अघोरी बाबा कहाँ रहते हैं? जानिए अघोरियों का पूरा सच!

अघोरी बाबा: ये शब्द सुनते ही आम लोगों के दिमाग में काले वस्त्रधारी, लम्बे बालों के साथ राख से सने हुए इंसान की छवि आने लगती है। पर वास्तव में अघोरी बाबा कहाँ रहते हैं? ये इंसान का मांस क्यों खाते हैं? और इन्हें अघोरी नाम क्यों मिला है?

अघोरी बाबा कहाँ रहते हैं

ऐसे प्रश्नों का जवाब आमतौर पर किसी भी इन्सान के पास नहीं होता। आम सांसारिक लोगों से हटकर अघोरियों की रहस्यमई दुनिया के बारे में जानने से इन्सान डरता है। इनसे बात करने में, इनके करीब आने से आम इन्सान को तकलीफ होती है।

परन्तु समाज से परे रहकर जीवन जीने वाले अघोरी, भगवान् शिव के बड़े भक्त माने जाते हैं, अतः उनका रूप रंग कुछ कुछ दूर एकांत में पहाड़ों में स्तिथ भोले बाबा जैसा प्रतीत होता है। आज हम इस लेख के माध्यम से आपके साथ अघोरी बाबा का पूरा सच लेकर आये हैं।

यकीन मानिए जो इंसान अघोरी बाबाओं के जीवन का सच जान गया, उनके लिए अघोरियों को समझने में कोई तकलीफ नहीं होगी। आइये जानते हैं

अघोरी कौन होते हैं?

अघोरी शब्द संस्कृत से लिया गया है जिसका हिंदी में वास्तविक अर्थ “अँधेरे से उजाले की तरफ” होता है। वहीँ अध्यात्म में अघोर शब्द उस इन्सान के लिए उपयोग किया जाता है जो प्रकृति के सब गुण दोषों से आगे निकल चुका हो। अर्थात वो इंसान जो समाज की गुलामी स्वीकार न करे वो अघोरी होता है।

इसलिए आप पाते हैं की समाज जिन बातों से असहज महसूस करता है वो सब क्रियाएं अघोरी आसानी से अपना लेते हैं लम्बे बाल, शरीर पर राख मलना, निर्वस्त्र रहना, इंसान का मांस खाना ये दर्शाता है की समाज जिन चीजों का बहिस्कार करता है वो चीजें अघोरी के लिए आम होती है।

जहाँ एक आम व्यक्ति को इस संसार में कुछ चीज़ें अच्छी तो कुछ बुरी लगती है, वहीँ एक अघोरी के लिए वो बुरी और असमान्य चीजें भी सामान्य लगती है। जहाँ सामजिक लोगों में शमशान का नाम लेते ही डर छा जाता है वहीँ दूसरी तरफ अघोरी आराम से शमशान के करीब निवास करते हैं।

संक्षेप में कहें तो एक अघोरी वह इन्सान होता है जिसका मन वैरागी हो जाती है, संसार में विषयों को देखकर उसके मन से अच्छा बुरा, ईर्ष्या-क्रोध, सुगंध-दुर्गन्ध, प्रेम-नफरत, जैसे सभी भावों से उसे विरक्ति मिल जाती है। अतः वह अपने तन को भी इस तरह ढाल लेता है जिससे वह आम लोगों से भिन्न नजर आता है।

अघोरियों का भगवान शिव से क्या समबन्ध है?

अघोरियों का पूरा समूह अघोर सम्प्रदाय के रूप में जाना जाता है। बता दें भगवान सिंह के 5 रूपों में एक रूप अघोरी का भी है। अतः अघोरी बाबा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कई तरह की क्रियाएं करते हैं, शमशान की राख शरीर पर मलते हुए वे घंटो ध्यान में लिप्त रहते हैं।

कहा जाता है वे शव के पास ही बैठे रहकर शिव साधना में लीन रहते हैं। मास और मदिरा का भोग लगाकर शमशान में हवन करते हैं।

जहाँ आम इंसान जीवन में अपनी आवश्यकताओ और इच्छाओं की खातिर रूपये पैसे के लिए दिन भर मेहनत करता है, उसी प्रकार अघोरी घोर साधना करते हैं पर अपने पेट के लिए नहीं अपितु भगवान शिव को पाने के लिए।

इसलिए सच्चे अघोरियों का जीवन आम इन्सान से अलग हो जाता है, जीते तो वो भी इसी संसार में हैं लेकिन उनके कर्म और उनका रूप रंग अपनी खातिर नहीं शिव को अर्पित हो जाता है।

अधोरी कैसा भोजन करते हैं?

