असली ब्राहमण कौन है? सच्चा पंडित कहलाने का अधिकारी कौन?

आज समाज में कई ऐसे वर्ग हैं जो स्वयं को ऊँचा ब्राहमण सिद्ध करने की भरपूर कोशिश करते हैं, तो जब हर कोई स्वयं को श्रेष्ठ पंडित या ब्राहमण साबित करना चाहता है तो ये सवाल आता है की आखिर असली ब्राहमण कौन है? उसकी क्या पहचान है?

असली ब्राहमण कौन है

सदा से ही हिन्दू धर्म में ब्रहामणों का स्थान पूजनीय रहा है, कई लोग यह तक मानते हैं की ब्रहामणों के पास बौद्धिक क्षमता और ज्ञान बहुत होता है। इसलिए हम पाते हैं की जो इन्सान जाति से ब्राहमण होता है वो स्वयं को अन्य जाति के लोगों की अपेक्षा ऊँचा मानता है।

इसलिए जो इन्सान जीवन में बड़े से बड़ा पद, रुपया पैसा हासिल करता है वो भी एक पंडित के आगे नतमस्तक रहता है। तो क्या पंडित पैदा कुल में जन्म लेना ही काफी है? या फिर वास्तव में ब्राहमण होने की कुछ पात्रता है? कुछ ऐसे कर्म हैं जो किसी ब्राहमण को श्रेष्ठ बनाते हैं?

तो आइये बारीकी से इस प्रश्न पर चर्चा करते हैं आपसे निवेदन है सच्चाई जानने के लिए इस लेख को अंत तक पढ़ें और मन में कोई प्रश्न हो तो आप 8512820608 पर whatsapp कर सकते हैं।

असली ब्राहमण कौन है?

 सनातन धर्म में एक ब्राहमण का वास्तविक स्थान क्या है? ये समझने के लिए हमें उपनिषदों के पास जाना होगा। क्योंकी हिन्दू धर्म के सबसे प्राचीनतम और पूजनीय ग्रन्थ हैं वेद, और वेदों का अमूल्य ज्ञान उपनिषदों में समाहित है।

तो अगर आप वज्रसूचि उपनिषद पढ़ते हैं तो आप हैरान हो जायेंगे की वास्तव में ब्राहमण वैसा तो बिलकुल नहीं होता जैसा हम प्रायः समाज में देखते हैं, जी हाँ ऐसा क्यों कह रहे हैं आप वज्रसूचि उपनिषद का पाठ करके पता कर सकते हैं।

वज्रसूचि उपनिषद पढ़ें

वज्रसूचि उपनिषद को पढने पर आप पाएंगे कोई बात जबरदस्ती थोपी नहीं गई है, मानो एक वैज्ञानिक तरीके से ब्राहमण की सच्ची परिभाषा का अर्थ खोजने का प्रयास किया गया है।

शुरू में ही सवाल आता है जो पूछता है की क्या ब्राह्मण होना जीव की बात है? तो जवाब आता है नहीं जीव तो इस संसार में अनेक तरह के पैदा होते हैं और नष्ट हो जाते हैं?

फिर प्रश्न आता है की क्या ब्राह्मण होना शरीर की बात है? तो जवाब आता है नहीं, शरीर तो चांडाल से लेकर मनुष्य तक सभी के शरीर पञ्च भौतिक होते हैं।

इसी तरह चर्चा आगे बढती रहती है, और अंत में हम वज्रसूचि उपनिषद के इस श्लोक को पढ़कर साफ़ हो जाता है की आखिर सच्चा ब्राहमण कौन है? और ब्राहमण किसे बोला जाये।

उपनिषद कहते हैं की आत्मा ही सत्-चित् और आनन्द स्वरुप तथा अद्वितीय है! इस प्रकार के ब्रह्मभाव से सम्पन्न मनुष्यों को ही ब्राह्मण माना जा सकता है। यही उपचिषद् का मत है॥९॥

उपनिषदों में निहित इसी बात को जरा विस्तार में समझें तो ब्राह्मण वो नहीं जो किसी खास कुल में पैदा हुआ हो, ब्राह्मण वो नहीं जो पूजा पाठ, हवन कर्मकांड इत्यादि जानें और धार्मिक आचरण करें।

ब्राह्मण वो भी नहीं जो दान करता हो तो फिर अंत में प्रश्न आता है की ये सबकुछ होने का अर्थ ब्राह्मण होना साबित नहीं करता तो कौन सी ऐसी बात है जो किसी ब्राह्मण की वास्तविक पहचान है।

