साधना क्या है? सच्ची साधना कैसे करें?

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मुझे सुनना है

साधना: शब्द सुनते ही दिमाग में एक ऐसे मनुष्य की छवि उभरकर आती है जो एकांत में आखं बंदकर ध्यान करता पाया जाता है। पर वास्तव में साधना क्या है? और एक आम व्यक्ति जीवन में खुश रहने, सफलता पाने के लिए साधना कैसे कर सकता है?

साधना क्या है

इस प्रश्न का जवाब आज हम इस लेख में पाएंगे। क्योंकि अक्सर हम सुनते हैं की साधना में लीन रहकर एक आम इंसान भी अद्भुत शक्तियाँ पाने के काबिल हो जाता है, जितने भी महान संत, ऋषि या ज्ञानी हुए उनमें एक बात सांझी थी उन्होंने जीवन में घोर साधना की थी।

पर आपको जानकार हैरानी होगी समाज में साधना के नाम पर कई तरह के अन्धविश्वास और भ्रांतियां फैली हुई हैं। जिनको दिमाग में रखते हुए कभी भी आप साधना शब्द के वास्तविक मतलब नहीं जान पायेंगे। तो आइये सबसे पहले जानते हैं

साधना क्या है? साधना करने का अर्थ क्या है?

किसी ऊँचे लक्ष्य को पाने की खातिर जीवन में आने वाली बाधाओं को सहन कर निरंतर आगे बढ़ने की प्रक्रिया को ही साधना कहा जाता है। दूसरे शब्दों में किसी सही कार्य को करने पर मन के विरोध को सहना ही साधना होती है।

प्रायः जब भी हम किसी बेहतर काम को करने का निर्णय लेते हैं तो मन पुरानी आदतों से लिप्त होने के कारण हमें पीछे हटने को मजबूर करता है, सौ तरह के बहाने बनाता है।

और जो लोग मन की इस दुर्बलता को अपनी सच्चाई मान लेते हैं वो अपने लक्ष्य से विचलित होकर हार मान लेते हैं, इसलिए ज्ञानियों ने कहा जिसने मन को साध (नियंत्रित) लिया उसके लिए दुनिया में जीना सरल हो जाता है।

देखिये न, हम सभी एक अच्छा जीवन जीना चाहते हैं और उसके लिए हम बुरी आदतों को त्यागकर अच्छी आदतों को भी अपनाने का विचार करते हैं।

पर उन आदतों को जीवन का हिस्सा बनाने में हमें बड़ी तकलीफ होती है। खासकर सही काम की तरफ पहला कदम बढाने में जो मुश्किल आती है, वो दर्द अधिकांश लोग सहन नहीं कर पाते। और फिर हार मान लेते हैं।

इसलिए भगवद्गीता में भगवान कृष्ण अर्जुन से बार बार इस मन को साधने की बात कहते हैं, यही मन तो है जो हमें अच्छे कर्मों की तरफ प्रोत्साहित करने की बजाय घटिया कामों को करने के लिए प्रेरित करता है।

अब सवाल आता है क्या साधना की कोई विधि होती है? क्या सुबह उठाकर आँखें बंद करने का अर्थ है कोई व्यक्ति साधना में लीन है? आइये जानते हैं यह

साधना कैसे काम करती है? साधना की सच्चाई।

साधना का दूसरा नाम है ध्यान, जो व्यक्ति ध्यान में जी रहा है जो साफ़ साफ मन में आने वाले सभी अच्छे बुरे विचारों पर गौर कर पा रहा है वास्तव में वही व्यक्ति साधना में लीन है।

साधना का अर्थ यह बिलकुल नहीं होता की आप प्रातः काल उठें और किसी ख़ास मुद्रा में 2 घंटे लगातार बैठे रहें। साधना का समाज में प्रचलित यह अर्थ थोडा बहुत लाभदाई तो है पर यह काफी नहीं है।

