धार्मिक स्थलों पर गले में रुद्राक्ष की माला धारण किये, लम्बी दाढ़ी के साथ पीले अथवा गेरुए वस्त्र पहने अनेक साधु संत दिखाई देते हैं, पर असली साधु की पहचान क्या है? ये हम नहीं जानते।
क्या साधु होना शारीरिक बनावट की बात है या फिर कुछ बिरले होते हैं जो साधु बन पाते हैं।
आज आप इस लेख में असली साधुओं की कुछ विशेषताएं जानेंगे जिनके आधार पर आपको असली और नकली साधु में भेद करना आसान हो जायेगा। क्योंकी वास्तव में साधु के भेष में रहना और साधु के जैसा विराट हृदय होना अलग अलग बातें हैं।
ठीक वैसे जैसे भगवान शिव का भेष बनाना सरल है लेकिन शिव जी जैसा जीवन जीने वाला कोई बिरला होता है।
अतः यदि आप वास्तविक साधु की पहचान करके उसकी शरण में जाना चाहते हैं या फिर उनसे मिलना चाहते हैं तो यहाँ दिए गये बिंदु आपके लिए साहयकमंद साबित होंगे।
असली साधु की पहचान क्या है?
एक बात जो एक सामान्य व्यक्ति को साधु से विशेष बनाती है वो है मन की ऊँचाई। यूँ तो पदार्थ के रूप में साधु के पास ऐसा कुछ भी नहीं होता जो वो लोगों को बाँट सके न कोई कीमती वस्तु न पैसा पर फिर भी संसार में साधुओं की भूमिका को समझना है तो कबीर साहब का यह दोहा पढ़िए:
आग लगी आकाश में झर-झर गिरे अंगार,
संत न होते जगत में जल मरता संसार
तो चलिए जानते हैं वो क्या खास बात है साधु संतों में एक पैसे, शक्ति से भरपूर आदमी को भी उनके चरणों में झुकने के लिए मजबूर कर देती है।
#1. वास्तविक साधु इच्छा शून्य हो जाते हैं।
जहाँ एक आम इन्सान दुनिया में इज्जत, पैसे और तमाम तरह की सुविधाओं को पाने के लिए आकर्षित रहता है और पूरी जिन्दगी इन्हीं चीजों को पाने के पीछे दौड़ता है और अंततः मर जाता है।
पर एक साधु वो है जिसके मन से इच्छाओं का पहाड़ मिट चुका है, उसके मन में अब अपने लिए और न अपनों के लिए कुछ पाने की चाहत शेष नहीं रहती।
इसलिए हम पाते हैं साधु अपनी मस्ती में जीता है। वो चिंतामुक्त जीवन जीते हैं? क्योंकी जिनके लिए चिंता करनी पड़ती है उनको तो उसने कब का छोड़ दिया।
अगर आप ध्यान से देखें तो हमारे जीवन में भी दुःख इसलिए है क्योंकी हम कभी लोगों पर तो कभी वस्तुओं से उम्मीदें बांधते हैं और जब हमारी उम्मीदें पूरी नहीं हो पाती तो हमें दुःख मिलता है।
बहुत से लोग इस उम्मीद में पैसा कमाते हैं ताकि भविष्य में उनकी चिंताएं मिट जाएँगी। लेकिन वो पाते हैं धन कमाने की उम्मीद में जो सुख शांति उनके जीवन में पहले थी वो अब मिट गई है।
दूसरी तरफ साधु के मन में चूँकि कोई इच्छा नही होती इसलिए सर्दी गर्मी, दिन रात उनके लिए एक समान हो जाते हैं।
#2. साधु संसार की सच्चाई जानकर सच्चा जीवन जीता है।
हमने जाना की साधु इच्छा शून्य हो जाते हैं, इच्छाएं ही मनुष्य के दुःख का कारण होती हैं। पर क्या वजह है की हमारे मन में तो असीमित इच्छाएं रहती हैं और दूसरी तरफ साधु वो जिसने अब संसार में किसी से उम्मीद रखनी बंद कर दी है?
