किसी को लगता है प्यार करना एक सजा है तो कोई कहता है बिना प्रेम के जीवन जीना बेकार है, अब भला किसकी बात सुनी जाए? क्या प्यार करना गलत है? किसी इंसान से लगाव होना कितना सही है?
प्यार में लोगों का दिल टूटता है? और कैसे प्यार आपकी ताकत बन जाता है, ये समझे बिना कोई यह निर्णय नहीं ले सकता की प्यार करना सही है या नहीं। क्योंकि अगर आप किसी के अनुभव या फिल्मों को देखकर सोच रहे हैं प्यार तो बड़ी बेकार चीज़ है।
या फिर प्यार करके बड़ा मजा आता है, तो जनाब कृपया ध्यान से इस लेख को पढ़िए, यकीनन मेरा दावा है आपको कुछ ऐसी हकीकत जानने को मिलेगी जिससे प्यार के बारे में आपकी सोच बदल जायेगी।
प्यार क्या है? प्यार होने का सही मतलब क्या है?
जब एक इंसान किसी दूसरे इंसान, प्राणी से लाभ, हानि की आशा के बिना उसकी भलाई हेतु तत्पर रहे ऐसे मनुष्य को प्रेमी कहा जाता है।
अतः किसी से प्यार होने का सीधा मतलब है आप बिना किसी मतलब के दूसरे का भला चाहते हैं।
पर समाज में प्यार का अर्थ थोडा अलग है, जब एक व्यक्ति अपने से विपरीत लिंग यानि पुरुष एक महिला से और महिला पुरुष से आकर्षित होती है तो हम कहते हैं दोनों के बीच प्यार हो गया।
लेकिन आकर्षण और प्रेम दोनों अलग चीजें हैं, आप किसी भी भोजन, वस्तु या जगह को देखकर आकर्षित हो सकते हैं, पर इसका अर्थ यह नहीं की आपको उससे प्रेम हो गया।
प्रेम सिर्फ मात्र तब है जब आपके जीवन में कोई ऐसा शक्स हो जिसका आप भला चाहें, और उसकी बेहतरी के लिए आप अपना नुकसान भी झेलने को तैयार हो जाये। वह शक्श कोई भी हो सकता है आपका मित्र, माता पिता, या कोई और।
तो जो लोग जानना चाहते हैं उन्हें प्रेम हुआ है या नहीं वो सिर्फ ये पूछ लें खुद से की क्या मैं जिस इंसान के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता हूँ?
क्या मैं उससे कुछ पाने की तो इच्छा नही रखता। जैसे पैसा, उसके शरीर का सुख,इज्जत, सुरक्षा इत्यादि कुछ भी ।
अगर कुछ लेने की ख्वाहिश उस इंसान से नहीं है तो इसे शुद्ध प्रेम कहा जाता है।
कृष्ण भी हमसे ऐसा ही प्रेम करते हैं उन्हें हमसे या जानवरों से या प्रकृति से कुछ पाना थोड़ी है फिर भी वो लगातार हमारे साथ हैं मानों हमें सही जीवन जीने के लिए लगातार प्रेरित कर रहे हों।
क्या प्यार करना गलत है? पाप है या सही है?