अगर कोई व्यक्ति कहता है की मैं 50 साल से सुबह मेडिटेशन (ध्यान) कर रहा हूँ। तो इसका अर्थ कदापि नहीं है की वो अच्छी जिन्दगी जी रहा हो, वो समाज के लिए देश के लिए कल्याणकारी काम कर रहा हो।

हो सकता है वो इंसान ध्यान रोजाना करे भीतर से लालची, डरपोक और झूठा इंसान हो। अधिकांश लोग ध्यान के नाम पर यही करते हैं। वो जिन्दगी वैसे ही जीते हैं जैसे उनका मन कहता है अर्थात वो मन को साधने की बजाय उसके इशारों पर ही चलते हैं।

लेकिन मन में एक भ्रम पाल लेते हैं की मैं भी तो रोजाना साधना करता हूँ न, तो मैं भी एक श्रेष्ठ इंसान हूँ। यदि आप भी कुछ ऐसा ही करते हैं तो सावधान हो जाइए।

सच्ची साधना वास्तव में आँख खोलने से शुरू होती है, अपने जीवन को देखना और जानना की जिन्दगी में कितने कष्ट हैं, मजबूरियां हैं, कितना अंदर से लालच, झूठ, कपट है?

ईमानदारी से अपने जीवन का हाल देखने के पश्चात अपनी कमियों को ठीक करने का अभ्यास ही साधना कहलाता है। उदाहरण के लिए मैंने देख लिया की मैं बड़ा लालची इन्सान हूँ जो हर वक्त खुद के लिए या अपनों के लिए और ज्यादा बटोरने की इच्छा रखता हूँ।

तो जब मैं अपने इस लालच को जीवन से हटाने का अभ्यास करूँगा तो मन मेरा विरोध करेगा। पैसा देखकर मन मेरा ललचाएगा पर मैं वो काम करूंगा जो सही है, मेरी यही प्रैक्टिस वास्तव में साधना कहलाएगी।

साधना करना हल्का काम नहीं है भीतर से दर्द होता है, मन को कठिनाई होती है पर जो इन्सान इस दर्द को झेलकर जिसने अपनी ही कमियों पर विजय प्राप्त कर ली, वो इंसान फिर सच्चा साधक हो जाता है।

सच्ची साधना कैसे करें?

साधना का वास्तविक अर्थ समझ लेने के बाद अब सवाल आता है जीवन में साधना करके कैसे सफलता पाई जाए? नीचे दिए कुछ चरणों को ध्यान से समझकर आप एक सच्चे साधक बनने के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं।

#1. खुद की कमियां सुधारे।

सच्ची साधना की शुरुवात होती है स्वयं को सुधारने से, क्योंकी जब तक आपके भीतर सौ कमियां हैं आप तब तक दूसरों का तो नहीं बल्कि खुद का भी भला नही कर सकते।

तो सर्वप्रथम ईमानदारी से अपने जीवन का अवलोकन कीजिये और देखें कितना कुछ है जिन्दगी में जो बलदने योग्य है।

क्या है मेरे अन्दर जिसकी वजह से मुझे झूठ के सामने झुकना पड़ता है, क्या है जिसकी वजह से मुझे दुःख, तकलीफ और दर्द झेलना पड़ता है। एक बार यह जान लिया तो अब आपके पास विकल्प है अपनी इस समस्या का समाधान करने का।

उदाहरण के लिए आप आत्मनिर्भर नहीं हो, तो जाहिर है आपको कुछ नया सीखने, घूमने और कुछ भी करने के लिए बार बार पैसों के लिए दूसरों को कहना पड़ता होगा।

जिसमें डांट भी पड़ती है, दूसरों का कहना भी मानना पड़ता है तो इस समस्या का उपाय है कोई छोटा मोटा काम कर लेना जिससे आपकी यह समस्या सुलझ सके।

