प्रेम क्या है और क्या नहीं? अध्याय 11| Sambandh Book Summary

चूँकि बिना प्रेम को समझे अच्छे सम्बन्ध बनाना बहुत मुश्किल है, और हम प्रेम के नाम पर कई ऐसी हरकतें करते हैं जो समाज को लगता ये तो प्रेम है, और इसी गलत फहमी के कारण हर उम्र के व्यक्ति को लगता है प्रेम के बारे में तो वो सब जानता है। (प्रेम क्या है और क्या नहीं~ अध्याय 11)

प्रेम क्या है और क्या नहीं

आचार्य जी सम्बन्ध नामक इस पुस्तक के ग्याहरवें अध्याय में हमें बताते हैं की क्या वास्तव में प्रेम है और क्या नहीं? आइये इस चैप्टर की समरी का अध्ययन करके हम जीवन में और बेहतर प्रेम पूर्ण सम्बन्ध बनाने का प्रयास करते हैं।

प्रेम सीखने के लिए पुराना भूलना है जरुरी

प्रश्नकर्ता: प्रेम क्या है?

आचार्य जी इस अध्याय की शुरुवात एक उदाहरण के साथ करते हुए कहते हैं एक समय की बात है एक संगीतज्ञ के पास दो लोग संगीत की शिक्षा लेने आये!

उनमें से एक संगीत से बिलकुल अनभिज्ञ था जबकि दूसरे ने तीन वर्ष संगीत को सीखा हुआ था अतः वो संगीत की कला को निखारने के लिए वो गुरु के पास आया था।

गुरु उस नौसिखिया व्यक्ति को कहते हैं तुम्हें सिखाने के 10 हजार लूँगा और एक साल का समय लगेगा, लेकिन वहीँ दूसरा व्यक्ति जो संगीत का अनुभवी था, उसे कहते हैं तुम्हें सिखाने में 5 वर्ष और 5 गुना दाम ज्यादा लगेगा।

यह सुनकर दूसरा व्यक्ति चौंक जाता है और गुरु के ऐसा कहने का कारण पूछता है तो जवाब में गुरु कहते हैं की ये नौसिखिया है इसे संगीत सिखाना सरल है। लेकिन तुम्हें 4 साल वो भुलाने में लगेंगे जो 3 सालों में तुमने सीख लिया है।

इसलिए तुमसे अधिक दाम लिया जायेगा, तो यही स्तिथि हमारे साथ भी है आचार्य जी कहते हैं मै तुम्हें वास्तविक प्रेम का मतलब सरलतापूर्वक बता दूंगा! लेकिन प्रेम की जो धारणाएं तुम बचपन से बनाते आये हो उसे भुलाने में समय लगेगा।

प्रेम ये बिलकुल नहीं!

हिंदी फिल्मों को देखकर जो तुमने प्रेम को समझ लिया है उसने तुम्हारी बुद्धि में भ्रम डाल दिया है, इसलिये प्रेम क्या है ये समझने से पहले ये बातें जान लीजिये जिनको प्रेम बिलकुल नहीं कहा जा सकता।

दूसरे पर मालकियत करने का नाम प्रेम नहीं है, जैसा अक्सर शादी के बंधन में होता है।

किसी से मोह हो जाना या लगाव होना भी प्रेम नहीं है।

शरीर में कुछ हार्मोन उठे, किसी के प्रति आकर्षण हुआ ये भी प्रेम नही है।

अपने परिवार के लिए मैं अच्छा हूँ बाकी दुनिया के लिए बेवफा ये भी प्रेम नहीं है।

किसी पर निर्भर हो जाना ये भी प्रेम नहीं है।

ना ही प्रेम कोई रोमांचक कथा है।

अरे ये सब प्रेम नहीं है तो प्रेम और क्या है फिर? बचपन से हमने तो यही जाना है यही लव होता है करके।

आचार्य जी तब कहते हैं प्रेम सीखना मुश्किल नहीं है, प्रेम की तुम्हारी इन्हीं पुरानी धारणाओं, आदतों को भुलाना बड़ा मुश्किल है इसलिए तो गुरु वहां 4 साल का समय लेते हैं सिर्फ सीखे गए संगीत को भुलवाने के लिए।

और अब मैं जो आपको प्रेम के बारे में बतलाने वाला हूँ वो मुझे पता है तुम्हारे यहाँ (मस्तिष्क में ) बैठेगा नहीं, पर फिर भी सुन लो कुछ तो नया पता चलेगा।

आखिर सच्चा प्रेम क्या है?

एक सच्चा प्रेम तुम्हारे मन की वह स्तिथि है जब तुम स्वयं में पूर्ण होते हो तुम्हें शांति, आनदं के लिए किसी दूसरे वस्तु या व्यक्ति पर निर्भर नहीं होना पड़ता! मन जब इस स्तिथि में आता है तो वहां बहुत हल्कापन होता है, मन निर्मल होता है और मन में चलने वाला उपद्रव खत्म हो जाता है।

अतः व्यक्ति को प्रेम पाने के लिए दूसरे की जरूरत ही नहीं होती, उसके मन में न तो कोई इच्छा रहती है, न तनाव रहता है और न ही कुछ इक्कठा करने की जरूरत होती है! यही मनोस्तिथि जिसमें मन को पूर्णता का अहसास होता है वही वास्तव में सच्चा प्रेम कहलाती है।

और जब इन्सान का मन स्वयं ही आनंदित रहता है तो फिर वह इस प्रेम को दूसरों के साथ भी बांटना चाहता है वो फिर चाहे किसी इंसान से मिले या जानवर से वो कुछ पाने की आशा से नहीं बल्कि प्रेम बांटने की आशा से रिश्ते बनाता है।

अब कुछ लोग कहेंगे सर ऐसे तो जिन्दगी में हमें किसी से प्रेम मिलेगा ही नहीं? जी नहीं मिलेगा, जब तक तुम खुद प्रेम को नहीं पा लेते, जब तक तुम आनन्दित नहीं रह जाते तब तक कोई दूसरा तुम्हारे मन को सूनेपन से नहीं भर सकता, उल्टा ये छोडो तुम किसी को प्रेम दे भी नहीं सकते अगर तुम्हारे जीवन में प्रेम नहीं है।

सम्बन्ध पुस्तक के पिछले अध्याय 👇

« Chapter 10 | प्रेम बेहोशी का सम्बन्ध नहीं

« साथ हैं, क्योंकि प्रेम है, या आदत है? Chapter 9

अंतिम शब्द

तो साथियों इस तरह अध्याय में आचार्य जी हमें प्रेम क्या है और क्या नहीं? इस मुद्दे को बड़े ध्यान से समझाते हैं। ताकि बात हमें समझ आने लगे, अगर आप इस अध्याय में आचार्य जी द्वारा कही गई एक-एक बात को समझना चाहते हैं तो Amazon से यह पुस्तक आर्डर कर सकते हैं!

Leave a Comment