रिश्तों में प्रेम क्यों नहीं है? Chapter 10| Book Summary in Hindi

हम में से कई लोग आजकल रिश्तों में प्रेम की कमी, सूखापन देखते हैं, पर वास्तव में इसका कारण क्या है? हम कभी जानने की कोशिश ही नहीं करते की आखिर रिश्तों में प्रेम क्यों नहीं है?

रिश्तों में प्रेम क्यों नहीं है?

इसलिए इस अध्याय में आचार्य जी और प्रश्नकर्ता के बीच गहरी बातचीत होती है, जिससे ये साफ़ जाहिर हो जाता है की हमारे रिश्तों में प्रेम को छोड़कर बाकी चीजें कैसे आ जाती है? आइये इस अध्याय को मिलकर पढना शुरू करते हैं।

रिश्तों में प्रेम न होने का कारण?

प्रश्नकर्ता:” आचार्य जी, रिश्तों में प्रेम नहीं दिखाई देता आजकल”

आचार्य जी: किसके?

प्रश्नकर्ता: सबके

आचार्य जी : ये कैसे मालूम दूसरों के रिश्तों में नहीं है?

प्रश्नकर्ता: क्योंकि हमारे नहीं है।

आचार्य जी: तो ये कहिये ना की हमारे रिश्तों में प्रेम नहीं है, क्योंकी बाकियों के रिश्तों का तुम्हें कैसे पता?

प्रेम का अर्थ होता है “सरलता” प्रेम जिद्दी होता है एक बच्चे की भाती, उसे कोई चीज़ भा गई तो उसे वही चाहिए होती है, लेकिन हमारे अन्दर वो जिद्दीपन है ही नहीं।

हम तो हर चीज़ में बेहतर देखते हैं, हमारे पास कुछ ऐसा नहीं है जो खरीदा न जा सके, कोई कहे ईमान बेचने को राजी हो.. हम कहेंगे नहीं….

100 हम कहेंगे न, कोई कहे हजार, हम कहेंगे न, कोई कहे लाख तो हम कहेंगे नहीं..

और कोई कहे करोड़ तो कहेंगे ….अहम्म और वो फिर कहे 10 करोड़ तो हम कहेंगे जी बात बन सकती है!

देख पा रहे हो हमारे पास ऐसा कुछ है ही नहीं जो Not For Sale नहीं होता। दुकान पर जाते हैं हम किसी चीज़ के लिए अगर दुकानदार बोल दे इस ब्रांड का सस्ता और अच्छा मिलेगा तो हम वही खरीद लाते हैं!

हम ऐसे हैं!

जो खरीदने निकला हो वो बिक सकता है, जो बिकने निकला हो वो नहीं खरीदा जा सकता

आचार्य जी कहते हैं हम ग्राहक लोग है हमें मोल भाव में जो सही मिल गया हम उसको पाना चाहते है, इसलिए हमारी इच्छा हर दम बदलती रहती है। हमारे पास ऐसा कुछ नहीं बेहतर जो हमें मिल गया हो और उसके बाद हमें बेवफाई मंजूर हो परन्तु वफा नहीं करेंगे!

प्रश्नकर्ता: हम मोल भाव क्यों करते हैं?

आचार्य जी: क्योंकि हम छोटी चीज़ की मांग रखते है, किसी ऐसी चीज़ की नहीं जो मूल्यहीन हो। कोई चीज़ जो तुम्हें असंख्य रुपयों में मिलती हो और वो तुम्हें मिल जाये तो तुम मोल भाव करोगे?

नहीं न, लेकिन हम क्षुद्र छोटी चीज़ की ही इच्छा रखते हैं इसलिए कई बार वो बड़ी चीज़ मिल भी रही हो जो अनंत हो, जिसकी कीमत न हो तो हम उसकी उपेक्षा कर देते हैं।

मानव होने का अर्थ है हमारे अंदर अनंत सम्भावनाएं हैं, और कई बार ये पता भी चल जाये तो इंसान डर जाता है, मानने को राजी नहीं होता की वो इतना बड़ा है!

नतीजा उम्र बढती रहती है और एक इंसान जो 25-30 का हो गया है वो फिर भी ऐसा आचरण, व्यवहार करता है जैसे 10-15 साल के बच्चे, वो मानने को ही तैयार नहीं है की हम बड़े हो गए है।

ऐसा करने में स्वार्थ भी है और यह मनोरोग भी है, फिर इंसान बड़ी जिम्मेदारी से बच जाता है न, और ये एक तरह का मनोरोग है बहुत लोग कहते हैं बीमार रहते हैं तो बहुत सुविधा मिलती है, आस पास नौकर चाकर रहते हैं!

लेकिन ये तो मानते हो जो बात स्वस्थ्य रहने में है वो बीमारी में नहीं, अध्यात्म में बीमारी जैसी चीज़ नहीं है वहां आत्मा की बात होती है और आत्मा कभी दुर्बल, अहसाय, कमजोर नहीं होती, शरीर बूढा हो सकता है परन्तु आत्मा सदैव जवान रहती है।

कुछ सुख सुविधा पाने के खातिर तुम खुद को बीमार घोषित कर बैठे हो, लेकिन याद रखना असल में कोई बीमारी है ही नहीं बस माया के फेर में फंसे हुए हो!

पिछले अध्याय पढ़ें

क्या प्रेम एक भावना है? Chapter 8

बेबी – बेबी वाला प्यार Chapter 8

अंतिम शब्द

तो साथियों इस तरह इस अध्याय रिश्तों में प्रेम क्यों नहीं है? से स्पस्ट होता है क्यों हमें जीवन में प्रेम नहीं मिलता? अगर आप विस्तार से इस अध्याय को पढना चाहते है तो Amazon से यह पुस्तक खरीद सकते हैं!

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