सच्ची मोहब्बत क्या है? जानें कब और कैसे होती है?

सच्चा प्यार हर किसी के नसीब में नहीं होता ये बात हमें समाज ने, फिल्मों ने अच्छी तरह बताई है। पर वास्तव में सच्ची मोहब्बत क्या होती है? ये हमें साफ़ साफ कोई नहीं बताता।

मोहब्बत क्या है

इसलिए मोहब्बत को लेकर हर किसी के अपने विचार हैं कोई कहता है मोहब्बत का मतलब किसी इन्सान को पाना है तो किसी के लिए जिन्दगी भर किसी के साथ रहना ही मोहब्बत है?

ऐसे में जब हमें समाज, परिवार और लोगों से सच्ची मोहब्बत का अर्थ मालूम नही होता तो फिर सच्चाई से दूर ही रह जाते हैं। हम जान ही नहीं पाते की वास्तव में मोहब्बत किसको कहते हैं? इस दुनिया में मोहब्बत करने वाले क्यों कुछ गिने चुने लोग ही होते हैं?

कैसे मोहब्बत करने से इन्सान की जिन्दगी ही बदल जाती है? हम इस बात से अनभिज्ञ रहते हैं। इसलिए आज हमने इस विषय पर विस्तार से बातचीत की है हमें लगता है लेख में कही गई एक एक बात को समझते हैं तो प्यार के बारे में आपके मन की सारी गलतफहमीयाँ दूर हो जाएँगी।

सच्ची मोहब्बत क्या है?

जब इंसान खुद से ज्यादा परवाह किसी और की करने लगे, उसे पाने की हर सम्भव कोशिश करे तो इसे मोहब्बत, इश्क, प्रेम कहा जाता है।

मोहब्बत में इंसान मजबूर सा हो जाता है, क्योंकी जिस इन्सान को या लक्ष्य से वह मोहब्बत करता है उसे पाए बिना उसे चैन नहीं आता। इसलिए अपनी मोहब्बत को पाने के खातिर वह अपना समय,उर्जा, संसाधन सब देने को तैयार रहता है।

मोहब्बत में इंसान निडर हो जाता है, वो प्यार में करोड़ों लुटा सकता है लेकिन बदले में मिला क्या? वो कभी इस बात की परवाह ही नहीं करता। ऐसे कह सकते हैं की प्यार करने की औकात उसी इंसान के पास होती है जिसका दिल बड़ा होता है।

पर प्रायः हमें लगता है मोहब्बत यानी इश्क तो सिर्फ एक इन्सान को दूसरे इंसान से होता है। पर सच्चाई यह है की जो इन्सान निस्वार्थ भाव (बिना कुछ पाने की इच्छा के) से किसी का भला करने की नियत रखता है हर वह इन्सान प्रेमी है।

इतिहास को देखें तो भगत सिंह, मीराबाई, संत कबीर इत्यादि जिन भी महापुरुषों का नाम लेते हैं, ये सभी सच्चे आशिक थे। क्योंकि उन सभी में एक बात सांझी (कॉमन) थी की उन्होंने अपने से ज्यादा किसी और को महत्व देकर अपना जीवन दूसरों की भलाई में समर्पित किया।

तो अब आप समझ सकते हैं की वास्तव में सच्ची मोहब्बत ये नहीं है की एक पुरुष दूसरी स्त्री को खुश करने के लिए कितनी मेहनत करता है। उसकी ख्वाहिशें पूरी करता है या नहीं।

मोहब्बत में तो अगर किसी इन्सान को डांट भी लगानी पड़े तो लगाये। क्योंकी इरादा उस इन्सान को नीचे गिराने का या दुखी करने का नहीं उसकी भलाई का है।

सच्ची मोहब्बत की पहचान क्या है?

मोहब्बत क्या होती है? ये समझने के बाद अब प्रश्न आता है की सच्ची मोहब्बत को पहचानने के लक्षण क्या हैं? कैसे पहचानें की कोई हमसे या हम किसी से सच्ची मोहब्बत करते हैं या नहीं?

