जानिए ध्यान और एकाग्रता में अंतर | आपके लिए क्या सही?

कई सारे लोग ये मानते हैं की पढ़ाई में या अपने जरूरी कार्यों में ध्यान के लिए एकाग्रता (कंसंट्रेशन) का होना बहुत जरूरी है, आखिर ध्यान और एकाग्रता में क्या अंतर है जरा गौर से समझते हैं।

ध्यान और एकाग्रता में अंतर

एकाग्रता को बढाने के लिए हमें इन्टरनेट पर अनेक टिप्स मिल जाते हैं, पर अफ़सोस जब हम उन उपायों को जीवन में अपनाते हैं तो वो हमारे काम नहीं आते।

तो इससे पहले की एकाग्रता बढाने की किसी भी विधि को आप आजमायें, आपके लिए धयान और एकाग्रता इन दोनों शब्दों को ध्यान से समझना होगा। ताकि आपके सामने वो सीक्रेट खुल जाए की क्यों कोई चीज़ सही है यह जानने के बाद भी हम उसपर ध्यान नहीं लगा पाते।

ये सवाल आज के विद्यार्थियों और नौजवानों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है तो चलिए इस लेख की शुरुवात करते हैं और समझते हैं की

ध्यान और एकाग्रता

ध्यान से आशय जीवन की उस अवस्था से है जब इंसान होश में होकर इस संसार को देखता है, निर्णय लेता है। जागृति का दूसरा नाम ही ध्यान है। ध्यान मनुष्य का स्वभाव है, उसका अधिकार है, ध्यान के बिना  मनुष्य का हर निणर्य बेहोशी में होता है।

आँख बंद कर लेना और घंटों एक ही मुद्रा में बैठ लेने का यह अर्थ कदापि नही की कोई मनुष्य ध्यानी है। वास्तविक ध्यान तो मनुष्य की आँखें खुलने के पश्चात शुरू होता है कोई व्यक्ति ध्यानस्थ है अर्थात जगा हुआ है या नहीं आसानी से उसके कार्यों में तथा उसके जीवन की हर गतिविधि में देखा जा सकता है।

दूसरी तरफ एकाग्रता वो माध्यम है जो इंसान को ध्यानस्थ अर्थात ध्यानी होने के लिए बनाई गई एक विधि है। इस संसार में बहुत सी वस्तुएं हैं जो लगातार मनुष्य को अपनी तरफ आकर्षत कर आपका ध्यान भटकाती हैं।

अतः बाकी सभी चीजों को छोड़कर एक चीज़ जो परम आवश्यक है, महत्वपूर्ण है उस पर फोकस करना ही एकाग्रता कहलाती है।

ध्यान और एकाग्रता में अंतर

ध्यान मनुष्य का स्वभाव है, सच्चा और सार्थक जीवन जीने के लिए ध्यान बेहद आवश्यक है, दूसरी तरफ एकाग्रता वो विधि है जो आपको ध्यान की उस अवस्था तक ले जाने में मदद करती है, जहाँ पहुँचने के बाद आपको ध्यान लगाने के लिए कोई प्रयास नही करना पड़ता।

जैसे दूर कहीं मंजिल है और वह मंजिल ही ध्यान है जहाँ तक पहुँचना आपका मकसद है। तो अब उस मंजिल तक पहुँचने का जो रास्ता है उसे हम एकाग्रता कहेंगे। हम जब भी अपनी मंजिल से भटकेंगे तो वो रास्ता यानि एकाग्रता हमें याद दिलाएगी की बाएं, दायें नहीं सिर्फ सीधा चलना है क्योंकि इसी रास्ते पर हमारी मंजिल है।

खास तौर पर शुरुवात में एकाग्रता की उपयोगिता बहुत बड जाती है, क्योंकि शुरू में मन आपका बड़ा विरोध करता है किसी भी सही चीज़ को करने में, जैसे आप सुबह 5 बजे उठने का मन बनाएं लेकिन सुबह अलार्म बजे और आप जैसे ही उसे बंद करने के बारे में सोचें।

