राखी बांधने का शुभ समय| जानिए शुभ मुहूर्त कौन सा है?

इस रक्षाबन्धन यदि आप अपने भाई की कलाई में राखी बांधकर उसके जीवन में सुख शांति, धन वैभव की कामना करती हैं तो इस लेख में आप राखी बांधने का शुभ समय जानेंगी।

राखी बाँधने का शुभ समय

देखिये हिन्दू धर्म में परम्पराओं और रीती रिवाजों का विशेष स्थान है, इसलिये सैकड़ों हजारों वर्षों से राखी के पावन पर्व को आज भी बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है।

हर साल की तरह इस बार भी इस पर्व को मनाने की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं ऐसे में कलाई में राखी बांधकर बहन को जीवन रक्षा का वचन देने वाले इस पर्व को मनाने का सबसे उपयुक्त समय कौन सा है?

ये समझने के लिए हम इस विषय पर ज्योतिषियों/पंडितों की राय तो जानेंगे ही साथ में हम इस पर्व के सीक्रेट पहलू पर भी बात करेंगे जिसे जानकर आपकी आँखें खुली रह जायेंगी।

साथ ही उस सच को जान लेने से ये पावन पर्व आपकी जिन्दगी को बेहतर बनाने में मददगार साबित होगा। अतः आपसे निवेदन है ध्यान से अंत तक इस लेख को पढ़ें।

शास्त्रों में राखी बाधने का महत्व

राखी के शुभ समय को जानने से पूर्व हमें समझना होगा राखी के पर्व का शास्त्रीय महत्व क्या है?

शास्त्रों में इस त्योहार से जुडी प्रचलित कहानी के अनुसार राजा महाबली भगवान विष्णु के परम भक्त थे।

और महाबली विष्णु जी की भक्ति में इतने अधिक लीन थे की वो उन्हीं के पास जाकर बसने लगे। अब यह सब देखकर माँ लक्ष्मी चिंता में पड़ गयी तो अपने पतिदेव को अपने पास वापस लाने के लिए उन्होंने एक युक्ति निकाली।

उन्होंने ब्रहामण वेश धारण किया और राजा महाबली के पास पहुँच गई और ब्रहामण के रूप में एक कलावा बाँधा और फिर अपनी इच्छा पूरी करने की बात कही। राजा महाबली उन दिनों चूँकि बड़े प्रसन्न थे तो उन्होंने कहा बताओ क्या मांगते हो?

तो कहानी कहती है की माँ लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को मांग लिया। जब महाबली को मालूम हुआ ब्राह्मण वेश धारण किये और कोई नहीं यह स्वयं विष्णु जी की पत्नी हैं तो वे अपने वचन का पालन करने के लिए विवश हो गए।

इस तरह कहानी कहती है की रक्षा यानि कलावा बांधकर राजा को धर्म के बंधन में डालकर वचन पूरा करने के लिए मजबूर कर दिया।

और हमें यह कहानी संदेश देती है की जिस तरह रक्षा के एक धागे ने महाबली जैसे असुर राजा को धर्म में अडिग रहने के लिए मजबूर कर दिया इसी तरह आम लोगों को भी यह रक्षासूत्र यानी राखी का धागा धर्म यानी सच्चाई के रास्ते पर चलने के लिए विवश करता है।

इस तरह शास्त्रों में राजा महाबली पर आधारित एक और पौराणिक कहानी है जिसमें रक्षाबन्धन का पर्व हमें राखी के धागे के माध्यम से धर्म पर चलने की सीख देता है।

एक और बात यहाँ समझने योग्य है की शास्त्रों की दृष्टि से रक्षाबन्धन का त्यौहार ब्राह्मणों का त्यौहार है। ध्यान दें ब्राहमण से आशय किसी जाति के व्यक्ति से नहीं है।

शास्त्रों में वो इन्सान जो सच्चाई के रास्ते पर चले उसे ब्रहामण माना गया है। अतः शास्त्र कहते हैं इस पर्व पर ब्रहामण का कर्तव्य है की वह सभी लोगों को रक्षासूत्र बांधें ताकि राष्ट्र का प्रत्येक व्यक्ति धर्म के रास्ते पर चले।

ध्यान दें शास्त्र में लिखी कोई बात किसी व्यक्ति विशेष का भला करने के लिए नहीं अपितु सभी की भलाई के इरादे से कहीं गई होती है।