अघोरियों का आहार आम इंसान की भाँती नहीं होता, वो प्रकृति में मौजूद उन चीजों को भी आसानी से भोजन के रूप में ग्रहण कर लेता है। आइये जानते हैं अघोरियों के भोजन में कौन कौन से तत्व सम्मिलित होते हैं।

  1. अघोरी शमशान में जलने वाले शवों को निकालकर खाने के लिए काफी प्रसिद्ध हैं।
  2. समाजिक नैतिकता का खंडन करते हुए अघोरी मदिरा और मांस का भोग शिव को अर्पित करते हैं, माना जाता है ऐसा करने से उनकी साधना को बल प्राप्त होता है।
  3. वो खाने पीने से परहेज नहीं करते, रोटी, साग सब्जी, मांसाहार हर तरह का भोजन करते हैं।
  4. वो गाय के मांस को छोड़कर किसी भी जानवर का मांस खाने के समर्थ होते हैं।

अघोरी कहाँ रहते हैं?

अघोरी निर्जन स्थानों में, पाए जाते हैं। शमशान घाट के किनारे इन्हें देखा जा सकता है। यूँ तो अघोरी भारत के विभिन्न राज्यों में पाये जाते हैं लेकिन इनकी अधिकतम संख्या काशी, वाराणसी में पाई जाती है।

अघोरी बाबा कैसे बनते हैं? अघोरी होने के लिए पात्रता

यदि आपको लगता है अघोरी होने का अर्थ है दूर गंगा तट पर, शमशान घाट में रहकर उन्हीं की तरह की क्रियाएं और वेश भूषा धारणा करना। तो ऐसा बिलकुल नहीं है वास्तव में अघोरी होना आंतरिक बात है जो मन से अघोरी हो गया वो फिर संसार में एक सामान्य इंसान की तरह दिखने के बावजूद अघोरी हो सकता है।

ठीक वैसे जैसे माथे पर तिलक लगाकर, शरीर पर भगवा धारण करने मात्र से किसी भी इंसान को हिन्दू या पंडित नहीं माना जा सकता। इसी प्रकार अघोरी होने के लिए मृत लोगों की राख को शरीर में मलना और एक सन्यासी की भाँती समाज से दूर रहकर एकांत में जीवन जीना आवश्यक नहीं है।

ये बिलकुल संभव है की अघोरी बनकर भी इंसान पाखंड कर सकता है, अपनी जिम्मेदारियों से दूर भागने के लिए वो इस तरह के काम कर सकता है।

अतः अब सवाल आता है की सच्चा अघोरी कौन है? तो ये जानने के लिए आपको समझना होगा की अघोरी होना आंतरिक बात है, वह इन्सान जिसको प्रकृति यानी संसार के सब गुण दोष स्वीकार हैं, जिसके मन में संसार की किसी चीज़ के लिए कोई भेद न हो।

जो किसी विषय को अच्छा या बुरा कहने की जगह सबको एक समान देखे वो वास्तव में अघोरी हुआ। अब आपका प्रश्न हो सकता है की सब विषयों को एक समान कैसे देखा जा सकता है? एक स्कूल और हॉस्पिटल ये दोनों विषय एक कैसे हो सकते हैं?

देखिये बात सूक्ष्म है अस्पताल हो या विद्यालय हैं तो दोनों ही इस संसार के ही, दोनों की उपयोगिता अपनी अपनी जगह है। पर समाज में रहने वाला इन्सान किसी विषय को अच्छा कहता है क्योंकी उसे लगता है उससे मुझे संतुष्टि या ख़ुशी मिलेगी और किसी विषय को बुरा इसलिए कहता है क्योंकि इससे उसे दुःख पहुचेगा।

उदाहरण के लिए इन्सान कहता है दुनिया में सब कुछ अच्छा है लेकिन शराब पीना, गाली देना, भागकर शादी करना बुरा है।

लेकिन अघोरी वो है जो कहता है इस दुनिया में कोई भी चीज़ ऐसी नहीं है जिसको अधिक महत्व दिया जाए, यहाँ सब चीजें एक जैसी ही हैं इसलिए अघोरी उन चीजों को आसानी से करते पाए जाते हैं जिनको सांसारिक इंसान बहुत नफरत करता है या बुरा समझता है।

अतः जिस इंसान को यह बात समझ आ जाती है की अघोरी होने का अर्थ है प्रकृति की सभी चीजों को एक दृष्टि से देखना। तो ऐसा इन्सान फिर अघोरी हो जाता है, फिर वो खुश होने के लिए संसार की चीजों पर निर्भर नहीं रहता। वो कहता है यहाँ किसी भी विषय में इतनी ताकत नहीं की वो मुझे तृप्त कर सकें।

क्या इस संसार में कुछ भी ऐसा है जिसे आप कहें पा लेने से इन्सान संतुष्ट हो जाता है? नहीं न, यही कारण है की फिर अघोरी बाबा इस समाज का एक तरह से त्याग कर देते हैं, इसकी मान्यताओं को भी तोड़ देते हैं और एकांत में जीवन जीते हैं।

क्या अघोरी बनने के बाद इन्सान निकम्मा हो जाता है?