#2. आत्मज्ञानी बनें।

जिस इन्सान को लगता है मेरी जिन्दगी में ईमानदारी से ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे मुझे आगे बढ़ने में तकलीफ है वो फिर दूसरे चरण में आ जाता है। अगर आपको लगता है मैं लालची नहीं हूँ, मेरे मन में डर भी नहीं है, मैं आत्मनिर्भर भी हूँ और जिन्दगी में कुछ अच्छा काम करने की इच्छा भी रखता हूँ।

तो फिर अब जिन्दगी में कुछ बेहतर करने का लक्ष्य बनाने के लिए आपको जरूरत पड़ेगी आत्मज्ञान की, प्रायः अधिकांश लोग अपनी जिन्दगी में लक्ष्य अपने परिवार या समाज के कहने पर बना लेते हैं।

वो जरा भी ये नहीं सोचते इस काम को करने से क्या परिणाम होगा? क्या और कोई बेहतर काम है जो मैं इसके अलावा कर सकता हूँ?

पर जो इन्सान आत्मज्ञानी होता है वो समझता है ये संसार क्या है, ये मन क्या है, जो इन्सान को इतना परेशान करता है? और वो ये भी जानता की मन की अंतिम चाहत क्या है? इसलिए फिर वह जीवन में सही फैसले ले पाता है।

पढ़ें: आत्मज्ञान क्या है? आत्मज्ञानी बनने की विधि

#3. जीवन में ऊँचा लक्ष्य चुनें।

आत्मज्ञान के अभाव में इन्सान जिन भी चीजों को अपना लक्ष्य बनाता है वो उसे समाज या परिवार से मिले होते हैं, प्रायः एक इंसान का सपना बड़ी गाडी, बड़ा घर लेना, सुख सुविधाएँ पाना होता है। बड़ी मेहनत से इन लक्ष्यों को इन्सान पूरा कर ले तो वो पाता है मन तो उसका भरा नहीं।

लेकिन एक इन्सान जो आत्मज्ञानी है वो जानता है इस संसार में उसे जन्म क्यों मिला है? उसके जीने का उद्देश्य क्या है? अतः इस बात को समझते हुए वो किसी छोटे मोटे कार्य को अपना लक्ष्य नहीं बनाता। वो उस काम को अपना जीवन बनाता है जिसे करके उसका जन्म सार्थक हो जाए।

जानें: जीवन में करने योग्य क्या है?

काम धंधे में मन नहीं लगता।

#4. लक्ष्य पर अड़े रहें यही साधना है।

जीवन में एक सही लक्ष्य बनाने के बाद जाहिर है उसपर चलना आसान तो होगा नहीं। आप एक ऐसा लक्ष्य बनाएं जिससे आपको खूब पैसा मिले, इज्जत मिले तो ये चीजें इंसान को बेईमानी से भी मिल जाएंगी। लेकिन अगर आप सही नियत से कोई बेहतरीन काम करने निकलें।

तो शायद ही आपकी कोई तारीफ़ करेगा, सही कार्य को करने में 50 लोग आपको पीछे धकेलते हैं। यही कारण है की अधिकांश लोग जीवन में सही काम करने से बचते हैं। पर वह इन्सान जो आत्मज्ञानी है वो जानता है लोगों की गई प्रशंसा और बुराई दोनों ही झूठी हैं।

इसलिए वो बिना इसकी परवाह किये चुपचाप अपना कर्म करता है, वास्तव में यही साधना है। एक साधक को अपने लक्ष्य के प्रति इतना प्रेम होता है की वो इसके लिए अपना समय, शारीरिक उर्जा, समय इत्यादि सब संसाधनों को झोकने के लिए तैयार रहता है।

योग साधना का अर्थ

जब दो चीजें जुड़कर आपस में एक हो जाये उसे योग कहते हैं, अध्यात्म में जो इन्सान प्रकृति के सभी अलग अलग तत्वों को एक जान ले उसे योगी कहा जाता है।

