हमारे रक्त-रंजित सम्बन्ध | अध्याय 4 | Sambandh Book Summary

सम्बन्ध नामक इस पुस्तक के चौथे अध्याय में आचार्य जी समझाते हैं की आम लोगों का प्रेम कैसे रिश्तों में अपने फायदों के लिए किसी की जान भी ले लेता है। (हमारे रक्त-रंजित सम्बन्ध ~ Chapter 4 Summary)

हमारे रक्त-रंजित सम्बन्ध

जी हाँ, हमारी रोजमर्रा की जिन्दगी में अधिकतर सम्बन्ध खून के प्यासे भी होते हैं, पर चूँकि हम होश में नहीं होते इसलिए हमें लगता है यह कैसे संभव है? आइये इस अध्याय को पढ़कर प्रश्नकर्ता और आचार्य जी की बातचीत को ध्यान से सुनते हैं।

प्यार, निवेश और व्यापार

प्रश्नकर्ता:- आचार्य जी जब माता पिता हमारी शिक्षा, अच्छी परवरिश हेतु इतना निवेश कर रहे हैं, तो ये बात तो लाजिमी है न की वो हमसे भविष्य में कुछ पाने की भी उम्मीद रखे? इसमें गलत क्या है?

आचार्य जी: ये रिश्ता व्यापार का है।

प्रश्नकर्ता: पर सर जीवन तो ऐसे ही चलता है न।

आचार्य जी: जी, पर अगर रिश्ता ही इस बात पर आधारित है की मैंने तुम पर इतना लगाया, और अब वसूली का समय आ गया है। तो ये प्रेम का रिश्ता नहीं हो सकता ये व्यापार है, हमने पहले भी इस बात को स्पष्ट किया है की जहाँ प्रेम है वहां कुछ लेने की अपेक्षा नहीं की जाती।

आप जिसे प्रेम कह रहे हैं इसी का तो अंजाम है भ्रूण हत्या जैसे गम्भीर अपराध! आज भी लड़के को एक पैसा देने वाली मशीन माना जाता है यही कारण है की जब हजार लड़के पैदा होते हैं तो उसके पीछे सौ ही लड़कियां पैदा होती हैं।

ये सब कहाँ गायब हो जाती हैं, क्योंकि दिमाग में एक बात तय है लड़का होगा तो उसपर आज निवेश करने पर उससे बुढापे में रीटर्न और सुरक्षा भी मिलेगी। लेकिन लड़कियां चूँकि यह नहीं कर पाएंगी तो इन्हें पैदा होने से पहले ही मार दो।

प्रेम नहीं तो क़त्ल होता है।

तो इस तरह खून के प्यासे हमारे सम्बन्ध ये साफ़ बतलाते हैं की जहाँ प्यार और व्यापार साथ आते हैं वहां फिर क़त्ल, हिंसा होती है।

जानते हो कई लोग यहाँ जो बैठे हैं तुम्हारे पैदा होने से पहले कई लड़कियों की लाश गिरी होगी, तो ये है तुम्हारे प्रेम की हकीकत, सोचो न अगर प्रेम होता और लेने की कोई कामना नही होती तो फिर न तो भ्रूण हत्या होती और न लड़का और लड़की के बीच का ये भेद!

पर ये सब होता है क्योंकि प्रेम ही नहीं है, सिर्फ व्यापार है और ये घटनाएँ जो आपको बता रहा हूँ सदियों पुराने नहीं है आज भी गावों, कस्बों में खूब देखने को मिल जायेंगी।

तो जरा सा अगर चौंकन्ने हो जाओ, होश में रहो तो पता चलेगा प्रेम के नाम पर हमारे सम्बन्धों में क्या-क्या हो रहा है, और सब समझ आने लग जायेगा।

इस पुस्तक के पिछले अध्याय 👇

« क्या मित्रता बेशर्त होती है? Chapter 3

« माँ- बाप समझते क्यों नहीं? Chapter 2|

अंतिम शब्द

तो साथियों इस तरह आचार्य जी इस वार्ता को विराम देते हैं, सम्बन्ध नामक इस पुस्तक के चौथे अध्याय (हमारे रक्त-रंजित सम्बन्ध) को अगर आप विस्तार से पढना चाहते हैं तो Amazon से यह पुस्तक ऑर्डर कर सकते हैं!

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