आखिर ऐसा कैसे सम्भव हो पाता है? इसके पीछे कारण है सच को जानना। साधु भली भाँती जानते हैं की ये संसार क्या है? माया क्या है? आत्मा क्या है? और मन क्या है? इसलिए फिर साधु कहते हैं की यहाँ तो कुछ भी ऐसा नहीं है जो मन को तृप्त कर सके।
इसलिए साधु इस संसार में मौजूद किसी वस्तु या व्यक्ति को पाने की आस छोड़ देते हैं वो कहते हैं जो आनन्द हम पाना चाहते हैं वो संसार में तो नहीं मिलेगा। इसलिए फिर वो जरा सा समाज से दूरी बना लेते हैं, अपना व्यवहार अपनी जीवनशैली ऐसी बना देते हैं जिससे की वो समाज से दूर नजर आते हैं।
पर ध्यान से समझें तो इसके पीछे कारण है साधु का आत्मज्ञान, एक बार जिस इंसान को दुनिया की हकीकत पता चल जाती है। एक बार व्यक्ति यह जान लेता है की जिस महासुख की हमें तलाश है वो पैसे कमाने, किसी से रिश्ता बना लेने, इज्जत पा लेने से नहीं मिलने वाला।
तो फिर वो कुछ ऐसा करता है जिससे वास्तव में आनंद आता है, उसी को भगवद्गीता में निष्काम कर्म कहा गया है।
#3. साधु के जीवन में ऊँचा लक्ष्य होता है।
आम व्यक्ति को आम इसलिए कहा जाता है क्योंकी जैसे वो सीमित होता है उसी तरह उसके लक्ष्य भी उसी की तरह सीमित होते हैं।
सीमित से आशय उन चीजों से है जिसे प्राप्त किया जा सकता है, जिसे पाने से पल भर का सुख मिलता है। एक आम आदमी की जिन्दगी में सपने क्या होते हैं? एक नौकरी, एक घर, एक गाडी, अच्छा साथी।
और इन्हीं चीजों को पाने के लिए वो पढ़ाई करता है, और अपनी जवानी का कीमती समय खर्च करता है। और बहुत मेहनत करके वो इन्हें पा भी लेता है तो मन उसका तृप्त होता नहीं।
पर चूँकि साधु यह हकीकत जानता है इसलिए वो इन चीजों का पीछा करना बंद कर देता है, अब राम की प्राप्ति उसका लक्ष्य बन जाती है। वो जानता है माया तो आज तक किसी के हाथ नहीं आई तो वो अब राम को पाने और अपना जीवन सार्थक बनाने की तरफ निकल पड़ता है।
#4. साधु भोग अय्यासी में लिप्त नहीं होता।
साधु वो जिसने जान लिया है की प्रकृति को भोगने की जो आशा आम मनुष्य में होती है उसमें कोई समाधान नहीं है।
एक अय्यास आदमी की जिन्दगी को देखकर हम लोगों को लगता है यार। इसकी कितनी मौज है कुछ करना नहीं पड़ता महंगी गाड़ियों में घूम रहा है, महंगी दारु और वो सब कुछ कर रहा है जो हम करने का सपना देखते हैं।
पर साधु जानता है की इस संसार में जितना हम भोगते हैं, जितना हम चीजों को पाने की कोशिश करते हैं उतनी प्यास हमारी बढती जाती है। परिणाम ये होता है की जिस चीज़ को आप अपनी जिन्दगी बता रहे थे उसे आपने पा भी लिया वो भी आपकी प्यास शांत नहीं कर पाती।
इसलिए साधु अय्यासी इसलिए नहीं करते क्योंकी समाज उसे गलत मानता है, साधु अय्यासी से दूर इसीलिए होते हैं क्योंकी ऐसा करके अंततः मिलना कुछ नहीं है? इंसान की प्यास बढ़ जाती है।
#5. साधु वो जो सदा बांटता है।
