हम में से अधिकतर लोग कुछ नया, बेहतर करने के लिए कोई निर्णय लेते हैं लेकिन अधिकांश मामलों में देखा जाता है माता-पिता हमारे फैसले के विरोध में ही खड़े होते हैं। ( माँ- बाप समझते क्यों नहीं Chapter 2)
बिना यह समझे बूझे की हमारी मंशा, उद्देश्य क्या है? वो सीधे नकार देते हैं। और जब व्यक्ति के लिए उसका परिवार और उसके माता- पिता ही उसकी पहली प्राथमिकता होते हैं, तो वह उस काम को भी शुरू नहीं कर पाता, जो करना बेहद जरूरी है।
तो चलिए हमें इस समस्या के समाधान के लिए सम्बन्ध नामक इस पुस्तक के दूसरे अध्याय का अध्ययन करना होगा।
माँ – बाप समझेंगे ये उम्मीद छोडिये
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी माँ-बाप मेरा साथ क्यों नहीं देते, वो मुझे क्यों नहीं समझ पाते?
आचार्य जी:- देखिये बात सिर्फ आपके माता-पिता की नहीं है, अगर व्यक्ति का मन पुराने विचारों, धारणाओं से घिरा होता है तो फिर उसके लिए किसी के नए विचारों को, उद्देश्य को समझना बहुत कठिन हो जाता है।
जैसे दुनिया के बाकी लोग नासमझ हैं उसी प्रकार आपके माँ बाप भी उन्हीं में से एक है।
सिर्फ इसलिए तुम उनका अनुसरण नहीं कर सकते या उनसे समझने की अपेक्षा नहीं कर सकते क्योंकि वो उम्र में बड़े हैं, उन्होंने तुम्हें पैदा किया है या फिर जैसे कहा जाता है माँ-बाप तो भगवान का रूप होते हैं।
माँ-बाप बन जाने से अन्दर अचानक दैवीय ज्ञान नहीं आ जाता। माँ-बाप बनना तो महज एक शारीरिक प्रक्रिया है केवल इंसान ही नहीं सभी जीवों में ये गुण होता है।
वो भी तो समाज का ही एक हिस्सा हैं उन्हीं से उनका उठना बैठना, रिश्ता, बोलचाल और विचार है। तो समझो ये अंधों की दुनिया है, और उन्हीं में से अंधे माँ-बाप भी हैं!
माँ बाप से प्रेम का रिश्ता होना चाहिए, अहसान का नहीं
इसी बातचीत में आगे एक श्रोता पूछते हैं ” पर आचार्य जी हमारी सफलता में सबसे बड़ा हाथ माँ-बाप का ही होता है, इसलिए मेरी पहली प्राथमिकता वही हैं अतः मैं अपनी पहली तनख्वाह भी उन्हीं को दूँगी।
आचार्य जी कहते हैं यहाँ पर अब दो बातें समझनी जरूरी है पहला तुम्हारी ये नैतिक जिम्मेदारी बनती है की जब तुम पैसा कमाने लग जाओ तो कोई दो राय नहीं अपनी सामर्थ्य से कमाई का एक हिस्सा प्रेम पूर्वक माँ-बाप को दो, जिस प्रकार उन्होंने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा आपको पालने पोषने और आपको विकसित करने में लगाया है।
दूसरी बात ये मत भूलना की तुम अपनी मर्जी यानी आवेदन देकर पैदा नहीं हुए थे, तुम अपने माता पिता की उच्च शारीरक सुख की अवस्था में इस दुनिया में आये थे। और हर माँ-बाप की भाँती उन्होंने प्रेम से तुम्हें पढाया लिखाया, बड़ा किया पर ये सब उन्होंने अपनी ख़ुशी से किया था। कोई अहसान नहीं किया था।
अगर ये बात एहसान की है तो कुछ इसी तरह होगी, जैसे किसी छोटे बच्चे को कोई प्यार से किसी होटल में ले जाए उसे बढ़िया पार्टी कराये, और लास्ट में हाथों में बिल दे दें… बच्चा तो कहेगा न मैंने थोड़ी कहा था मुझे यहाँ लाकर मुझ पर खर्च करो..!
इसलिए इंसानियत के नाते जितना हो सकता है आप भी मां बाप को दें, लेकिन ये नहीं होना चाहिए की मैंने तुम पर पूरे 1 करोड़ खर्च किये थे और तुम मुझे बस इतना दे रहे हो, फिर ये प्यार नहीं व्यापार हो गया.. ठीक है।
अभी तुम्हारा प्रथम उद्देश्य खुद को बेहतर, विकसित करने में होना चाहिए, जब तुम काबिल हो जाओगे तभी तो माँ-बाप की भी मदद कर पाओगे। याद रखना माँ-बाप तुम्हें सिर्फ शरीर देते हैं, समझ नहीं।
पिछले अध्याय पढ़ें-
« सम्बन्ध क्या हैं? | Chapter 1
अंतिम शब्द
तो साथियों इस तरह आचार्य जी अध्याय 2 में हमें जीवन में माँ-बाप के हमें न समझने की वजह बताते हैं! अगर आप इस पूरे अध्याय (माँ- बाप समझते क्यों नहीं) को पढ़ना चाहते हैं तो आप Amazon से यह पुस्तक ऑर्डर कर सकते हैं। धन्यवाद।।