पितृ दोष से बचने और पितरों की खुश रखने के लिए सैकड़ों हजारों वर्षों से चली आ रही श्राद्ध परम्परा का आज भी पालन किया जाता है, अगर आप भी पूर्वजों को खुश करने के लिए श्राद्ध में क्या नहीं करना चाहिए जानना चाहते हैं तो यह लेख आपके लिए है!
जानना चाहते हैं तो इस लेख में कुछ ख़ास बातें बताई गई हैं जिनका आपको अवश्य ध्यान रखना चाहिए। जाने अनजाने में कई बार श्राद्ध करते समय हम कुछ ऐसी गलतियाँ कर बैठते हैं जिससे पितृ खुश होने की बजाय नाराज हो सकते हैं।
इसलिए सावधानी रखने हेतु और श्राद्ध विधि को सफल बनाने हेतु हमने इस लेख को दो भागों में बांटा है, लेख के प्रथम भाग में हम समझेंगे की पंडितों और सामाजिक मान्यताओं के आधार पर श्राद्ध में क्या नहीं करना चाहिए।
जबकी दूसरे भाग में हम श्राद्ध प्रथा से जुडा एक ऐसा रहस्य बताएँगे जिसे आप समझकर पालन करने लगे तो पितरों का आशीर्वाद सदा आपके सिर पर बना रहेगा।
श्राद्ध में क्या नहीं करना चाहिए?
पंडितों और लोकमान्यता के आधार पर यह निम्न कार्य आपको श्राद्ध के दिनों में बिलकुल नहीं करने चाहिए, कहा जाता है वे लोग जो इन बातों को नजरंदाज करते हैं उनसे पितृ हमेशा नाखुश रहते हैं और इससे आगामी जीवन में उन्हें तमाम तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
#1. श्राद्ध के मौके पर शुभ कार्य नहीं करने चाहिए।
गाडी, मोबाइल या किसी भी तरह का आइटम जो सालों साल आप प्रयोग करने वाले हैं उस चीज़ की खरीदारी श्राद्ध के मौके पर नहीं करनी चाहिए, इस बात संदेश पंडितों द्वारा स्पष्ट रूप से जजमानों को बताया जाता है।
मान्यता है की श्राद्ध के दिनों में उत्सव ममाने की बजाय पितरों द्वारा किये गए पुण्य कार्यों के लिए उन्हें याद करना अधिक लाभदाई होता है।
#2. श्राद्ध में बाल और दाढ़ी नहीं बनाने चाहिए।
श्राद्ध का समय शोकाकुल का होता है अतः ऐसे मौके पर नए कपड़ों की खरीदारी करने से बचने के साथ साथ बाल और दाढी बनाने के लिए भी मना किया जाता है।
ठीक वैसे जैसे आज भी कई जगहों पर लोग पिता जी की उम्र के बाद 1 साल तक दाढ़ी और बाल नहीं काटते इसी तरह श्राद्ध में भी ये कृत्य करना निषेध माना जाता है।
#3. लहुसन, प्याज इत्यादि श्राद्ध में खाने को होती है मनाही।
मीट-मांस के साथ साथ लहुसन,प्याज इत्यादि को तामसिक भोजन की श्रेणी में रखा जाता है अतः ठीक वैसे जैसे नवरात्रि के मौके पर इन चीज़ों को खाने की सख्त मनाही होती है उसी तरह श्राद्ध के मौके पर इन चीजों का सेवन करना प्रतिबंधित माना जाता है।
यही कारण है की श्राद्ध के दिनों में आज भी शहर तथा ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों द्वारा ऐसे दिनों में इन चीजों का सेवन नहीं किया जाता।
#4. शराब पीने की भी होती है मनाही।
अक्सर लोग ख़ुशी के मौके पर मदिरा सेवन करते हैं, पर चूँकि श्राद्ध हमें पितरों की याद में शोक मनाने का संदेश देता है। अतः ऐसे गम के मौके पर अपने पितरों की सेवा करने की बजाय वे लोग जो राक्षसी पान कही जाने वाली मदिरा का सेवन करते हैं उनसे पितृ बहुत नाराज होते हैं।
इसलिए श्राद्ध के दिनों में बहुत से लोग मांस, मछली खाने के साथ शराब का भी सेवन नहीं करते हैं।
तो यह थी कुछ मुख्य बातें जिनको ध्यान में रखकर पितरों की आत्मा को शांति देने की बात कही जाती है, हालाँकि अगर आप बारीकी से श्राद्ध प्रथा के नियमों को पढेंगे तो आपको मालूम होगा बहुत सी बातें उनमें लिखी गई हैं।
अब हम आगे बढ़ते हैं और एक महत्वपूर्ण बात आपके साथ साँझा करते हैं।
श्राद्ध प्रथा की मान्यताओं का सच
देखिये श्राद्ध के नाम पर हमें जिन भी नियमों अथवा विधियों का पालन करने की सलाह दी जाती है उन्हें अपनाने से पूर्व हमारे लिए समझना जरूरी है की श्राद्ध का महत्व क्या है?