प्रायः हम जैसा जीवन जीते हैं उसमे हम कुछ अच्छा कुछ बुरा, कुछ सुन्दर कुछ अभद्र तय करके रखते हैं। यानी प्रकति के विषयों में भिन्नता देखते हैं।

हम किसी कर्म को पुण्य तो किसी को पाप कह देते हैं। पर जो योगी होता है वो जानता है पाप और पुण्य दोनों प्रकृति के तत्व हैं।

और जो कुछ इस प्रकृति अर्थात संसार का है वो सत्य नहीं हो सकता। यहाँ कुछ भी ऐसा नहीं है जो मन को तृप्त कर दे या इन्सान को पूरी तरह खत्म कर दे।

अतः एक योगी के मन में संसार के प्रति अच्छे/बुरे भाव आना बंद हो जाते हैं।

वो कहता है यहाँ जिसे हम बहुत अच्छा मानते थे उसे पाकर भी हमारा मन तृप्त न हो सका। इसलिए इस संसार से किसी भी तरह की उम्मीद रखना वो छोड़ देता है।

वो इसी धरती पर बिंदास होकर जीता है, वो घोर कर्म भी करता है, सोता भी है, खेलता भी है हर काम मनुष्य की तरह ही करता है लेकिन मन उसका खाली रहता है, ये संसार उसे ख़ुशी देगा या सुख उसे इस बात का प्रभाव नहीं पड़ता।

इसलिए भारत में योग और योगी दोनों शब्द खूबसूरत रहे हैं। योगी होना वास्तव में एक गरिमापूर्ण, महान जीवन जीने का सूचक है।

योगी की भाँती जीवन में अच्छे/बुरे को एकसमान दृष्टि से देखने का यह अभ्यास आम इंसान के लिए कठिन होता है, इसी लिए साधना यानी अभ्यास की आवश्यकता पड़ती है।

उदाहरण के लिए हम सभी के जीवन में सुख और दुःख आते रहते हैं, पर दोनों ही स्तिथि में हम कभी बहुत खुश तो कभी दुखी हो जाते हैं। लेकिन एक योगी जानता है सुख और दुःख दोनों वास्तव में मेरे ही मन की कल्पना है।

मन ही है जो ये निर्धारित कर रहा है की कौन सी चीज़ अच्छी है और कौन सी बुरी है। इसलिए जिन बातों पर अक्सर आम व्यक्ति दुखी हो जाता है उनसे योगी को कोई फर्क ही नहीं पड़ता।

इस प्रकार जब एक इन्सान के द्वारा योगी की भाँती जीवन जीने का अभ्यास किया जाता है तो यह योग साधना है।

साधना की उम्र कितनी है?

साधना की कोई निश्चित उम्र नही होती, जिस पल इन्सान को लगे की जीवन में कुछ ठीक नहीं चल रहा है, जीवन बदलना चाहिए। उसी पल से सही जिन्दगी जीने का निर्णय उसके पास होता है और यहीं से साधना की शुरुवात हो जाती है।

वे लोग जिन्हें लगता है साधना तो बुढापे का काम है, जिन्हें लगता है एकांत में वट वृक्ष के नीचे बैठकर आँख बंदकर करके भगवान को याद करना ही साधना है। ऐसे मनुष्य वास्तव में खुद को ठगते हैं और भविष्य की आड़ में वे अपने वर्तमान समय को यूँ ही गवा देते हैं।

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अंतिम शब्द

तो साथियों इस लेख को पढने के पश्चात साधना क्या है? साधना में लीन कैसे रहें? इस प्रश्न का सीधा उत्तर आपको मिल चुका होगा। अभी मन में इस लेख के विषय में कोई प्रश्न है तो आप 8512820608 whatsapp नम्बर पर सांझा कर सकते हैं। साथ ही लेख उपयोगी साबित हुआ है तो इसे शेयर करना बिलकुल मत भूलियेगा।

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