राखी बाधने को लेकर प्रचलित मान्यता

तो ऊपर हमने जाना की रक्षाबन्धन के पर्व के बारे में शास्त्र क्या संदेश देते हैं। लेकिन वास्तव में आज हम जिस मान्यता के साथ रक्षाबन्धन के पर्व को मना रहे हैं उसका समबन्ध शास्त्रों से नहीं है।

जी हाँ, हम ऐसा क्यों कह रहे हैं ये समझने के लिए आपको थोडा सा इतिहास में चलना होगा देखिये राखी पर्व की जिस परम्परा का हम पालन कर रहे हैं वो बहिर्विवाह से सम्बन्धित है।

सरल शब्दों में इस बात को समझें तो देखिये आज भले ही स्त्रियाँ विभिन्न क्षेत्रों में पुरुषों की भाँती कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रही हैं। पर पारम्परिक रूप से महिलाओं को इतना अधिकार नहीं मिला की वो शिक्षित हो सके और कमाई कर सके।

इसलिए हम पाते हैं की महिलाओं को जीवन भर आर्थिक रूप से किसी पुरुष पर निर्भर रहना पड़ता है । शादी से पूर्व बिटिया जहाँ पिता पर आश्रित होती हैं तो शादी के बाद पति पर उन्हें निर्भर होना पड़ता है।

पर कल्पना कीजिये एक लड़की जो आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं है, लेकिन शादी से पूर्व पिता के घर पर रहकर कभी उसे कोई तकलीफ नही हुई लेकिन एक दिन उसकी शादी हो जाती है।

और शादी के बाद कई वर्षों तक सब सही चलने के बाद अचानक एक दिन उसके पति की मृत्यु हो जाती है तो बताइए अब उसके पास क्या सहारा बचा? कुछ नहीं न।

तो शादी के बाद भी लड़की का अपने मायके से एक सम्बन्ध बना रहे इस सोच के साथ राखी बाँधने की परम्परा शुरू हुई, जिसमें लड़की भाई के हाथ पर राखी बांधती है और भाई उसकी जीवन भर रक्षा करने का वादा करता है।

यही वजह है की हम पाते हैं की बचपन से लेकर अपने विवाह के बाद भी एक बहन भाई के हाथों में रक्षा सूत्र बांधती है। ताकि विवाह के पश्चात यदि किसी तरह की दिक्कत आये तो भाई का सपोर्ट सदा उसके साथ रहे।

तो साथियों इसी परम्परा पर आगे चलते हुए आज भी रक्षाबन्धन का यह त्यौहार मनाया जाता है।

इस प्रकार हमने जाना की रक्षाबन्धन के पर्व का शास्त्रीय महत्व क्या है? और साथ ही हमने जाना की आज के समय में निभाई जाने वाली रक्षा बंधन की परम्परा का सच क्या है? आइये अब हम आगे बढ़ते हैं।

राखी पर्व है खुद को मजबूती देने का 

देखिये शास्त्रों में और समाज में प्रचलित रक्षाबन्धन पर्व में अंतर जान लेने के बाद राखी बाँधने का शुभ समय तभी पता किया जा सकता है जब हम पहले समझें की हमें शास्त्रों का अनुसरण करना चाहिए या फिर परम्परा का।

अगर प्रचलित मान्यता को देखा जाए तो मालूम होता है की पहले की तुलना में आज समय बहुत बदल चुका है, आज भाई की भांति बहनों के लिए भी शिक्षा प्राप्त करने, रोजगार हासिल करने के तमाम अवसर हैं।

कई लड़कियां हैं जो आज आत्मनिर्भर हैं, उन्हें भाई की रक्षा की जरूरत ही नहीं, वो चाहे तो खुद अपनी रक्षा कर सकती है। और आज समाज में लाखों महिलाएं हैं जो आत्मनिर्भर हैं वो इस बात को एक प्रमाण के तौर पर सामने रखती हैं।

तो यदि आप एक लड़की हैं तो हम आपसे यही कहेंगे की रक्षाबन्धन पर भाई से रक्षा का वचन मांगने से कहीं ज्यादा जरूरी है खुद की रक्षा स्वयं करना।

अगर आप आत्मनिर्भर नहीं हैं, शिक्षित नहीं अर्थात पढ़ाई करने के बाद भी यदि आप आज भी पिता पर या भाई पर आश्रित हैं तो क्या ये अच्छी बात है नहीं न।

तो सबसे पहले आप खुद समर्थ बनिये, आप खुद अपने पैरों पर खड़े होइए। क्योंकि तभी आप असल मायनों में शास्त्रों में लिखी बात को हकीकत बना पाएंगे।

