार्मिक अनुष्ठानों में प्रचलित हैं। यज्ञ भीतर के देवत्व को भोग लगाने हेतु किया जाता है। यज्ञ करके हम भीतर के देवता का आशीर्वाद पाते हैं जिसके फलस्वरूप मन में देवताओ की शांति और सच्चाई के लिए प्रेम बढ़ता है।

जब जब हम सच्चाई को स्वीकार कर हम सही रास्ते पर चलते हैं, भीतर बैठे देवता को और उतना बल मिलता है।

दूसरी तरफ हवन का ही एक संक्षिप्त रूप यज्ञ है। एक यज्ञ में जिन चीजों की आहुति दी जाती है उसे हवन कहा जाता है। जिस प्रकार अग्नि में फल, घी इत्यादि की आहुति दी जाती है उसी प्रकार एक सही जिन्दगी जीने के लिए भीतर मौजूद लालच, इच्छाओं की आहुति देकर हम जीवन यज्ञ को सफल बनाते हैं।

आहुति देना बहुत जरूरी है, जो लोग आहुति देने में पीछे हट जाते हैं वो जीवन में जो सच्चा है, सुन्दर है उससे वंचित रह जाते हैं।

सबसे बड़ा यज्ञ कौन सा होता है?

सबसे बड़ा यज्ञ जीवन यज्ञ होता है, अर्थात अपनी आवश्यकताओं और इच्छाओं की पूर्ती के लिए कर्म करने से बेहतर जीवन को किसी ऊँचे काम को समर्पित करना सर्वोच्च यज्ञ है। ये इतना विशाल यज्ञ होता है की इंसान का जीवन ही बदल देता है।

वे लोग जो पाते हैं उनके जीवन में मजबूरियां, कष्ट, लालच, कमजोरी बहुत है उन्हें जीवन यज्ञ जरुर करना चाहिए। क्योंकी जब इन्सान आत्मज्ञानी हो जाता है और समझ लेता है ये जीवन क्या है? क्यों मिला है? तो वो ये भी देख लेता है की जिन्दगी में जितनी परेशानियां थी वो सब मेरी वजह से थी। मैंने ही उन मजबूरियों को, न्योता दिया था।

और अब मैं उन्हें तोड़ रहा हूँ। वो कहता है जिन्दगी में इन्सान की एक ही जिम्मेदारी है अपने कष्ट से मुक्ति पाना, और वो मुक्ति मुझे तब तक नहीं मिल सकती जब तब मैं अपने मन के इशारे पर काम करता रहूँगा। जब तक मैं इस मन की सुनूंगा तो मुझे दुःख ही मिलेगा जैसे आज तक मिलता आया है।

तो अब मैं मन की नहीं सच्चाई के रास्ते पर चलूँगा। जीवन में जो कुछ जरूरी है, सुन्दर है, जिसमें जीवन की सार्थकता है उस काम को करूँगा।

ये जानने के बाद इस तरह जो इन्सान सच्चाई को समर्पित हो जाता है अब वो पाता है की उसके पास काम इतना महत्वपूर्ण हो गया है की उसको अपने जीवन के सुख दुःख से अब कोई फर्क ही नहीं पड़ता।

इस तरह जीवन यज्ञ को करने से मनुष्य को असीम शान्ति मिलती है, उसके मन में सच्चाई के प्रति प्रेम बढ़ता है और वो एक आजाद और बेख़ौफ़ जिन्दगी जी पाता है।

यज्ञ करने की विधि

जो विधि मन को सत्य तक, आत्मा तक ले जाए वही विधि यज्ञ के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। यानी यज्ञ करने की कोई एक निश्चित विधि नहीं हो सकती क्योंकि हर इन्सान के जीवन में चुनौतियाँ अलग अलग होती हैं।

ठीक वैसे जैसे किसी एक के लिए किसी ख़ास समय पर पानी पीना उचित हो सकता है तो दूसरे के लिए यही चीज़ नुकसानदेह हो सकती है। तो अपने जीवन को देखिये, और जानिए भीतर कितना झूठ, लालच,कपट है? क्या कुछ भीतर ऐसा है जिसकी वजह से आपको दुःख झेलने पड़ते हैं, जिसकी वजह से आप गलत रास्ते पर चलने के लिए मजबूर हो जाते हैं।

यह जान लेने के बाद उस चीज़ का त्याग कर देना, उसमें आहुति दे देना ही यज्ञ है। उदाहरण के लिए जान गये की मैं एक लालची इन्सान हूँ जो हमेशा और कमाने के लिए और अपनी इच्छाएं पूरी करने के लिए कर्म करता है तो ये जानने के बाद अब धीरे धीरे निस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद करने की आदत डालने से आपके लालच में कमी आएगी।

दूसरे शब्दों में कहें तो आप अब अपने लालच की आहुति दे रहे हैं इस तरह जीवन में जो कुछ बुरा है, उसको हटाने के लिए सच्चा प्रयास करना ही वास्तव में यज्ञ करने की विधि कहलाती है।

यज्ञ में सबसे पहले किसकी पूजा की जाती है?