#1. जब मन में सिर्फ दूसरे की भलाई का इरादा हो।

मोहब्बत हुई है या सिर्फ किसी के शरीर को देखकर मन आकर्षित हुआ है ये समझना है तो समझ लीजिये जिस इन्सान को आप अपना प्रेमी बोलते हो उसके लिए मन में क्या भाव आते हैं? अगर उसे देखकर बस ख्याल आता है की इस इंसान को किसी तरह बाहों में भर लूं, इसे छू लूं।

तो समझ लेना ये आकर्षण है, ये प्यार नहीं है। और आकर्षण कभी भी स्थाई नहीं होता, ये समय के साथ खत्म हो जाता है। यही वजह है की जो लोग आकर्षण को प्यार समझकर शादी कर लेते हैं वो शादी के बाद अपनी पत्नी या पति से वैसा व्यवहार नहीं कर पाते जैसा वो पहले करते हैं।

लेकिन अगर उस इंसान के सामने आते ही मन में भाव आता है की यार! इसकी परेशानियों को कैसे खत्म करूं? इसे मैं और खुश और बेहतर इंसान कैसे बनाऊं? इसको आत्मनिर्भर कैसे बनाऊं ताकि इसे किसी और पर निर्भर न होना पड़े, इसे कुछ अच्छा करने के लिए प्रेरित कैसे करूँ? ताकि जिन्दगी में एक बिंदास इन्सान बने।

तो समझ लीजिये ये सच्ची मोहब्बत है और ख़ास बात ये होती है की जिसे आप अपनी मोहब्बत कहते हो वो अगर तुम्हें छोड़ भी दे तो भी आप उसकी भलाई सोचते हो। उसमें आप ये नहीं सोचते की ये मेरी मोहब्बत थी इसलिए मैं इसकी फ़िक्र करता था।

जी नहीं, सच्ची मोहब्बत क्यूंकि कभी खत्म नही होती अतः उसमें सदा भलाई का भाव रहता है।

#2. बेवजह मोहब्बत होना।

किसी का पैसा देखकर, खूबसूरती देखकर, उसका नाम देखकर किसी से आकर्षण होना कोई बड़ी बात नहीं। पर अगर पाते हो कोई लड़की या लड़का सादगी भरी जिन्दगी जीता है उसके पास ऐसा कुछ भी नहीं की वो लोगों को बहुत आकर्षित कर सके पर इसके बावजूद आपका दिल उस इन्सान पर आया है।

और आप अपनी मोहब्बत का कारण खुद नहीं जानते। तो समझ लीजिये ये सच्चा प्यार है। सच्ची मोहब्बत में करने का इन्सान के पास कोई कारण नहीं होता?

उससे पूछो इतनी मोहब्बत क्यों? तो उसके पास कोई जवाब नही होगा। क्योंकी जिस चीज़ के पीछे कोई कारण होता है वो कारण अगर हट गया तो फिर मोहब्बत भी हट गयी न।

तो आप पायें कोई कारण तो नहीं है जिसकी वजह से मैं इसे चाहने लगा हूँ, इससे मुझे कुछ नहीं भी मिला तो भी मैं इसे चाहूँगा तो समझ लेना ये सच्ची मोहब्बत है।

#3. सच्ची मोहब्बत में आजादी होती है।

देखा है जैसे ही लोग रिलेशनशिप में आते हैं वे एक दूसरे को खोने के डर से एक दूसरे पर बंदिशें लगानी शुरू कर देते हैं।

जैसे एक दूसरे का सोशल मीडिया अकाउंट का पासवर्ड जानना, उसको कुछ घंटों के लिए लगातार बात करने के लिए फ़ोर्स करना यहाँ तक की लोग किसी और लड़के या लड़की से बात करने के लिए भी मना कर देते हैं।

पर सच्ची मोहब्बत तो इन्सान को आजाद कर देती है, दो लोगों में प्रेम होगा तो वे एक दूसरे का भला चाहेंगे और एक दूसरे की परेशानियों को हल करने का प्रयास करेंगे।

एक दूसरे की कमजोरियों को दूर कर एक मजबूत इन्सान बनने पर जोर देते हैं। यानी एक दूसरे से दूर रहकर भी उनका रिश्ता इतना करीबी होता है की वो एक दूसरे को बंधन में, कष्ट में नहीं देख सकते।

और जब रिश्ता ऐसा होता है तो इन्सान को फिर ये डर नहीं लगता की अगर ये मुझे छोड़ गई तो मेरा क्या होगा? वो जानता है हमारा रिश्ता कैसा है उस रिश्ते में विश्वास,सच्चाई, प्रेम होता है।

