Chapter 10 | प्रेम बेहोशी का सम्बन्ध नहीं | Sambandh Book Summary

कई बार जीवन में होता है की कोई व्यक्ति हमारे घर में या जीवन में आता है और कुछ समय उसके नजदीक रहकर हमें वो बहुत अच्छा लगने लगता है पर जैसे ही वो व्यक्ति जाने लगता है हमें बड़ा दुःख होता है। ( Chapter 10 प्रेम बेहोशी का सम्बन्ध नहीं)

प्रेम बेहोशी का सम्बन्ध नहीं

कई बार तो अगर उस इंसान, जानवर या किसी अन्य चीज़ से लगाव हो जाये तो लगता है उसके दूर होने से जिन्दगी ही चली गई? स्वयं मुझे ऐसा अनुभव हुआ है और मुझे लगता है आपके साथ भी जीवन में ऐसे अनुभव हुए होंगे, आचार्य जी हमें इस प्रश्न का उत्तर विस्तार से दे रहे हैं।

जीवन आंतरिक है

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी कोई व्यक्ति जिसे हम प्रेम करते हैं, उसके जीवन में आने से हमारा जीवन अस्त-व्यस्त क्यों होने लगता है? क्यों अधिकतर मामलों में इसका नेगेटिव असर ही पड़ता है?

आचार्य जी: क्योंकि कोई है ही नहीं तुम्हारी जिन्दगी में जो आता जातो हो, बल्कि तुम हर किसी को जिन्दगी बना बैठते हो, भई कोई आया तुम्हारे घर में मेहमान बनकर ठीक है, और अब वो कुछ दिनों बाद गया तो घर ही लेकर चला गया अब तुम कह रहे हो घर कहाँ गया वो तो ले गया।

ऐसी स्तिथि है तुम्हारी जो आता है उसी को जिन्दगी बना लेते हो, कोई आये जीवन में तुम्हारे तुम उसका स्वागत करो, उसके साथ बेहतर सम्बन्ध बनाओ ठीक है और अंत में उसे विदा कर दो प्रेम से।

लेकिन यहाँ ऐसा नहीं होता, मेहमान के जाते ही हमें गाना पड़ता है जिन्दगी बन गए हो तुम… तो उसके जाते ही सिर्फ एक इंसान जाता नहीं बल्कि क्या चला जाता है।

श्रोतागण: जिन्दगी

आचार्य जी: और बस फिर दिन रात उसी के ख्यालों में जीवन गुजरता है और चूँकि किसी के जाने से जिन्दगी गई है तो जिन्दगी अब लौटेगी भी कब? जब कोई आएगा है न क्योंकि इस जिन्दगी के 2 हाथ 2 पैर है जो कभी आती है और कभी चली जाती है।

तो इस सबसे बचना है तो ये बात याद रखना की जीवन में कोई भी इतना महत्वपूर्ण नहीं है की जो तुम्हारे जीवन में प्रवेश करके तुम्हारी आंतरिक शांति को, समझ को छीन ले और तुम्हें उदास छोड़ दे।

किसी के भी साथ सम्बन्ध बनाओ तो याद रखो जीवन आंतरिक है इसलिए बाहर बाहर जितनी भी घटनाएँ घट रही हैं, जो भी लोग जीवन में आते हैं उनसे अच्छे सम्बन्ध स्थापित करो, उन्हीं को जिन्दगी मत बना लेना।

होश में रहोगे तो झटके नहीं खाओगे

जीवन को जानना ही जीना है वास्तव में, तो होश में अगर जीवन व्यक्ति जी रहा है तो वो देखेगा साफ़ साफ़, समझेगा की सच क्या है कोई व्यक्ति हमसे सम्बन्ध बना रहा है तो उसका उद्देश्य क्या है? और मैं क्यों उसकी तरफ आकर्षित हो रहा हूँ या रही हूँ?

बेहोसी में बिना समझे बूझे रिश्ता बनाना वैसा ही है जैसे दो शराबी एक दुसरे से कहें हम तुमसे बहुत प्यार है! आओ गले मिलते हैं और अब कर क्या रहे हैं एक दूसरे से गले मिलने की बजाय एक दूसरे का कपाल फोड़ रहे हैं।

जो प्रेम बेहोशी में होता है वो सिर्फ दुःख देता है! इन्सान से हो या किताब से या किसी जानवर से सभी से रिश्ता जागृति का बनाइए।

ये नहीं की उम्र के साथ कुछ हार्मोन्स शरीर में उठ रहे हैं और इसे प्रेम का नाम दे रहे हो एक लोहा भी तो चुम्बक की ओर आकर्षित होता है, है न तो ठीक इसी तरह एक पुरुष- स्त्री से आकर्षित होता है इस उम्र में क्योंकि रसायन तेजी से उठते हैं।

और अगर इसी शारीरिक उत्तेजना को प्रेम कहोगे तो कुछ समय के बाद ये उत्तेजना शांत भी होगी! और फिर अपने प्रेम को कहोगे चल निकल।

इस हार्मोन्स के खेल को प्रेम मत मानना, प्रेम बेहोशी का सम्बन्ध नहीं!

सम्बन्ध पुस्तक के पिछले अध्याय 👇

« साथ हैं, क्योंकि प्रेम है, या आदत है? Chapter 9

« प्रेम और विवाह | Chapter 8

« झूठा प्रेम | Chapter 7

अंतिम शब्द

तो साथियों अगर आप सम्बन्ध नामक इस पुस्तक के दसवें अध्याय (प्रेम बेहोशी का सम्बन्ध नहीं) को विस्तार से पढना चाहते हैं तो Amazon से यह पुस्तक ऑर्डर कर सकते हैं, अगर यह अध्याय पसंद आया है तो इस लेख को शेयर भी कर दें!

Leave a Comment