यज्ञ में किसी बाहरी देवता की नहीं बल्कि अपने भीतर मौजूद देवत्व को भोग लगाया जाता है। देखिये, इन्सान के ही भीतर झूठ, कपट, लालच के रूप में राक्षस भी मौजूद होता है और साथ ही प्रेम,शांति के रूप में अंदर ही देवता भी विराजमान रहते हैं।

पर जब हम झूठ के आगे सर झुकाते हैं, जब लालच के खातिर घटिया काम करने को तैयार होते हैं तो भीतर बैठा राक्षस खुश होता है। लेकिन जब इन्सान यज्ञ करता है यानी सही कर्म जीवन में करता है तो भीतर बैठे देवता को भोग लगाकर वह देवत्व को जगाता है।

इसलिए यज्ञ करके अर्थात एक सही जिन्दगी जीकर हम वास्तव में अपने भीतर मौजूद अच्छाई को बढाते हैं, और जब मन में देवत्व रहता है तो बाहर इन्सान जो भी कर्म करता है उससे समाज का, दुनिया का भला होता है।

पर अगर कोई कहें की नहीं यज्ञ का मतलब ही है इंद्र, राम या अपने ईष्ट देव को खुश करना और अपनी मन की मुराद पूरी करना तो समझ लेना झूठा आदमी है या अज्ञानी है।

यज्ञ करने से क्या फल मिलता है?

जो व्यक्ति निष्काम भाव से अपने जीवन को किसी ऊँचे लक्ष्य को समर्पित करता है, जो सच्चाई के आगे झुक कर सही कर्म जीवन में करता है उसे सबसे बड़ा फल यह मिलता है की उसे सौ व्यर्थ की चीजों और सौ बुरे लोगों के सामने झुकना नहीं पड़ता।

उसकी आँखों में एक तेज होता है, एक निडरता होती है। मन में प्रेम और शान्ति होती है और एक जज्बा होता है अपने लक्ष्य के लिए। क्योंकी वो भली भाँती जानता है की जीवन में जो कुछ भी मेरे पास था उसे सत्य की सेवा में लगा दिया तो अब खोने का मुझे क्या डर रहेगा?

जब वो जानता है सच्चाई के आगे सर झुका दिया तो झूठी इज्जत, पैसे ये छोटी चीजें उसके क्या काम आएँगी।

पर दुर्भाग्य से बहुत कम लोग होते हैं जो वास्तव में यज्ञ का अर्थ जानकर जीवन यज्ञ कर पाते हैं।

यज्ञ का वैज्ञानिक महत्व

यज्ञ का वैज्ञानिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक महत्व होता है। क्योंकी यज्ञ शरीर की नहीं बल्कि मन की शुद्धि के लिए किया जाता है। बॉडी में कोई समस्या होती है तो उसे ठीक करने के लिए अस्पताल बनाये गये हैं।

लेकिन मन में डर,स्वार्थ, कपट और लालच की वजह से इन्सान दुखी न हो और किसी का अनहित न करे इसके लिए मंदिर बनाये गए, धर्मग्रन्थ रचे गए और यज्ञ हवन इत्यादि विधियाँ बनाई गई।

अतः मनुष्य यज्ञ का वास्तविक अर्थ समझता है और जानता है की एक सही जिन्दगी जीना ही यज्ञ है तो फिर वह यज्ञ के नाम पर समाज में जितनी भ्रांतियां फैली हुई हैं उनपर ध्यान नहीं देता।

बहुत से लोग हैं जिनके जीवन में अपार लालच, डर, वासना है और अपने मन की शुद्धि कर उन्हें सही जिन्दगी जीने की आवश्यकता है पर चूँकि इस काम में मेहनत भी लगती है और मन विरोध भी करता है इसलिए फिर वो धार्मिक शब्द जैसे आत्मा, यज्ञ इत्यादि का कुतर्क कर लेते हैं।

वो कहते हैं यज्ञ करने से वातावरण में नकारात्मक शक्तियाँ खत्म होती हैं या फिर हवा शुद्ध होती है। इस तरह शब्दों का विकृत अर्थ करने पर वह खुद की जिन्दगी को ही नर्क में डाल देते हैं। कृपया यज्ञ का वास्तविक अर्थ समझें और उसे जीवन में उतारें इसी में यज्ञ की सार्थकता है।

ब्रह्म यज्ञ का क्या अर्थ है?

ब्रह्म का अर्थ है सत्य/परमात्मा। और यज्ञ का अर्थ है आहुति देना। चूँकि ब्रह्म यानी सत्य तो अपने आप में पूर्ण हैं, पर मन तो भीतर से असंतुष्ट और बेचैन रहता हैं। अतः इसी मन को परमात्मा की तरफ ले जाना ही ब्रह्म यज्ञ है।

दूसरे शब्दों में कहें तो सच्चाई को जानना, सच्चाई में जीना ही ब्रह्म यज्ञ है। ब्रह्म यज्ञ यह नहीं की अपने मंदिर में कितना विशाल अग्नि यज्ञ किया और कितने पंडित और विद्वान उस यज्ञ में उपस्तिथ थे। वास्तव में ब्रह्म यज्ञ तब फलित होता है जब आपके लिए परमात्मा यानी सच्चाई से बड़ी कोई चीज़ न हो।

अगर अभी आप पाते हैं सत्य से ज्यादा आपको पैसा, इज्जत और तमाम तरह की चीजें आकर्षित करती हैं और आप सच की बजाय हमेशा इन चीजों की तरफ जाते हैं तो समझ लिजिये अभी ब्रह्म यज्ञ आपके जीवन में घटित नहीं हुआ है।

जिस दिन आप पाओ की जीवन में अब सत्य के सिवा कोई भी इन्सान, कोई भी पद, कोई भी जिम्मेदारी बड़ी नहीं है उस दिन आप जानना की अब ब्रह्म यज्ञ हो रहा है।

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अंतिम शब्द

तो साथियों इस लेख को पढने के पश्चात यज्ञ क्या है? इस विषय पर गहराई से जानकारी मिली होगी। उम्मीद है यज्ञ का वास्तविक उद्देश्य और लाभ कैसे होगा आप भली भाँती जान गए होंगे। अगर इस लेख को पढने के बाद अभी भी मन में कोई प्रश्न है या सुझाव है तो आप नीचे कमेन्ट बॉक्स में बता सकते हैं।

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