शिवलिंग का नाम कैसे पड़ा? जानें ये गुप्त सच्चाई!

शिवलिंग को लेकर अनेक किस्से और कहानियाँ प्रचलित हैं, उनमें से कुछ किस्से बस मनगढ़ंत हैं, जिनमें कोई सच्चाई नहीं, इसी तरह एक प्रश्न है की आखिर शिवलिंग का नाम कैसे पड़ा? आइये जानते हैं सच्चाई क्या है?

शिवलिंग का नाम कैसे पड़ा

धर्म सम्बन्धी जब भी कोई बात हो तो हमें सचेत हो जाना चाहिए। यूँ ही किसी की बात पर भरोसा करने से पूर्व हमें शास्त्रों की तरफ जाना चाहिए? तब जाकर हमें किसी भी बात का वास्तविक अर्थ मालूम होता है।

शिवलिंग को लेकर मीडिया में और अक्सर लोगों के बीच इसलिए विवाद होते हैं क्योंकि बहुत सी ऐसी बातें हैं जो भ्रमवश वो सच मानने लगे हैं। क्योंकि वो जानता है शिव कौन हैं तो वो शिवलिंग का महत्व समझ जायेगा।

इसलिए इस वार्ता को आगे बढाते हैं और शिवलिंग से जुड़ा एक अनोखा सच, प्रमाण के साथ आपके समक्ष सांझा करते हैं। सबसे पहले समझते हैं

शिवलिंग क्या है? क्यों पूजनीय है?  

शिवलिंग की उत्त्पति की पूरी कहानी अथवा प्रक्रिया जानने से पहले हमें समझना होगा ये शिवलिंग शब्द का मतलब क्या है?

लोगों से यह प्रश्न पूछें तो दर्जनों बातें सुनने को मिलेंगी। इतिहास में बहुत से ऐसे लेखक, विचारक हुए जिन्होंने शिव को जिस नजर से देखा उन्हें उसी नजर से परिभाषित कर दिया।

आज भी आप इन्टरनेट पर जाएँ तो आपको शिवलिंग के बहुत से अर्थ देखने को मिलेंगे। ऐसे में वास्तविक यानि अध्यात्मिक अर्थ क्या है समझना जरूरी हो जाता है।

शिवलिंग का अर्थ है शिव का प्रतीक। चूँकि शिव का अर्थ है सत्य और लिंग का अर्थ होता है चिन्ह यानी एक इशारा। अतः हम कह सकते हैं की जो सच्चाई का प्रतीक है उसे शिवलिंग कहा जाता है।

शिव दो अर्थों में पूजनीय है पहला ये निराकार सत्य का प्रतीक है, यानी शास्त्रों को विशेषकर अथर्ववेद को आप पढेंगे तो मालूम होगा शिवलिंग को एक खम्भे के रूप में परिभाषित किया गया है।

जहाँ स्पष्ट रूप से कहा गया है की एक स्तम्भ के रूप में सत्य ने समस्त देवी देवता और यहाँ तक की पूरी संसार को आश्रित किया है।

आसान शब्दों में कहें तो सत्य ही है जो इस पूरी दुनिया को चला रहा है, उसी सच्चाई को बाद में शिवलिंग के रूप में पूजा जाने लगा।

दूसरा कारण शिवलिंग को पूजने का ये है की निराकार रूप में जहाँ ये सत्य का घोतक है वहीँ साकार रूप में शिवलिंग पुरुष और प्रकृति दोनों के तालमेल को दर्शाता है।

अर्थात शिवलिंग को अगर आप ध्यान से देखें तो जो उसका उपरी हिस्सा है उसे पुरुष यानी चेतना कहा गया है, चेतना का अर्थ होता है मन

जबकि शिवलिंग का निचला हिस्सा जो योनी पर टिका हुआ है उसे प्रकृति कहा जाता है।

तो इस प्रकार शिवलिंग संदेश देता है की संसार में चाहे कुछ होता रहे, कितने ही उतार चढ़ाव आते रहे मनुष्य की चेतना (मन) कभी घबराएं नहीं, कम्पित न हो।

जिस तरह शिवलिंग अचल होकर प्रकृति के बीचों बीच स्थापित है उसी तरह कभी ख़ुशी आये, कभी गम आये, कुछ भी दुनिया में चलता रहे, लालच आये, डर लगे मनुष्य अपने धर्म से अडिग न हो।

आसान शब्दों में कहें तो जब जब हम शिवलिंग को हाथ जोड़ते हैं तब तब मनुष्य का मन कभी सच्चाई का साथ न छोड़े इस बात की तरफ इशारा करता है।

अब वो मनुष्य जो शिवलिंग के इस अर्थ को समझता ही नहीं, और बिना जाने समझे पूजा करने लगता है, शिवलिंग पर कुछ भी चढाने लगता है ऐसे लोगों के भला शिव क्या काम आयेंगे।

शिव तो उन्हीं पर कृपा बनायेंगे न जो उनके प्रतीक को समझे। आजकल शिवलिंग के नाम पर बहुत सी बातें

चल रही है कोई कह रहा है इसपर दूध चढाने से शिवलिंग मजबूत होगा तो कोई कहता है ऐसे करो तो मनोकामना पूरी होगी।

बाकी बातें फिजूल हैं जो सही है, सच्चा है वो अर्थ हमने आपके साथ सांझा कर दिया।

शिवलिंग का नाम कैसे पड़ा?