तो एकाग्रता कहेगी की नींद पर फोकस नहीं करना है अभी उठना है और जरूरी काम को करना है, इस तरह एकग्रता आपको नींद,आलस्य, ठंडी, गर्मी जैसी फालतू की चीजों से आपका ध्यान हटाकर आपको अपने लक्ष्य की तरफ ले जाती है। और कुछ दिनों तक जब आप एकाग्रता से सुबह उठते हैं तो समय बाद वो आपकी आदत बन जाता है।

अब आपको उठने के लिए एकाग्र होना नहीं पड़ता, अब आप ध्यानी हो चुके हैं अब आप खुद ही निकल पड़ेंगे। इसलिए कोई भी आप काम करें शुरू में एकाग्रता का होना बहुत जरूरी है।

ठीक वैसे जैसे शुरू में साईकिल चलाना सीखते हैं तो हमारा फोकस यानी एकाग्रता कभी हैंडल पर तो कभी पैंडल पर होता है न, लेकिन जैसे जैसे हम सीखने पर फोकस करते हैं एक समय बाद साइकिल आसानी से चलने लगती है अब आपको टायर, पैंडल और हैंडल की तरफ देखने की जरूरत नही पड़ती।

इसी तरह लाइफ में हर वो काम जो सही है उसे करने में शुरू में एकाग्रता चाहिए होती है, पर जैसे जैसे आप उसे रोजाना करते हैं तो फिर वो आपकी आदत बन जाती है, फिर आपको ध्यान लगाना नही पड़ता ध्यान हो जाता है, इसलिए कहते हैं ध्यान करते नहीं ध्यान होता है।

क्या ध्यान करने से एकाग्रता बढती है?

कई लोग घंटों मेडिटेशन करते हैं ताकि वे ध्यानस्थ हो सके और सही चीज़ पर दिन भर फोकस के साथ काम कर सकें या पढ़ाई कर सकें।

एकाग्रता बहुत लाभदाई विधि है जो हमें अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ने में सहायता करती है। पर आपने देखा होगा कई बार हम एकाग्र होने का प्रयास करते हैं पर कुछ समय बाद ध्यान भंग हो जाता है, या मन उस काम को करने के लिए विरोध करता है।

वास्तव में एकाग्रता की विधि हर काम में आपको ध्यानी नहीं बना सकती। जी हाँ यदि हम आपसे कहें की कोई कचरा है इस पर फोकस करिए 5 मिनट तक और तब तक करते रहिये रोजाना जब तक आप कूड़े को देखने के आदि न हो जाएँ।

पर बताइए क्या यह संभव हो पायेगा? नहीं न आप 5 मिनट तक तो किसी तरह देख लेंगे लेकिन उसके बाद आप कहेंगे की नही ये मुझसे नहीं हो पायेगा।

जाहिर सी बात है होना भी नहीं चाहिए। पर हम ऐसे ही लोग हैं हम जिन्दगी में गलत लक्ष्य चुनते हैं, दूसरों की देखा देखी कोई भी फालतू काम चुन लेते हैं और फिर उम्मीद करते हैं की इसपर हमारा ध्यान लग जाए और मन भटकने न पाए।

पर दोस्त। कोई भी फ़ालतू का काम करने से मन आपका शांत नही होगा। शांति इतनी सस्ती चीज़ नहीं होती की आप किसी भी ऐरे गैरे काम को करें और उससे शांति पाने की उम्मीद रखें।

हाँ रुपया पैसा कोई भी व्यर्थ का काम करने से मिल जायेगा, पर शांति पाने के लिए मन को तृप्त करने के लिए आपको कीमत तो चुकाने के लिए तैयार रहना पड़ेगा।

ऐसा सम्भव नहीं है की आप घटिया नौकरी या जीवन जियें और उसके बाद शांति की भी आशा रखें, बिलकुल नहीं जिस तरह कूड़े पर आप अपने ध्यान को एकाग्र नहीं कर सकते उसी तरह घटिया जीवन जीकर आप शांत नहीं रह पाओगे।