देखिये अगर आपको लगता है श्राद्ध इसलिए किया जाता है ताकि पितृ हमसे खुश रहें हैं उनकी आत्मा को शांति मिले।
तो बिलकुल आपकी बात से हम सहमत हैं, इसलिए श्राद्ध की परम्परा का हम दिल से सम्मान करते हैं।
लेकिन अब ये समझना जरूरी हो जाता है की पितरों को शान्ति क्या वाकई ऐसे मिल पायेगी जैसे हमें सिखाया गया है।
हमें बताया गया है की श्राद्ध के दिनों में कुछ खास तरह के काम करने से जैसे की ब्राह्मणों को घर में भोजन के लिए आमंत्रित करने से, गाय, चिड़िया इत्यादि जानवरों को खाना देने से और पितरों के नाम का पाठ कराने से पितृ खुश हो जाते हैं।
पर हमारे हिसाब से अगर कोई इन्सान एक सही जिन्दगी जी रहा है जिसके मन में इंसानों के लिए, जानवरों के लिए दया, प्रेम की भावना है और उसने जिन्दगी में मानव कल्याण का लक्ष्य बनाया है तो उसके लिए तो हर दिन श्राद्ध ही है।
क्योंकि श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धांजली देना, और सच्ची श्रद्धांजली तब दी जाती है जब आप वास्तव में एक नेक इन्सान बन जाते हैं।
जीते जी माँ बाप यही तो चाहते हैं न की उनके बच्चे जिन्दगी में एक अच्छे इन्सान बनें।
तो मरने के बाद भी उनकी एकमात्र इच्छा क्या होगी की मेरे बच्चे जिन्दगी में सच्चाई के रास्ते पर चलें, झूठ कपट, लालच को छोड़ करके एक सही जिन्दगी जियें।
तो बताइए उनके मरने के बाद सच्ची श्रद्धांजली यही तो होगी की जिन बातों को जीते जी उन्होंने हमें सिखाया था उसी रास्ते पर हम आगे बढ़ें।
है न। तो सवाल आता है की क्या आज हम श्राद्ध का वास्तविक अर्थ भूल तो नहीं गए हैं, क्या आज हमारे लिए श्राद्ध बस रस्म अदाएगी का साधन बन चुकी है?
शायद हाँ, क्योंकि आज हमारे लिए श्राद्ध बस एक परम्परा भर बन कर रह गई है, हम जानते तक नहीं की श्राद्ध के माध्यम से हमें क्या सीख दी जा रही है।
बस हम कर्मकांडी पंडित के कहने भर से श्राद्ध कर रहे हैं, हम सच्चाई से दूर होते जा रहे हैं। हमारे सनातन धर्म की यह परम्परा कितनी अच्छी थी और हमने इसको क्या बना दिया।
संक्षेप में कहें तो श्राद्ध के दिनों में क्या खरीदें, क्या नहीं ये आपकी चॉइस है, आप मोबाइल खरीदो, गाडी खरीदो कुछ भी करो बस वो काम मत करना जिससे किसी को नुकसान पहुँचता हो।
श्राद्ध के माध्यम से पितृ आपको संदेश दे रहे हैं की बेटा जीते जी जो काम हम नहीं कर पाए वो आप कीजिये इसी में उनकी सच्ची श्रद्धांजली मिलेगी।
और वो काम कुछ और नहीं बल्कि एक सही जिन्दगी जीना है, जीते जी कुछ ऐसा करना है जिससे जन्म सार्थक हो जाये।
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तो साथियों इस लेख के माध्यम से श्राद्ध में क्या नहीं करना चाहिए और कौन सा जरूरी काम है वो करना चाहिए? इस विषय पर विस्तार से जानकारी दी है, अभी भी मन में कोई सवाल बाकी है।
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