प्रेम में अशांति Chapter 19| Prem Sikhna Padta hai Full Summary in Hindi

जब एक जोड़े के बीच प्रेम-प्रसंग की शुरुवात होती है या उनके बीच का यह रिश्ता काफी पुराना हो जाता हैं तो फिर भी उनके बीच आपसी नोंक झोंक बनी रहती है। कई बार तो वाद-विवाद की घटनाओं को वो सामान्य मानने लगते हैं और उन्हें प्रेम में अशांति की आदत सी हो जाती है।

प्रेम में अशांति

अतः इसी को लेकर एक प्रश्नकर्ता ने आचार्य जी से सवाल पूछा है, वे लोग जो किसी से भी जीवन में प्रेम करते है परन्तु उनके जीवन से शांति गायब हो गई है, उन्हें यह अध्याय अंत तक जरुर पढना चाहिए।

प्रेम में अशांति की मुख्य वजह

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी जिससे मुझे प्रेम है, उसका मन विचलित बेचैन रहता है, और उसकी इसी अशांति की वजह से कई बार मैं भी परेशान हो जाती हूँ।

आचार्य जी: अपने प्रेम से स्वार्थ कम कर दीजिये, क्योंकि प्रेम में जैसे ही स्वार्थता आती है फिर वो प्रेम नहीं रह पाता वो बस भोगने का माध्यम बन जाता है! प्रेम में ये नहीं देखा जाता मुझे कितना कम मिला? तुझे कितना मिला?

अगली बार जब साथ बैठो और आपस में कोई विवाद हो तो पूछियेगा खुद से की ” ये सब कुछ मैं कहीं कुछ पाने के लिए तो नहीं कर रही हूँ”

क्योंकि प्रेम में हो आप तो यही सबसे बड़ी चीज़ है, आपका प्रेम ही सब दवाइयों का इलाज है! प्रेम है वाकई किसी से तो अपनी इच्छाएं, कामनाएं जरा साइड में रखकर दूसरे को आगे रखिये, क्यूंकि जब प्रेम होता है किसी व्यक्ति से तो वह आपके जीवन में विशेष स्थान लेने के काबिल होता है।

जब कोई आपके प्रेम को न समझे

प्रश्नकर्ता: अपनी तरफ से सब कुछ करने के बाद भी सामने वाले को फर्क नहीं पड़ता ऐसा क्यों?

आचार्य जी: तो इसका मतलब है जिसे आप ऊँचा स्थान दे रही है अपने जीवन में वो इस काबिल है ही नहीं, क्योंकि तुम किसी के लिए खुद को पीछे रख रहे हो और सामने वाले को इस बात का बड़प्पन ही नहीं है तो फिर बात बनेगी नहीं न।

याद रखो भक्त को भगवान को पाने के लिए खुद को छोटा और छोटा करना होता है और भगवान को और बड़ा होना होता है।

इस बीच प्रश्नकर्ता पूछती हैं आचार्य जी इन सब में गुरु का स्थान कहाँ पर है?

आचार्य जी कहते हैं गुरु का तो काम हो गया, उसने भक्त को भगवान से मिला दिया बस वो दूर बैठा हंस रहा है, यह कहते हुए की चलो एक का और कल्याण हो गया।

जीवन में सही रास्ते पर कैसे चलें ?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी हम अपने सही या गलत का चुनाव कैसे कर सकते हैं?

आचार्य जी: अभी आपको जितना पता है आप उस पर चलिए, क्योंकि अगर आप इस बात का इन्तेजार करते रहे की कभी मुझे विशुद्ध सत्य प्राप्त होगा तभी मैं जीवन में उचित कार्य करूँगा! तो फिर ऐसा नहीं होने वाला।

एक व्यक्ति का उदाहरण देते हुए आचार्य जी कहते हैं की जरूरी नहीं आपको अष्टावक्र गीता के 20 के बीसों अध्याय समझ आये, आपको अगर 5 ही श्लोक समझ आ रहे हैं तो आप उनका ही स्मरण कीजिये! और आगे बढिए।

परन्तु जीवन में हम अधिकांश गलतियाँ इसलिए नहीं करते क्योंकि हमें बोध नहीं होता बल्कि हम जानते बूझते हुए की अभी क्या करना उचित है फिर भी नहीं करते! तो गलती से किसी गड्ढे में गिर गए तो मान लेंगे चलो देखा नहीं पर जब आखों देखी मक्खी निगल जाते हो तब..

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अंतिम शब्द

तो साथियों इस तरह इस अध्याय में आचार्य जी प्रेम में अशांति के कारण और निवारण की विस्तार से चर्चा करते हैं, अगर आप इस बेहतरीन अध्याय को डिटेल में पढना चाहते हैं तो आप Amazon से यह पुस्तक ऑर्डर कर सकते हैं।

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