पितरों को कैसे खुश करें? ऐसे मिलेगा आशीर्वाद

पुरुषों और पितरों का आशीर्वाद पाने की इच्छा के साथ लोग अक्सर पितरों को कैसे खुश करें? यह सवाल सर्च करते हैं। अगर आप भी पितरों की आत्मा को तृप्त कर घर में सुख शान्ति पाना चाहते हैं तो ये लेख आपके लिए है।

पितरों को कैसे खुश करें

सनातन धर्म की यह खूबी रही है की यहाँ जीवित ही नहीं अपितु मृत लोगों को भी सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। यही कारण है की हिन्दू धर्म में श्राद्ध की प्रथाएं आज भी हजारों वर्षों से यूँ ही चली आ रही है।

पर इन्सान होने के नाते गलती करने की सम्भ्वाना हमेशा बनी रहती है अतः भूल चूक से यदि आपको लगता है आपने कुछ ऐसा कर दिया है जिससे पितरों की आत्मा को दुःख पहुँच सकता है, पितृ नाराज हो सकते हैं।

तो आज हम आपको पितरों को खुश करने के अनोखे उपाय साँझा करेंगे। जिससे पितृ खुश होकर आप पर अपनी कृपा बरसा सकते हैं।

पितरों को कैसे खुश करें? जानें असरदार उपाय 

पितरों को खुश करने के नाम पर अक्सर कुछ सामान्य क्रियाओं का पालन लोगों द्वारा किया जाता है जैसे की

श्राद्ध करना, गरीबों के बीच भोजन-कपडे वितरित कर देना, चिड़िया को पानी और भोजन देना इत्यादि। पर सवाल आता है की क्या इतना पर्याप्त है?

क्या पितरों को याद कर हम कुछ और ऊँचे कर्म कर सकते हैं जिससे की ऊपर बैठे दिवंगत लोगों को हम पर गर्व हो सकता है? जी बिलकुल कुछ ऐसे काम हैं, जिन्हें करके आपके पितरों का आशीर्वाद आप पर हमेशा के लिए बना रहेगा। तो आइये एक एक कर उन सभी कार्यों को जानते हैं जो आप पितरों की याद में कर सकते हैं।

#1. पितरों की प्यास बुझानी है तो ये करें।

पितरों की आत्मा तृप्त हो इस प्रयास में हर इंसान विधि विधान से श्राद्ध करता है, पूजा पाठ के समय अपने पितरों को याद करता है। पर वास्तव में अगर पितरों की आत्मा को शान्ति पहुंचानी है तो हमें उनकी मृत्यु के वास्तविक सन्देश को समझना होगा।

जो दिवंगत हो गये हैं वो वास्तव में ये बताना चाहते हैं की जिन्दगी अनमोल है इसे व्यर्थ न गवाओं। समय बहुत कम है और इसे उन चीजों को पाने में न गवाओ जिससे अंततः तुम्हारे हाथ कुछ नहीं आएगा।

पितरों की दी गई यह सीख बहुत कम लोग वास्तव में ग्रहण कर पाते हैं। वरना बहुत से लोग पितृ की सीख का सम्मान कर एक सच्चा और सुन्दर जीवन जीने की बजाय वो अपने मन के कहने पर चलते हैं।

और मन तो हमेशा इन्सान को व्यर्थ की चीजें करने पर विवश करता है। पितृ हमें बता रहे हैं जीते जी जो हम नहीं कर पाए, वो तुम अब करो। एक सच्चा और सुन्दर जीवन जियो तब हमारी और सभी पितरों और पुरुखों की आत्मा को शांति मिलेगी।

#2. आत्मज्ञानी बनें सही फैसले लें।

जीते जी जब माता पिता, दादा दादी अपने बच्चों का भला चाहते हैं। तो समझिये इस संसार से जाने के बाद  भी उनकी अंतिम ख्वाहिश यही होगी की हमारा कल्याण हो।

परन्तु क्या आप आज खुश हैं, जिन्दगी में आपके शांति और सुकून है? शायद नहीं, पर क्यों कभी जाना है?