#4. सच्ची मोहब्बत बेहतर इन्सान बनाती है।

समाज में तो प्रेम के नाम पर इन्सान किसी को बेहतर बनाने की जगह उसे छूकर और गंदा कर देता है। एक लड़का जिसे लड़की की कमियों को सुधारकर उसे एक बेहतर इन्सान बनने के लिए हौसला देना चाहिए था वो लड़का अपनी इच्छाओं की पूर्ती के लिए कमजोरी को दबा देता है।

बहुत कम ऐसे लोग होते हैं जो कहते हैं यार! ये इंसान जैसा है वैसा रहते हुए इसकी जिन्दगी में तकलीफें बहुत हैं, मैं इसके दुःख नहीं देख सकता। तो आप अपनी समझ से उसके लिए जो कुछ अच्छा हो सकता है सब करते हैं।

उदाहरण के लिये कोई लड़की शिक्षित नहीं है तो आप उसे शिक्षित करने में मदद करते हैं, आत्मनिर्भर नहीं है तो उसे रोजगार दिलाने में सहायता करते हैं, अगर शरीर से वो मोटी है तो उसे फिट रहने में उसकी साहयता करते हैं। ताकि जो परशानियाँ उसके जीवन में चल रही है वो समाप्त हो जाए और वह जिन्दगी में लगातार तरक्की करे।

इसलिए कहते हैं सच्ची मोहब्बत वहीं हो पाती है जहाँ दो लोग सच्चे दोस्त होते हैं।

#5. मोहब्बत में आप खुद को बदलने के लिए तैयार रहते हैं।

प्यार में बड़ी ताकत होती है, ये बात सच तो है पर कैसे? आइये जानते हैं। देखिये जब दो लोगों के बीच आपस में प्रेम होता है न तो एक दूसरे की ख़ुशी के लिए, तरक्की के लिए इंसान अक्सर वो काम भी कर देता है जो वो खुद के लिए नहीं कर पाता।

आपने सुना होगा मोहब्बत को पाने के खातिर किसी ने इतनी मेहनत की और आज एक सफल इंसान बन गया। जी हां मोहब्बत में कुछ ऐसा जादू होता है की वो आपकी जिन्दगी पलटने का दम रखता हैं। ऐसे लोग भी जिन्दगी में देखें हैं जिनके जीवन में प्रेमिका के आने पर उनके रहने की जगह, कपडे, उनकी बातचीत, उनका खाना सब बदल जाता है।

और लोगों को लगता है यार। 6 महीने पहले तो ये कुछ और था आज कुछ और हो गया तो अगर जिन्दगी में बेहतर होना है, एक अच्छा इन्सान बनना है तो या तो खुद अच्छे बन जाओ या फिर किसी अच्छे इन्सान की संगत कर लीजिये।

मोहब्बत कब होती है?

मोहब्बत कब होती है ये समझना हो तो जान लीजिये मोहब्बत क्या चीज़ होती है? आमतौर पर हम न खुद को समझते न इस शरीर को जानते पर हम कह देते हैं जी हाँ। मुझे भी प्रेम हुआ है। प्रेम कोई फीलिंग, केमिकल नहीं है जो बॉडी में कभी ऊपर बढे और कभी नीचे चले जाए।

बहुत होते हैं जो कहते हैं यार। आज तुम पर बडा प्यार आ रहा है देखो न मौसम कितना अच्छा है। जान लीजिये प्यार ऐसा है जो मूड पर निर्भर करता है तो वो प्यार है ही नहीं। वो आकर्षण है।

15-16 साल में जब हम जवानी की दहलीज में कदम रखते हैं तो भीतर से कामवासना प्रबल होती रहती है, पर जो लोग बॉडी को नहीं समझते जो नहीं जानते की शरीर अब किसी विपरीत लिंग की इच्छा कर रहा है वो कह देते हैं मुझे न अब प्यार होने लगा है।

अरे। ये प्यार नहीं होता प्यार और कामवासना (सेक्स की चाह) दोनों में बहुत अंतर है। प्यार तो समय के साथ मीठा होता जाता है, जैसे जैसे इन्सान में समझ बढती है प्यार और गहरा होता चला जाता है। जब इन्सान जानता है की ये बॉडी क्या चीज़ है? ये भावनाएं क्या हैं? ये मन कभी रोमांटिक तो कभी गुस्सा  क्यों होता है?