पुराणों में शिवलिंग की उत्पत्ति से जुडी अनेक कहानियां हैं, वो कहानियाँ काल्पनिक हैं और उन्हें पढने पर मजा भी खूब आता है, आइये लिंगमहापुराण में लिखी एक कहानी का जिक्र करते हैं जिससे आपको मालूम हो जायेगा की आखिर शिवलिंग का नाम क्यों और कैसे पड़ा।

एक समय की बात है भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के बीच किसी मसले पर विवाद हो गया। लेकिन देखते ही देखते ये मुद्दा इतना बढ़ गया की अग्नि की ज्वालाओं से लिपटा एक लिंग उनके मध्य आकर स्थापित हो गया।

इस लिंग को देख दोनों इसका रहस्य जानने के लिए चल पड़े, पर हजारों वर्षों की खोज के बाद भी उन्हें इस लिंग का स्त्रोत मालूम नहीं हुआ। इसके बाद जैसे ही वो वापस उसी स्थान पर आये उन्हें उस शिवलिंग से ॐ की आवाज सुनाई दी।

और उन्हें मालूम हुआ की यह ध्वनि सामान्य नहीं है, और उसके सामने शीश झुकाकर शिवलिंग की साधना करने लगे। लम्बे समय की कड़ी साधना के बाद उस लिंग से भगवान शिव अवतरित हुए और उन्होंने भगवान शिव को सद्बुद्धि का वरदान दिया।

तभी से इस लिंग को भगवान शिव का पहला शिवलिंग मानकर पूजा जाता रहा है, और आज भी इसकी पूजा होती रही है।

तो साथियों ये थी कहानी, हालाँकि अगर हम इसी पृथ्वी पर शिवलिंग के इतिहास की बात करें तो 5 से 6 हजार वर्ष पूर्व मोहनजोदड़ो की खुदाई के समय भी शिवलिंग खुदाई में मिले।

जो ये बताता है की भगवान शिव की आराधना हेतु लम्बे समय से शिवलिंग एक प्रतीक के रूप में पूजा जाता रहा है।

पर याद रखें शिवलिंग को लेकर किस्से और कहानियों में क्या लिखा है? ये जानने से अधिक महत्वपूर्ण है शिवलिंग के प्रतीक को समझना। बिना उसे समझे शिवलिंग का पूजन व्यर्थ है।

शिवलिंग को देखें तो ये बात याद रखें 

शिवलिंग से जुडी एक अनूठी और सच्ची बात समझने के बाद अब सवाल आता है की हम शिवलिंग की पूजा किस तरह से करें? ताकि हमारी पूजा सफल रहें।

देखिये जो व्यक्ति समझ गया शिवलिंग के पीछे की हकीकत क्या है? ऐसा व्यक्ति शिवलिंग के सामने सर झुकाएगा तो ये बात याद रखेगा की संसार के बीचों बीचों जिस तरह शिवलिंग अचल, अकम्प, निश्चल होकर खड़ा है।

उसी तरह चाहे जो भी हो जाये, जो मेरा धर्म है मैं उसपर अडिग रहूँगा। मन में कितना ही लालच, कितना ही डर क्यों न आ जाए मैं अपने रास्ते से नहीं हटूंगा। जो सही है, सच्चा है उसके साथ रहूँगा।

संक्षेप में कहें तो धर्म में स्थापित रहने का संदेश देता है शिवलिंग, और जो ये बात याद रख लेता है और सच्चाई के रास्ते पर चलता है उसपर शिव की कृपा हमेशा बनी रहती है।

पर वह व्यक्ति जो झूठ में जीता है, गलत रास्ते पर चलकर जीवन व्यर्थ गवाता है उसे शिव की अनुकम्पा से हमेशा दूर ही रहता है।

अंतिम शब्द

तो साथियों इस लेख को पढने के बाद शिवलिंग का नाम कैसे पड़ा? और शिवलिंग को लेकर महत्वपूर्ण बात आप जान गए होंगे।

इस लेख को पढने के बाद मन में कोई सवाल है तो इस हेल्पलाइन whatsapp नम्बर 8512820608 पर साँझा करें, साथ ही लेख लाभकारी सिद्ध हुआ है तो इसे शेयर करना तो बनता है।

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