जी नहीं प्यार करना सही है क्योंकि जीवन में उत्साह, उमंग और आनंद एक व्यक्ति को बिना प्रेम के मिल ही नहीं सकता। किसी इन्सान का जीवन यदि बे रौनक, रंगहीन है तो समझ लीजिये ये इंसान प्रेमहीन है।
प्यार तो हम मनुष्य को ईश्वर द्वारा दिया गया एक ख़ास तोहफा है, जो सिर्फ मनुष्यों को मिला है। वरना सारी चीजें जैसे डर, लालच, क्रोध, इत्यादि सब कुछ जो एक इन्सान में है वो जानवरों में भी होता है।
ध्यान दें मोह जो जानवर और इन्सान दोंनो में होता है अपने और अपने परिवार के लिए, वो प्रेम नहीं होता।
प्यार तो बड़ी ख़ास चीज है, जिसे हो जाता है फिर उसमे बड़ी ताकत आ जाती है, वो फिर इन्सान किसी के रोकने से नहीं रुकता।
इसलिए तो कुछ भी सुन्दर और बेहतर हम इंसानों को मिला हुआ है ये सब उनकी बदौलत है जिन्हें मानव से और इस प्रकृति से प्रेम था।
जो मानते हैं और कहते हैं प्यार में दिल टूटता है ऐसे लोगों के लिए प्यार सिर्फ प्रेमी और प्रेमिका का आपस में मिलन है, जैसे चुम्बक में आकर्षण होता है उसी तरह ये लोग जब किसी से आकर्षित होते हैं तो वे इसी आकर्षण को प्रेम कह देते हैं।
वास्तव में प्यार बहुत बड़ी बात होती है वो ऐसे ही ऐरे गैरे को नहीं हो सकता। प्यार खुद नहीं होता करना पड़ता है, वो कोई गुस्सा, भूख, थोड़ी है की हो जायेगा। सही चीज़ जो दिल लगाने के काबिल है उसे जानकार उससे प्यार करना पड़ता है।
प्यार गलत या पाप कब होता है?
प्यार गलत तब है जब हम आकर्षण को प्यार समझ लेते हैं, देखिये प्रकृति ने पुरुष और महिला दोनों को बनाया है, और एक ख़ास उम्र के बाद एक दूसरे के प्रति आकर्षण होना स्वाभाविक है। पर गलती तब हो जाती है।
- जब हम आकर्षण को प्यार समझ लेते हैं। जब हम प्यार के नाम पर दूसरे को दबाते हैं, उसका शोषण करते है
- जब हमारे लिए प्यार करने का अर्थ है किसी के शरीर से समबन्ध बनाना
- प्यार तब गलत है जब हम सोचते हैं प्यार सिर्फ किसी इन्सान से ही होता है
- प्यार पाप तब होता है जब आप प्यार के नाम पर दूसरे के अधिकारों को छीन लेते हैं।
- किसी की सुन्दरता को देखकर आकर्षित होने को प्यार कहना पाप है।
- प्यार के नाम पर किसी को शादी के लिए विवश करना पाप है।
प्यार में दिल क्यों टूटता है?
प्यार में दिल टूटने की मुख्य वजह है “उम्मीदें”, हम सामान्य लोग जब भी प्यार में किसी की तरफ भागते हैं तो उसके पीछे वजह जरुर होती हैं।
- महिलाओं की पुरुषों की तरफ भागने की मुख्य वजह होती है उनसे मिलने वाली सुरक्षा या पैसा
- वही पुरुष के महिला की तरफ खींचे चले जाने का बड़ा कारण उनके शरीर का सुख भोगना होता है।
यही दो मुख्य वजह होती हैं इसके अलावा कोई उम्मीदें आमतौर पर होती नहीं, दो तथाकथित प्रेमियों के बीच।
अब यदि आपका भी दिल प्यार में कभी टूटा है तो जरा सावधानी के साथ सोचिये कौन सी उम्मीदें आपने पाली हुई थी।
एक बात याद रखना जहाँ उम्मीदें हैं वहां प्यार नहीं हो सकता, क्योंकि प्यार बेवजह, बिना कुछ पाने की आशा के किया जाता है।
प्यार सही कब होता है?