जी नहीं, बचपन से हमें दुनिया को समझने के लिए स्कूल तो भेजा जाता है और विभिन्न विषयों का ज्ञान हासिल करके हम दुनिया में रोजगार करने के लायक तो बन जाते हैं।

पर मन बेचैन क्यों होता है? मन हमेशा नयी नयी चीजों की तलाश में क्यों रहता है? ये मन आखिर बला क्या है? और मन को समझकर कैसे हम सच्ची और सुकून भरी जिन्दगी जी सकते हैं?

इसके लिए न तो कोई कोर्स कराया जाता है, न ही कोई टीचर रखा जाता है। और नतीजा ये निकलता है की पूरी जिन्दगी भरपूर पैसा, सुख सुविधाओं की चीजों को पाने के बाद भी इन्सान दुखी ही रहता है।

क्यों? क्योंकि वो नहीं जानता है मैं कौन हूँ? मैं क्या पाना चाहता हूँ? पर वो इंसान ये जान लेता है वो आत्मज्ञानी हो जाता है।

पढ़ें: आत्मज्ञानी कौन है? कैसे बनें।

आत्मज्ञानी सच्चाई जान लेता है, और सच जानने के बाद वो लोगों से, संसार से फ़ालतू की उम्मीदें करना छोड़ देता है और निडर, बेख़ौफ़, और एक सच्चा जीवन जीता है।

इसलिए पितरों को अगर आप वास्तव में खुश करना चाहते हैं, तो आप खुद समझदार यानी आत्मज्ञानी बन जाइए। इससे बड़ी ख़ुशी उनके लिए कोई हो ही नहीं सकती।

पर अगर आप पितरों को रोज चावल, पानी इत्यादि अर्पण कर रहे हैं और असल में आप एक धोखेबाज, झूठे, लालची इंसान हैं तो समझ लीजिये पितृ आपकी इन अच्छाइयों को नजरंदाज कर देंगे।

#3. मुक्ति की राह में आगे बढ़ें।

मुक्ति इन्सान को एक सुन्दर और महान जीवन जीने में मदद करती है। पर अधिकांश लोग मुक्ति शब्द सुनकर डर जाते हैं, उन्हें लगता है मुक्ति तो जीते जी मिल नहीं सकती उसके लिए इन्सान को मरना पड़ता है।

देखिये मुक्ति का अर्थ है “आजादी” जो सभी को प्यारी लगती है। पर अपने आप को देखिये क्या आप मुक्त जीवन जी रहे हैं?

क्या आपके जीवन में तमाम तरह की मजबूरियां, बंधन नहीं हैं? क्या आपको अक्सर डर या पैसे इत्यादि के लालच के कारण गलत जगह सर झुकाना या फ़ालतू के काम नहीं करने पड़ते?

आप किसी नौजवान आदमी से पूछिए ये काम आपको अच्छा लगता है तो फिर करते क्यों नहीं हो। जवाब होगा की क्या करूँ पैसे नहीं है, या फिर समय नहीं है। तो इस तरह उस नौजवान के लिए उसका पैसा या समय ही बंधन है।

इसलिए जितने भी ज्ञानी हुए हैं उन्होंने कहा है की जीवन रुपया, इज्जत, नाम कमाने के लिए नहीं अपितु अपने बन्धनों को तोडकर एक मुक्त जीवन जीने के लिए मिला है।

वास्तव में जो इन्सान मुक्त नहीं हुआ, जो खुद दुःख में, मजबूरी में जी रहा है वो अपने पितरों को खुश नहीं कर सकता। याद रखें आपके कल्याण में ही पितरों की ख़ुशी है।

#4. जीवन में कोई ऊँचा लक्ष्य बनाएं।

हर माँ बाप की यह इच्छा रहती है की जो कुछ सुन्दर हम जिन्दगी में नहीं कर पाए, वो काम अब हमारे बच्चे करें।

तो जाहिर सी बात है माता पिता, दादा-दादी, परदादा इत्यादि जो भी इस संसार को अलविदा कह चुके हैं उनकी भी अंतिम और एकमात्र इच्छा अपने बच्चों की तरक्की होगी।