प्रायः हम पाते हैं एक अघोरी जैसा जीवन जीता है उससे उसे तृप्ति जरुर मिल जाती है पर ऐसा नहीं प्रतीत होता की अघोरियों के इस तरह जीवन जीने से अन्य लोगों का भला होता हो, समाज की समस्याओं का समाधान हो सके और उनका कल्याण हो सके।

जी नहीं, पर जो सिर्फ अघोरियों जैसा आचरण न करता हो जिसने वास्तव में समझा हो की अघोरी शब्द का वास्तविक अर्थ क्या है? ऐसा इंसान फिर अपनी तृप्ति के लिए एकांत में जाने की बजाय इसी संसार में एक बादशाह की तरह जियेगा।

वो समाज के बीच रहकर भी ऐसे जियेगा जैसे उसे संसार के विषयों से और लोगों से फर्क ही न पड़ता हो। वो काम करेगा भरपूर करेगा पर इसलिए नहीं क्योंकि उस काम को करके उसे ख़ुशी मिलेगी। वो काम करेगा शिव के खातिर यानि सच्चाई के खातिर।

जिस प्रकार एक अघोरी शमशान में शिव को खुश करने के लिए तमाम तरह की साधना, क्रियाएं करता है। उसी तरह शिव को सत्य मानकर एक ज्ञानी अघोरी समाज में जीता है। उसे वास्तव में सच्चाई से प्रेम होगा, वो सच्चाई को जानेगा, उसमे जियेगा। यही एक अघोरी इंसान है।

वो अपने जीवन में अब काम का चुनाव अपनी इच्छाओं के आधार पर नहीं बल्कि सत्य के आधार पर करेगा। वो दुनिया को देखेगा और देखेगा कौन सी समस्या है जिससे लोगों को समस्या आ रही है? अब यह सच्चाई जानने के बाद वो उस समस्या को सुलझाने में लग जायेगा।

एक अघोरी काम बहुत करेगा इस खातिर नहीं क्योंकि उसे करके मजा आता है, नहीं वो करेगा क्योंकि उस काम के सिवा उसके पास जीने की कोई वजह  ही नहीं है।

उदाहरण के लिए आपने जान लिया इस समय पूरी दुनिया में प्रदूषण की समस्या तेजी से बढ़ रही है, और आप पाते हैं इससे हर प्राणी ग्रस्त है। तो इस सच को जानने के बाद आप फैसला लेते हैं की इसी समस्या को मैं ठीक करने के लिए काम करूँगा। भले ही मुझे सफलता मिले या फिर नहीं।

इस तरह जब अघोरी इस सोच के साथ काम करता है तो मजे की बात है उसे सफलता या असफलता का ख्याल ही नहीं करना पड़ता। वो कर्म करता रहता है, मरते दम तक। क्योंकी वो जानता है शिव से प्रेम होने का अर्थ है सच्चाई में जीना। अतः अब उसके कर्म ही उसकी पूजा या साधना बन जाते हैं।

फिर उसे शिव को खुश करने के लिए दूर शमशान घाट में नहीं जाना पड़ता, राख नहीं लपेटनी पड़ती। उसी सच के खातिर काम करना ही शिव की भक्ति कहलाती है। और ऐसे अघोरी को फल यह मिलता है की जीवन उसका सार्थक हो जाता है।

अब आप पाएंगे दुनिया में रहते हुए वो सब काम कर रहा है, वो गाडी भी चला रहा है, वो अच्छे कपडे भी पहन रहा है। पर सिर्फ सच्चाई की खातिर, अपने लक्ष्य की खातिर वो इस तरह जीवन जीता है।

तो संक्षेप में कहें तो अघोरी होने के लिए मनुष्य का आत्मज्ञानी होना बहुत जरूरी है, वे लोग जिन्हें खुद का ज्ञान नहीं है वो वास्तव में अघोरी हो ही नहीं सकते। क्योंकी एक बार जान लिया की ये संसार क्या है? और इसमें गंदगी कितनी है तो फिर आप उसे साफ़ किये बिना चैन नहीं पा सकते।

पढ़ें: आत्मज्ञान क्या है? आत्मज्ञानी बनने की विधि

✔  जिन्दगी में करने योग्य क्या है?

अंतिम शब्द

तो साथियों इस लेख को पढने के बाद अघोरी कौन है? कैसे बना जा सकता है? अघोरी बाबा कहाँ रहते हैं? इस विषय पर पूरी जानकारी आपको मिल गई होगी। लेख को पढ़कर अघोरियों से जुड़ा मन में कोई सवाल तो आप बेझिझक whatsapp नम्बर 8512820608 पर सांझा कर सकते हैं।

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