जब निष्काम भाव से यानि मन में जब जरा भी किसी से कुछ पाने की इच्छा न हो पर फिर भी उसके लिए सिर्फ अच्छा करने का मन करे तो समझ लीजिये प्यार सही है।
प्यार सही तब है जब आप किसी को अपनी कमजोरियों से लड़ने की ताकत दें, उसका हाथ पकड़कर सही जगह उसे पहुंचाएं उसके मन को सही काम के लिए निडर बनाएं।
किसी इंसान की फीलिंग्स को समझकर उसे जिन्दगी में सही राह दिखाने की जो जिम्मेदारी ले मात्र उसका प्रेम सच्चा है।
पर अगर इसके बजाय प्यार के नाम पर किसी से घटिया तरह की बातें करना, आचरण करना और उसे फ़ालतू के कार्यों में आप लगाये रहते हैं तो आपने प्रेम शब्द को ही गंदा कर दिया।
क्या प्यार किसी से भी हो सकता है?
जी हाँ, प्यार किसी भी लिंग, जाति, उम्र, से हो सकता है।
प्रायः हमें लगता है प्यार किसी खास उम्र की महिला या पुरुष के साथ ही होता है, और इसके आगे हम कभी कुछ सोचने का प्रयास ही नहीं करते।
पर प्यार की यह मान्यता बिलकुल गलत है, असल में प्रेम किसी भी उम्र के व्यक्ति, जीवों या प्राणियों से हो सकता है।
जैसा हमने ऊपर जाना की प्यार होता नहीं है प्यार करना पड़ता है, अगर आपको कोई दिखे व्यक्ति जो परेशान है, गलत जीवन जी रहा है। तो क्या आपको उससे प्रेम होगा? नहीं न
पर अगर आप उससे प्यार करने का निर्णय लेकर उस इन्सान के करीब जाएँ, उससे बातें करें और उसकी जितनी हो सके साहयता करें?
और अंततः आपकी वजह से उसका जीवन बेहतर हो जाता है तो बताइए ये खुद हो गया या आपने ऐसा करने का चुनाव किया था?
उम्मीद है अब आपको समझ हो जायेगा की प्यार प्राकृतिक नहीं होता बावा। जो चीज़ सही है उसपर दिल लगाने का निर्णय लेना ही प्यार है।
क्या प्यार दूसरी जाति के व्यक्ति से हो सकता है?
जब प्रेम का सरोकार किसी लिंग, उम्र, प्राणी विशेष इत्यादि से नहीं है तो भला जाति से कैसे हो सकता है, अब तक जैसा हमने जाना प्यार का मतलब किसी की बेहतरी होता है।
तो अब आप बताइए सड़क पर कोई व्यक्ति दुर्घटना में खून से लथपथ है तो आप प्रेम में जान बचाने के खातिर यह सोचेंगे की कोई हिन्दू है मुस्लिम है, ऊँची जाती का है नीची जाती है, आप तुरंत उसे ले जायेंगे।
पर चूँकि हम लोग न तो प्यार क्या है? ये समझते हैं, हमें लगता है प्यार का अर्थ है दो लोगों का आपस में शरीर का मिलना।
जी नहीं, प्यार का शरीर से समबन्ध नहीं है, आप किसी के शरीर को छुए बिना भी उससे प्रेम कर सकते हैं।
प्रेम इसलिए तो विशेष बन जाता है क्योंकि प्रेम न तो आकर्षण है, न वासना है पर चूँकि हमे लगता है सीधे तौर पर किसी से नहीं कह सकते की मैं तुमसे आकर्षित हूँ।
और तुम्हारा शरीर मुझे अच्छा लगता है इसलिए अपनी नियत को छुपाने के लिए हम कह देते हैं तुमसे प्रेम है, इसलिए फिर ऐसे ही लोग जो शरीर को बड़ा महत्व देते हैं उन्हें लगता है प्यार किसी जाति विशेष में होना चाहिए।
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अंतिम शब्द
तो साथियों इस पोस्ट को पढने के बाद क्या प्यार करना गलत है? इस प्रश्न का सीधा और सटीक जवाब आपको यहाँ मिल गया होगा, मन में प्रश्न है कोई विचार हैं तो नीचे दिए कमेन्ट सेक्शन में बताएं साथ ही जानकारी को सांझा करना न भूलें।