तो जवाब आता है ब्राह्मण मात्र उसे समझना जो ब्रह्म में लीन हो, ब्रह्म माने जो सच्चाई का प्रेमी हो, सच्चाई को पूजता हो और सत्य को जीता हो और उसी को बांटता हो मात्र वो ब्राह्मण है।

तो जल्दी से किसी के वस्त्र देखकर किसी की बातों को देखकर उसे ब्राह्मण घोषित मत कर लीजियेगा, उपनिषदों में कही बातों पर गौर कीजियेगा और देखना जिस इन्सान को आप ब्राह्मण कहना चाह रहे हैं वो ब्रह्म में लीन है या नहीं।

अगर कोई सच्चाई के खातिर किसी बड़े और असम्भव प्रतीत होते कर्म कर रहा है तो समझ लीजिये वो ब्रह्म में लीन है। सत्य को जानना तो फिर भी सरल होता है उसे जीने में कठिनाई होती है, इसलिए फिर लाखों में कोई एक होता है जो वास्तव में सच्चाई जानकर उसी के अनुरूप कर्म करता है और वही वास्तव में ब्राह्मण होता है।

इसलिए कहा गया की ब्राह्मणत्व कमाना पड़ता है, ब्रहामण होने के लिए सच्ची जिन्दगी जीनी पड़ती है मात्र ज्ञान इक्कठा कर लेना काफी नहीं होता। सही जीवन जीने के लिए कठिन साधना करनी पड़ती है तब जाकर कोई इंसान ब्राह्मण कहलाने का अधिकारी होता है।

जानें: आत्मा क्या है?

असली ब्राहमण के 5 गुण और पहचान

समाज में प्रचलित एक ब्रहामण की छवि को थोडा किनारे रखके यदि आपने ऊपर समझा होगा की वास्तव में ब्राह्मण कौन है? तो फिर ऐसे में प्रश्न आता है की सच्चे ब्राह्मण के गुण और पहचान क्या है।

#1. सत्य/ब्रह्म सर्वोपरी होता है।

एक असली ब्राहमण भगवान का पुजारी बाद में होता है, सत्य के प्रति उसके अन्दर प्रेम पहले से होता है। अतः भले जाति से इन्सान ने किसी भी कुल में जन्म लिया हो अगर सच्चाई जानने की उत्सुकता और सच्चाई से जीवन जीने का अभ्यास वो करता है तो समझ लीजिये ये ब्राह्मण की पहली पहचान है।

बहुत से लोग सच जानने के बाद भी वैसा ही जीवन जीना पसंद करते हैं जैसे वो सालों से जीता आ रहे हैं। ये जानने के बाद भी की जो काम में कर रहा हूँ उन कार्यों को लालच और डर की वजह से कर रहा हूँ ये जानते हुए भी वे लोग सच की तरफ बढ़ने का अभ्यास नहीं करते।

इसी प्रकार कोई व्यक्ति जो दिखे बहुत ज्ञानी हो, उसने वेद शास्त्र सब पढ़े हैं। लेकिन जिन्दगी में उसके लालच ,डर बहुत है और छोटी छोटी बातों पर उसे क्रोध आ जाता है तो समझ लीजिये वो इन्सान ब्राह्मण तो नहीं है।

#2. उसके कर्म सत्य के केंद्र से निकलते हैं।

सच्चाई उसके कर्मों में निहित होती है, जो इंसान ये जान गया की उसके दुखों का कारण कोई और नहीं बल्कि वह खुद है, तो ऐसा इन्सान अब अपने मन पर विश्वास करना छोड़ देगा, वो कहेगा तूने ही तो मुझे आज तक इतने रास्ते बताये और देख न उन पर चलकर मेरी क्या हालत हो गई है।

मैं कितना बेचैन, अशांत रहता हूँ। तो ऐसा इन्सान फिर सच्चाई के केंद्र से जीता है वो कहता है की अगर मुझे जीवन में शांति, प्रेम चाहिए तो अब मैं काम मन के लिए नहीं सच्चाई के नाते करूँगा। एक बार जो दिख गया सच है, अब उस सच के पथ पर वो इंसान चलने लगता है।

इसलिए जो वाकई जान लेता है की ब्राह्मण होने का असली अर्थ क्या है तो फिर वह समाज में जैसे और ब्राह्मण आचरण करते हैं, धर्म के नाम पर जो पाखंड करते हैं उनसे वह दूर हो जाता है।

#3. वह आत्मज्ञानी होता है।

ब्राह्मण जो ब्रह्म में आचरण करता हो यानि जो सत्य के आधार पर जीता हो। पर सत्य जीवन में पता चले इसके लिए ये तो पता होना जरूरी है न की झूठ क्या है? क्या है जिस पर भरोसा नहीं किया जा सकता?