अतः सोच समझकर जीवन में ऐसा कोई काम चुन लीजिये जिससे प्रेम हो जाये, जिसमें भले रुपया पैसा कम मिले, लेकिन काम ऐसा हो जिसे करके आपको भीतर से यह महसूस हो की गर्व है मुझपर की मैंने सही काम चुना है, क्या हुआ थोड़ी तकलीफ भी झेलनी पड़ेगी तो उसके लिए भी मैं खुद को तैयार करूंगा।

ये होता है जज्बा, अब ऐसे काम में भले आपका मन विरोध करे लेकिन कुछ दिनों तक एकाग्रता से आप यह काम कर लेते हैं तो निश्चित रूप से कुछ दिनों में वो काम आपका ध्यान बन जायेगा। पर चूँकि हमारे भीतर लालच और कुछ नया करने से डर हमें इतना लगता है की हम जो चीज सही है उसे करने से हमेशा कतराते हैं।

और इसकी बजाय एक बेचैनी, तनावपूर्ण और घटिया जीवन जीने के लिए मजबूर हो जाते हैं।

योग और ध्यान में अंतर

योग से आशय दो चीजों को आपस में जोड़ने से है, जब दो तत्व आपस में मिलकर एक हो जाते हैं यही योग है। अच्छा बुरा, पुन्य पाप, जो दोनों को एक समान जान ले ऐसा इंसान योगी हो जाता है।

हम इंसान द्वैत में जीते हैं हम एक को अच्छा तो एक को बुरा मानते हैं। हमारे मन में एक बात तय है की कौन सी चीज़ अच्छी है और कौन सी चीज़ को हाथ नही लगाना है।

योग हमें बताता है की ऐसा करके तुम सच्चाई से दूर रह जाओगे। तुम कभी जान ही नही पाओगे की ये सुख और दुःख दोनों झूठ हैं। तुम्हें यदि अपने भ्रमों से बाहर आना है तो तुम्हें दोनों को एक सा देखना होगा।

तुम्हें अगर जीवन इतना प्यारा लगता है तो जरा मौत को भी करीब से जानो। जब खुश होना इतना सुहाता है तो दुःख होने की हालत को भी समझो। जो ये जान लेता है की जो कुछ भी है वो एक ही है फिर उसे योगी की संज्ञा दी जाती है।

और जो इन्सान संसार के एक हिस्से को अच्छा समझकर उसी के अनुरूप पूरा जीवन जीता है, वो जिन चीजों को गलत मानता था उनके करीब जाने का उसने प्रयास ही नही किया ऐसा इन्सान सच नही जान पाता। वो अधूरा जीवन जीता है उसे लगता है जो मैं जानता हूँ वही सच है।

हालाँकि योगी होने का यह अर्थ बिलकुल नही की तुम जिन चीजों को बुरा मानते हो उन चीजों को करने में जीवन बिता दो नहीं, योगी होने का अर्थ है ये जान लेना की कोई चीज़ बुरी या अच्छी नहीं होती बस होती है। शराब बुरी नहीं होती पीने वाला बुरा होता है, सम्भोग बुरा नही होता करने वाले की मंशा बुरी हो सकती है।

दूसरी तरफ ध्यान हमें एक योगी की भाँती जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है, ध्यान कहता है तुम सच्चाई जान लो इस संसार की और फिर उसी के अनुरूप जीवन जियो यही ध्यान है।

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अंतिम शब्द 

तो साथियों इस पोस्ट को पढने के बाद ध्यान और एकाग्रता में अंतर क्या है? अब आप भली भाँती समझ गये होंगे इस पोस्ट को पढ़कर कोई सवाल हैं या सुझाव हैं कृपया कमेन्ट बॉक्स में बताएं साथ ही इस मुद्दे पर आपकी कोई राय है तो आप हमें 8512820608 नंबर पर सांझा कर सकते हैं।

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