एक सांसारिक व्यक्ति से आप जो भी लोगे उसे देने में वो संकोच करेगा क्योंकी वो जानता है जो कुछ मेरे पास है, वो सीमित है और उसे बेहिसाब बांटने से मेरा नुकसान हो जायेगा।
दूसरी तरफ साधु को कुछ ऐसा मिल गया है की वो जितना बांटता है वो चीज़ उतनी बढ़ जाती है। इसलिए असली अमीरी देखनी है तो साधुओं के पास जाइए।
पदार्थ के रूप में उनके पास कुछ भी नहीं, शायद 2 जून की रोटी पाने के लिए भी उन्हें संघर्ष करना पड़ता है। पर जो ज्ञान, जो परम आनंद उन्हें मिला हुआ है वो दुनिया में कहीं और मिल ही नहीं सकता।
इसलिए उस अमृत ज्ञान को पाने के लिए जो भी उनके पास आता है वो उसकी झोलियाँ भर देते हैं और इन्सान जो तकलीफें लेकर आया था वो खुश होकर उनके चरणों को छूकर लौटता है।
इसलिए कहा गया की सम्भव हो तो रोज करो, रोज नहीं तो पन्द्रह दिन में, और इतना भी नहीं हो पाता तो महीने में सही एक बार साधुओं की संगती करो। उनके पास कुछ ऐसा है जो तुम्हें कहीं और नहीं मिल सकता।
बार – बार नहिं करि सकै, पाख – पाख करि लेय |
कहैं कबीर सों भक्त जन, जन्म सुफल करि लेय ||
#6. साधु जिसे माया नहीं राम दिखते हैं।
सडक पर चलते हुए एक आम व्यक्ति से पूछिए उसके क्या सपने हैं अधिकांश लोगों के जवाब कुछ इस तरह होंगे एक बढ़िया पैसे वाली नौकरी, बड़ा घर, बड़ी गाडी, खूबसूरत पत्नी या पति।
और अपनी इन्हीं कामनाओं की पूर्ती के लिए वो स्वयं को खूब घिसता है। बहुत मेहनत करता है। और अंततः किसी तरह इन सब चीजों को पा भी लेता है तो वो पाता है कुछ है मेरे भीतर जो अभी भी सूखा है, अधूरा है, बेचैन है।
और वो फिर उस बेचैनी को खत्म करने के लिए दारु, नशे का इन्तेजाम करता है। दूसरी तरफ साधु इस माया के खेल को समझ जाते हैं।
अतः वे माया को ठगनी कहकर माया से दूर हो जाते हैं। वो कहते हैं माया तो झूठी है ये जैसा दिखती है वैसी है कहाँ। इस बात का सबूत ये है की बचपन में आपको लगता होगा की बड़े हो जायेंगे तो जिन्दगी अच्छी चलेगी।
पर आज देखिये क्या वाकई आनन्द है जिन्दगी में, जो सोचा होगा काफी सालों पहले काफी हद तक मिल भी गया होगा पर क्या आज भी मन संतुष्ट हुआ है नहीं न।
इसलिए साधु इस हकीकत को देखते हुए कहते हैं की यहाँ तो कुछ मिलने वाला नही है, इसलिए माया को अलविदा कहके वो राम की शरण में जाते हैं।
और उनकी भक्ति में वो इस कदर लीन होते हैं की उन्हें फिर ये सब चीजें जो आम इन्सान को बहुत आकर्षित करती हैं वो करनी बंद हो जाती हैं। उनके उठने बैठने, खाने पीने का एक ही उद्देश्य है राम। इसलिए हम पाते हैं की आम लोग जहाँ रात को गहरी नींद में सोते हैं।
वहीं दूसरी तरफ साधु उस समय में भी भक्ति करते हैं। वो जानते हैं अब जीवन बस उस एक को समर्पित कर दिया है तो हम बस उसी के खातिर उठेंगे, खायेंगे और जियेंगे।
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अंतिम शब्द
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