तो याद रखें जो इन्सान एक सच्चा जीवन जी रहा है, वो झूठ, लालच के आगे नहीं सिर्फ सच्चाई के आगे सर झुकाता है। जिसके जीवन में एक ऊँचा लक्ष्य है जान लीजिये उसने अपने जीवन के माध्यम से पितरों को खुश कर दिया है।

पर अगर आप पायें कोई इन्सान सिर्फ अपने पेट के लिए और अपनी इच्छाओं को पूरा करने के खातिर जी रहा है, उसके भीतर खूब लालच, डर बैठा है। और वो पितरों को खुश करने के लिए श्राद्ध इत्यादि करता है तो समझ लीजिये पितृ उससे खुश नहीं हो सकते।

पढ़ें: जिन्दगी में क्या करना चाहिए? जीवन में करने योग्य क्या है?

#5. पितृ दे रहे हैं अमरता का संदेश।

जो कुछ भी इस संसार में है फिर चाहे वह इन्सान हो या कोई वस्तु एक समय बाद वो मिट जाना है। और पितृ अपनी मौत के साथ ये गहरा संदेश हमें देकर जाते हैं की देखो संसार में जो तुम्हें बहुत अपना लगता है वो भी एक समय बाद मिट जायेगा।

कोई भी वस्तु यहाँ ऐसी नहीं जो हमेशा ऐसी ही बनी रहेगी। तो तुम किस भ्रम में जी रहे हो, किन चीजों के पीछे जिन्दगी गवा रहे हो? जिन बातों को जिन चीजों को इतना तुमने महत्व दिया है। जिसके लिए इतना परेशान होते हो

क्या वाकई वो उस लायक है? अगर ईमानदारी से देखो तो यहाँ कुछ भी नहीं है जो मिटेगा नहीं।

इसलिए जीते जी उस चीज़ की तरफ बढ़ो जिसे मौत न छीन सके। क्या है जिसे मौत नहीं छीन सकती तुमसे? वो हैं तुम्हारे कर्म

सच्ची जिन्दगी जियो, जीते जी कुछ ऐसा कर जाओ जिसके लिए तुम्हें मौत के बाद भी याद किया जा सके। यही वास्तविक कमाई है, बाकी रुपया, पैसा इत्यादि सब मौत के साथ चला जायेगा।

उदाहरण के लिए जितने भी महापुरुष हुए हैं उनके कर्मों की वजह से आज हम उन्हें याद करते हैं। फिर बात हो शहीद भगत सिंह की, स्वामी विवेकानन्द की, संत कबीर सिंह की ये सभी वे थे जिन्होंने जीते जी कुछ ऐसा कमाया की मरने के बाद भी वो अमर हो गए।

तो पितरों का यह संदेश समझिये और मरने के बाद अमर होने के सिद्धांत को अपनाएँ।

#6. पितरों के नाम पर व्यर्थ मान्यताएं स्वीकार न करें।

कितना बुरा लगेगा न जब आप किसी इन्सान को बहुत प्रेम करते हों और उसकी मौत के बाद कोई कहे उसकी आत्मा पेड़ पर लटक कर नाच रही है।

निश्चित रूप से बुरा लगेगा न। ऐसा करके आप उस दिवंगत व्यक्ति की बेइज्जती करेंगे। इसी तरह हमारे समाज में खूब होता है जब कोई फलाना व्यक्ति मर जाए तो लोग कहते हैं उसके मरने के बाद उसकी आत्मा अब घर में घूम रही है।

या फिर वो व्यक्ति किसी और बच्चे के शरीर में प्रवेश कर रहा है इत्यादि। हम बेवकूफ लोग हैं हम न तो ये जानते की ये शरीर क्या है? और हम न ये जानते की आत्मा क्या है?

हम कुछ नहीं पढ़ते, हम बस कहा सुनी बातों पर यकीन करने वाले लोग हैं। यही कारण है की भारत में दिवंगत लोगों के नाम पर बहुत सी फ़ालतू की कहानियाँ बनाई जाती हैं।

वो कहानियां लोगों के लिए मनोरंजन और टाइम पास का साधन तो बन जाती हैं पर हम जान ही नहीं पाते की हम इन हरकतों को करके कितना भद्दा मजाक कर रहे हैं और लोगों को क्या संदेश दे रहे हैं।

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अंतिम शब्द

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