और साथ ही वो इस संसार के बारे में भी जानने लगता है। क्योंकी बॉडी संसार के माध्यम से ही तो अपनी इच्छा पूरी करना चाहती है न। तो जब ये बात समझ आती है तो फिर कबीर साहब की ये पंक्ति याद आती है

छिनहिं चढै छिन उतरै, सों तो प्रेम न होय। अघट प्रेमपिंजर बसै, प्रेम कहावै सोय।

अर्थात जो झट से चढ़ जाए और झट से उतर जाए। वो तो प्रेम नहीं, प्रेम का तो रंग एक बार चढ़ गया तो फिर वो उतरता ही नहीं है।

तो ये है प्यार की परिभाषा, पर हम लोग स्वार्थी होते हैं हम छोटी छोटी बातों पर अपना फायदा देखते हैं। तो सोचिये मन को उस हालत में ले जाना कितना कठिन होगा जब हम अपना फायदा देखे बिना दूसरे इंसान की भलाई करने का इरादा कर लें।

मुश्किल होगा न। तो इसलिए कहा गया प्यार करना समझदार इंसान का काम होता है, शूरमाओ का, बड़े दिलवालों का ये काम होता है।

प्यार हलकी चीज़ नहीं है, प्यार के खातिर जिन्होंने अपनी जान तक दे दी वो इसीलिए कर पाए क्योंकी उनका दिल बड़ा था। और वो हमारा भी हो सकता है हम भी जिन्दगी में कोई नेक काम कर सकते हैं अगर हमारा भी दिल बड़ा हो।

और दिल बड़ा होने के लिए जरूरी है समझना, जानना। और फिर जो जाना है उसको जीना। जो लोग छोटी छोटी बातों पर नाराज निराश हो जाते हैं समझ लेना प्यार उनके लिए है ही नहीं। इसलिए देखा होगा लोग मर जाते हैं पर उन्हें प्यार का नहीं पता होता।

वो पढ़ाई कर लेते हैं, शादी कर लेते हैं, बच्चे कर लेते हैं पर अफ़सोस हो प्रेमी नही बन पाते। प्रेम तो शूरमाओं का काम है, अगर आप शूरमा बनने की नियत रखते हैं और उसके लिए प्रयास करते हैं तो सच्ची मोहब्बत आप भी कर सकते हैं।

Mohabbat kya hai best answer 

मोहब्बत का अर्थ कोई रूमानी कहानी और एक दूसरे को खुश करना नहीं होता। जब मन इतना साफ़ हो जाये की वह अकारण अपने से अधिक महत्व किसी को देने लग जाये तो इसे मोहब्बत कहा जाता है।

प्यार और मोहब्बत में क्या अंतर है?

प्यार और मोहब्बत दोनों में कोई भिन्नता नहीं है, दोनों एक ही शब्द के पर्यायवाची हैं। उम्र के साथ जैसे जैसे इन्सान में समझदारी आती है उसे खुद का और दुनिया का ज्ञान होने लगता है तो उसे समझ आने लगता है की क्या है दुनिया में जो प्रेम के लायक है? क्या है जो दुनिया में सच्चा और सुन्दर है? फिर उसे पाने की चाहत में इन्सान जुट जाता है।

फिर भले ही अपनी मोहब्बत को पाना उसे असम्भव लगे पर वह लगातार कोशिश करता है, ये जानते हुए की जिस इन्सान या लक्ष्य से मुझे प्रेम है उसको प्राप्त कर पाना मुश्किल है। फिर भी वह उसी को पाने की चाहत रखता है।

ठीक वैसे जैसे इंसान जानता है की भगवान कभी प्रत्यक्ष रूप से उसे दर्शन नहीं देंगे यह जानते हुए भी वह उन्हें पूजता है, उनकी आराधना करता है।

क्यों? क्योंकी वो जानता है की भले ही हम उन्हें पा न सकें लेकिन उन्हें देखने से उन्हें याद करने से मन उनके करीब चला आता है। इसलिए चाहे मीराबाई हो, संत कबीर हो, बाबा बुल्लेशाह हो, भगत सिंह, सुभासचन्द्र बोस हो इन्होने जीवन में जिस काम से लक्ष्य से प्रेम किया वो लगभग असंभव था।

ये जानते हुए भी की भगवान कृष्ण मुझसे बहुत बहुत दूर हैं, मीराबाई ने कृष्ण के ही गीत गाये। उन्होंने कहा वो ही चाहिए, उनेक सिवा कोई नहीं। इसी प्रकार भगत सिंह ने भारत माँ की आजादी के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए ये जानकर भी पूर्णता आजादी मिलना कठिन है।

मोहब्बत कितनी बार होती है?