शास्त्र कहते हैं की ये पर्व हमें संदेश देता है की धर्म यानी सच्चाई की रक्षा करो। क्योंकि धर्म अगर नहीं है तो फिर अत्याचार, हिंसा, पाप तो होंगे ही।

पर बताइए क्या आज दुनिया में धर्म जीत रहा है या फिर अधर्म? एक से एक पापी, झूठे, दुराचारी लोगों के हाथ में पैसा है और वो अपनी शक्तियों का गलत उपयोग कर रहे हैं।

आज पशुओं पर, कमजोर लोगों पर यहाँ तक की झूठे/अधर्मी लोगों द्वारा प्रकृति पर घोर अत्याचार किया जा रहा है। तो क्या ऐसे समय में हमें सच्चाई को पीठ दिखानी चाहिए या फिर सच के रास्ते पर चलना चाहिए?

धर्म के रास्ते पर चलने का मतलब है, जो बात गलत है झूठी है उसका बहिष्कार करो फिर भले ही कितने लोग उसे क्यों न मानें। और वो काम करो जो करना बेहद जरूरी है।

पढ़ें: जिन्दगी में क्या करने योग्य है?

कहावत है धर्म रक्षति रक्षितः यानि आप धर्म यानी सच्चाई की रक्षा कर लो बाकी आपकी रक्षा स्वयं धर्म कर लेगा। और आज हमें सचमुच जरूरत है सच्चाई को जिताने की।

अगर हम शास्त्रों की सीख पर चलें तो रक्षाबन्धन का पर्व पुरुष हो या स्त्री सभी को धर्म पर चलने की सीख देता है।

साथ ही यह पर्व उन्हें संदेश देता है की महिलओं को किसी की रक्षा की जरूरत नही, वो अपनी रक्षा स्वयं कर सकती हैं। इतने महान विचारों को लेकर आने वाला रक्षाबन्धन के पर्व को हम सभी नमन करते हैं।

राखी बांधने का शुभ समय ऐसे जानें  

राखी के शास्त्रीय महत्व को समझने के बाद अब आप जान चुके होंगे की राखी पर्व सिर्फ भाई को कलावा बाँधने, उससे रुपया पैसा लेने, मिठाई खिलाने का नहीं है।

बल्कि ये पर्व हमें धर्म के रास्ते पर सच्चाई के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करता है। तो बिलकुल आप इस बार रक्षाबंधन पर भाई को राखी बांधें।

पर जब आप राखी बांधें तो दिमाग में ये बात रहे की देख भाई। मुझे तेरी रक्षा की जरूरत नहीं मैं अपनी रक्षा खुद कर लूँगी। बस तू मुझसे वादा कर की तू हमेशा धर्म का साथ देगा।

और चूँकि मैं तुझे राखी बाँध रही हूँ तो मैं भी हमेशा धर्म के साथ, सत्य के साथ चलूंगी, मैं झूठे लोग, झूठी व्यवस्था का साथ नहीं दूँगी। मैं वो काम नहीं करूंगी जिससे धर्म की हानि हो जिससे बेजुबान जीवों का, लोगों का और प्रकृति का नाश होता है।

तो जब आप इस सोच के साथ भाई को रक्षाबंधन का कलावा बांधेंगी यकीन मानिए सुबह, दोपहार या शाम जब भी भाई को राखी बांधेंगी वो समय शुभ ही होगा।

लेकिन यदि आप पंडित/ज्योतिष के बताये समय पर राखी बाँधने लगे और इस पर्व को बस एक रस्म अदाएगी की तरह निभाने लगे तो फिर त्यौहार से कोई लाभ नहीं होगा।

देखिये प्रत्येक त्यौहार हमें जिन्दगी में कुछ सिखाने के लिए आता है, पर यदि हम त्यौहार की दी गई सीख का पालन ही नहीं करेंगे तो फिर व्यर्थ है किसी त्यौहार को मनाना।

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अंतिम शब्द

तो साथियों इस लेख को पढने के बाद राखी बांधने का शुभ समय कौन सा है? अब आप भली भाँती जान गए होंगे। इस लेख को पढ़कर किसी तरह का प्रश्न बाकी है तो हेल्पलाइन नम्बर 8512820608 पर साँझा करें। साथ ही इस लेख को अधिक से अधिक सोशल मीडिया पर शेयर भी कर दें।

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