इसलिए जो ब्राह्मण होता है वो जानता है अपने मन की दशा के बारे में, वो अहंकार को समझता है इसलिए वो फिर संसार में धक्के खाने से इधर उधर भटकने से बच जाता है।

तो अगर आप पाते हैं आपके जीवन में तकलीफें बहुत हैं, आप बार बार एक ही गलती दोहरा लेते हैं तो समझिएगा की आत्मज्ञान की कमी है आप खुद को नहीं समझते इसलिए धोखा जाते हैं।

पढ़ें: आत्मज्ञान क्या है, आत्मज्ञानी बनने की विधि

#4. सांसारिक ज्ञान में निपुणता होती है।

असली ब्राहमण होने की एक निशानी यह होती है की वो सिर्फ अपने मन को ही नहीं समझता वो दुनिया को भी भली भाँती जानता है। ये नहीं हो सकता की उसे खुद का ज्ञान पूरा हो लेकिन संसार कैसे चलता है? यहाँ मौजूद विषयों के बारे में उसे कोई ज्ञान न हो।

बहुत से होते हैं वो कहते हैं हमें आत्मज्ञान हो गया है, अब हमें संसार से कोई मतलब नहीं। पर जो वास्तव में ब्राह्मण होता है वो जानता है की आत्मज्ञानी होने का अर्त्थ निकम्मा हो जाना दूर कहीं जंगल में बस जाना बिलकुल नही होता। एक आत्मज्ञानी भरपूर काम करता है, पर अपने लिए नहीं सच्चाई के खातिर।

इसलिए वो संसार के बारे में भी ज्ञान इसलिए नहीं हासिल करता ताकि जानकारी हासिल करके वो यहाँ मजे मार सके, वो संसार को जानता है ताकि इसी संसार में धोखे न खा सके। और साथ ही सही काम को सही तरीके से कर सके।

#5. ऊँचा लक्ष्य चुनता है।

एक सच्चा ब्राह्मण वह होता है जिसने अब अपने मन की गुलामी करनी छोड़ दी हो, प्रायः हम जैसे जीते हैं उसमें हम पाते हैं की जहाँ हमारा मन कहता है हम उसी दिशा को चल देते हैं। एक शराबी की भांति जिसे उसके पैर जिधर ले जाए वो उधर ही बढ़ता रहता है।

पर जो आत्मज्ञानी हो चुका है जिसने संसार और मन को समझ लिया है वो जानता है की दुनिया में ऐसा कुछ भी नहीं जो उसे तृप्त कर सके। तो वो आम व्यक्ति की भाँती घर,गाडी खरीदने को जिन्दगी नही बनाता।

वो अब इसी संसार में रहकर किसी ऐसे जरूरी काम को अपना लक्ष्य बनाता है जो लक्ष्य असम्भव प्रतीत होता है पर फिर भी बिना सफलता या असफलता की परवाह के सही लक्ष्य में डूबा रहता है।

तो ये कुछ खूबियाँ होती हैं एक वास्तविक ब्राह्मण की अन्यथा कोई कहे मेरे पूर्वज मुनि भारद्वाज थे और मैं ख़ास पंडित हूँ तो समझ लेना उसका मन/अहंकार ये सब बोल रहा है। और वो बड़ा पाखंडी है।

उच्च ब्राह्मण कौन है?

ऊँचा ब्राह्मण वो जिसके जीवन में सत्य से महत्वपूर्ण नहीं। सत्य उसके लिए इतना जरूरी हो जाता है की उसके बिना अब उसे चैन नहीं।

इतिहास में बहुत लोग हुए हैं जो शरीर से, व्यवहार से, जाति से ब्राह्मण नहीं थे पर उनके मन में सच्चाई के प्रति प्रेम इतना था की उसके आगे उन्होंने अपने शरीर का भी त्याग करना स्वीकार किया।

भगत सिंह, सच्चाई के इतने प्रेमी थे की जान लिया था की देश की आजादी के लिए मेरा शहीद होना ही जरूरी हो चुका है तो हँसते हँसते शरीर की आहुति दे दी। तो जाति से तो ब्राह्मण नहीं थे लेकिन वास्तव में वो ऐसा इन्सान थे जो ब्रह्म में लीन थे या की जिन्होंने आत्मा को सच्चाई को सर्वाधिक महत्वपूर्ण दिया तो वह भी ब्राह्मण ही थे।

सच्चा ब्राह्मण कौन है?