प्रेम का होना संख्या पर निर्भर नहीं करता, बल्कि समझ पर करता है। एक बात समझिये जब प्रेम का अर्थ भलाई होता है और उम्र के साथ इन्सान में ये समझ बढती है की अपने से भी आगे कुछ और होना चाहिए। तब इन्सान कुछ ऐसा करने निकलता है जिससे वास्तव में किसी का भला होता है।

तो ये बिलकुल सम्भव है एक इन्सान किसी एक का भला चाहे या फिर सौ का, उदाहरण के लिए आप कहें मुझे किसी एक की भलाई करनी है, उसको बेहतर बनाना है वो लड़की या लड़का कोई भी हो सकता है।

या कोई कहे नहीं मुझे सिर्फ एक की नहीं हजारों लाखों लोगों का भला करना है तो इस प्रकार उसकी मोहब्बत वो लाखों लोग बन जायेंगे।

पर चूँकि हम ऐसे समाज में रहते हैं जहाँ प्यार के नाम पर इन्सान बस शारीरिक सुख पाने की इच्छा रखता है, उसके लिए प्यार का दूसरा नाम ही सेक्स होता है। इसलिए फिर वह अपने फायदे के लिए प्यार, मोहब्बत, इश्क जैसे नामों को भी गंदा कर देता है।

जानें: प्यार और आकर्षण में अंतर

मोहब्बत क्यों करना चाहिए?

मोहब्बत के बिना जीवन ऐसे है मानो एक पेड़ से गिरा हुआ सूखा पत्ता, जिस इंसान के जीवन में प्रेम नहीं है वो एक शराबी की भाँती किसी भी दिशा की तरफ चल देता है।

पर जो इंसान आँखें खोलकर अपनी बुद्धि से, विवेक से देख रहा है की जीवन में क्या है जो वाकई प्रेम करने लायक है फिर ऐसे इंसान का जीवन अपने प्रेम को समर्पित हो जाता है।

और फिर उसे बार बार इधर उधर भटकने की आवश्यकता नही पड़ती वो अपनी प्रेम मंजिल की तरफ बढ़ता रहता है। अब रास्ते में उसके सौ कठिनाए आये पर वह हंसकर इस स्तिथि को झेल जाता है।

उदाहरण के लिए किसी इन्सान ने देख लिया की जानवरों के प्रति कितना अत्याचार हो रहा है, रोज करोड़ों जानवर हमारे स्वाद के लिए मर रहे हैं तो जो इंसान उनके प्रति दया, करुणा रखते हुए इस स्तिथि को बेहतर बनाने की सोचता है, समझ लीजिये उसे जानवरों से प्रेम हो गया है।

और अब वह अपना जीवन जानवरों की रक्षा में समर्पित कर देगा। इसी तरह जीवन में बहुत कुछ है जो गलत हो रहा है अगर आप उसे ठीक करने के लिए कोई लक्ष्य बनाते हैं तो फिर आप अपने लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ते रहते हैं।

इस तरह जिस इन्सान के जीवन में प्रेम होता है वो जीवन में उन गलतियों को करने से बच जाता है जिसे करते हुए एक इन्सान अपना जीवन बर्बाद कर देता है।

 
मोहब्बत कैसे शुरू होती है?

जब मन इतना निर्मल हो जाये की मन में सिर्फ अपने प्रेमी के बारे में एक ही शुभ विचार रहे की इसकी भलाई कैसे करूँ तो जान लीजिये सच्ची मोहब्बत की शुरुवात हो चुकी है।

इश्क किसे कहते हैं?

प्यार का ही दूसरा नाम है इश्क, इश्क कोई जादू नहीं है ये इन्सान के मन की एक स्तिथि है। जब मन ऐसा हो जाये जो किसी की भलाई के लिए अपना नुकसान झलने को भी तैयार रहे तो समझ लेना उसे इश्क हो गया है।

अंतिम शब्द

तो साथियों इस लेख को पढने के पश्चात सच्ची मोहब्बत क्या है? कैसे और कब होती है? इस विषय पर विस्तार से जानकारी आपको मिल गई होगी। मन में सच्ची मोहब्बत के विषय पर कोई सवाल है तो इस whatsapp नम्बर 8512820608 पर सांझा कर सकते हैं साथ ही जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित हुई है तो इसे शेयर भी कर दें।

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