ब्राह्मण वो जिसने जान लिया की ब्राह्मण होने का अर्थ किसी खास घर में पैदा होना, और ख़ास तरह का आचरण करना नहीं होता। वह व्यक्ति जो जान गया की ब्राह्मण होने के नाते जितना पाखंड और तमाम तरह की क्रियाएं करते हैं फिर वो ज्ञानी व्यक्ति वैसा करना छोड़ देता है।

फिर वो एक नयी शुरुवात करता है, इसी को द्विज कहा गया है यानी उसका दूसरा जन्म होता है। पहले जहाँ वो कर्म इसलिए करता था क्योंकि उन कर्मों से उसके लालच, इच्छाओं की पूर्ती होती थी।

अब वही इंसान और मेहनत से वह कर्म करता है जो करना उसका धर्म/कर्तव्य है। और इस सच्चाई के मार्ग पर चलते हुए चाहे उसे चाहे कितनी भी परेशानी आये वो हार नहीं मानता।

गीता के अनुसार ब्राह्मण कौन है?

यावान्, अर्थः, उदपाने, सर्वतः, सम्प्लुतोदके,

तावान्, सर्वेषु, वेदेषु, ब्राह्मणस्य, विजानतः।।46।।

सब तरफ से परिपूर्ण महान् जलाशय के प्राप्त होने पर छोटे गड्ढों में भरे जल में मनुष्यका जितना प्रयोजन रहता है अर्थात् कुछ भी प्रयोजन नहीं रहता, वेदों और शास्त्रों को तत्त्व से जाननेवाले ब्रह्मज्ञानी

का सम्पूर्ण वेदों में उतना ही प्रयोजन रहता है अर्थात् कुछ भी प्रयोजन नहीं रहता।

भगवदगीता का यह श्लोक कहता है की ब्रह्म को तत्व से जान लेने वाला ही ब्राहमण है। यानी जो मनुष्य ये जान लेता है की मात्र ब्रह्म ही सत्य है बाकी सब मिथ्या है। यहाँ श्लोक में जिन छोटे गड्डों की बात की जा रही है, ये गड्डे मनुष्य की छोटी छोटी इच्छाएं हैं।

मनुष्य सोचता है अपनी इच्छाएं पूरी करके मैं तृप्ति पा लूँगा इसलिए कभी वह गाडी के पीछे, कभी घर के पीछे और कभी अन्य चीजों के पीछे भागता है। पर क्या वास्तव में यहाँ कुछ भी ऐसा है जिसे पा लेने भर से इंसान का मन तृप्त हो जाए। जो कहते हैं ये पा लो तब खुश हो जाओगे। क्या वो खुश हैं?

नहीं, बस इतनी सी बात की संसार में ऐसा कुछ नहीं जो उसे तृप्त कर सके, सतुष्ट कर सके। जो इस तथ्य को, इस सच को जान लेता है कृष्ण कहते हैं सिर्फ उसे ब्राह्मण जानियेगा। और जानने का यह अर्थ नहीं की एक बार जान गए की संसार माया है और फिर भी आप इसी माया को पाने के लिए दौड़ रहे हैं।

नहीं। सच जानने के बाद जो उस सच्चाई में जिए सो ब्राहमण है। इसलिए उस इन्सान की महान जलाशय से तुलना की गई है की जिसे असली सच मालूम हो जाए फिर वह छोटी छोटी चीजों की परवाह नहीं करता। जिसे परमात्मा, ब्रह्म मिल गया फिर उसे रूपये, पैसे, इज्जत की परवाह नहीं होती।

परमात्मा को पाने के लिए आपको कहीं जाना नहीं है, कुछ खरीदना नहीं है वो है सदा से ही तुम्हारे भीतर है लेकिन चूँकि हमने फ़ालतू की कई चीजों को सच मान लिया है इसलिए जो परम सच है हम उससे दूर हो गए हैं।

हमें लगता है ब्राहमण वह जो ज्ञानी होता है पर श्लोक को ध्यान से पढ़ें तो कृष्ण साफ़ साफ़ कह देते हैं की ज्ञान इक्कठा कर लेना बहुत छोटी बात है, जिसका वेदों से, जानकारी को इक्कठा करने से प्रयोजन है वह ब्रहामण नहीं है।

ब्रहामण वो जिसे ज्ञान से भी मुक्ति मिल गई हो, अब उसका उठना बैठना, कर्म करना सब ब्रह्म को यानी सच्चाई को समर्पित हैं।

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अन्तिम शब्द

तो साथियों इस लेख को पढने के बाद ब्राहमण कौन है? और उसकी वास्तविक पहचान क्या होती है, आप भली भाँती समझ गये होंगे। हमें लगता है एक ब्राहमण होने के लिए एक सही जिन्दगी जीनी पड़ती है, कठिन अभ्यास करना पड़ता है। अगर अभी भी लेख के प्रति मन में कोई प्रश्न है 8512820608 तो इस whatsapp नम्बर पर बेझिझक सम्पर्क कर सकते हैं।

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