शाम की पूजा कितने बजे करनी चाहिए| जानें शुभ समय

सायंकाल पूजा के लिए सबसे पवित्र और लाभकारी समय माना जाता है, ऐसे में बहुत सारे लोग शाम की पूजा कितने बजे करनी चाहिए? इस प्रश्न का जवाब खोजते हैं, आइये सच्चाई जानते हैं।

शाम की पूजा कितने बजे करनी चाहिए

धार्मिक विषय होने के कारण इस विषय पर लोगों के मत अलग अलग हैं, सभी विद्वानों की राय इस विषय पर भिन्न भिन्न होती है। जिसे देखते हुए अक्सर भक्तों के मन में पूजा का सही समय निर्धारित करने का संशय बना रहता है।

अगर आप भी इसी परेशानी से गुजर रहे हैं, और शाम को आरती और पूजा पाठ का श्रेष्ठ समय जानना चाहते हैं तो यहाँ हम आपके साथ कुछ ऐसे फैक्ट्स रखेंगे जिनके आधार पर आप खुद एक सही समय पूजा पाठ का चुन पायेंगे।

तो आइये इस लेख में आगे बढ़ते हैं, लेकिन उससे पहले निवेदन है लेख में बताई बातें महत्वपूर्ण हैं अतः बारीकी से एक एक बात को समझने के लिए लेख को अंत तक पढ़ें, तभी आपको इसका पूरा लाभ मिलेगा।

शाम की पूजा कितने बजे करनी चाहिए| जानें सच!

मान्यताओं के अनुसार सूर्य छिपने के बाद संध्या काल का समय पूजा के लिए सबसे उचित माना जाता है, हालाँकि ऋतुओं में परिवर्तन के चलते सटीक बदलाव होता रहता है।

उदाहरण के लिए गर्मियों के मौसम में चूँकि दिन देर से छिपता है अतः 7:30 से लेकर 8:00 बजे के बीच का समय पूजा पाठ के लिए उत्तम माना जाता है, दूसरी तरफ सर्दियों में आरती पूजा का समय शाम 6 से 6:30 तक हो सकता है।

हालाँकि इस विषय पर किसी शास्त्री, पंडित या विद्वान का मत अलग हो सकता है, अतः यह याद रखना जरूरी है की हमें किसी के विचारों को सुनकर निराश नहीं होना चाहिए।

बल्कि सांय काल की पूजा सम्पन्न हो, भगवान हमारी पूजा से प्रसन्न हो इसके लिए हमें समय से ज्यादा ध्यान पूजा के उद्देश्य पर लगाना चाहिए।

अगर पूजा करने के पीछे भाव, इरादा ठीक है तो समझ लीजिये पूजा सफल हुई। पर अगर नियत ठीक नहीं है तो भले आप सटीक समय पर पूजा करें इससे कोई लाभ नहीं होगा।

उदाहरण के लिए अगर मैं इस उद्देश्य से भगवान के मंदिर में जा रहा हूँ ताकि मुझे किसी तरह का लाभ मिल जाये, कोई सुख मिल जाये तो समझ लीजिये मैंने अपने मन में भगवान की छवि ऐसे ही बना ली है जैसे बाजार की होती है।

बाजार में जो चाहो वो मिल जाता है, इसी तरह मुझे लगता है भगवान के आगे सर झुकाओ तो जो चाहो वो मिल जायेगा।

जी नहीं अगर मैं इस इरादे के साथ भगवान को पूज रहा हूँ तो समझ लीजिये मेरी पूजा पाठ करने का कोई लाभ नहीं।

लेकिन अगर मैं इस भाव से भगवान राम और कृष्ण भगवान के आगे सिर झुकाता हूँ ताकि राम जी की तरह मैं भी अपने जीवन में सच्चाई के रास्ते पर चल सकूं, मेरा मन शांत और स्थिर रहे मेरे मन में जानवरों और जीवों के प्रति प्रेम और करुणा हो।

तो बिलकुल भगवान मेरी सुन सकते हैं, और मुझे आशीर्वाद के रूप में कुछ ऐसा दे सकते हैं जो कभी भी पैसे से नहीं मिल सकता।

पर अगर मैं कुछ भौतिक वस्तु मांगने की नियत से उनकी पूजा कर रहा हूँ तो भले सर्दी,गर्मी में ठीक सूर्यास्त के बाद मैं आरती पूजा करने लगूं मुझे उससे कोई लाभ नहीं मिलेगा।

अतः संक्षेप में कहें तो सच्चाई की राह में चलिए, भगवान से सही चीज़ मांगिये फिर क्या फर्क पड़ता है समय थोडा ऊपर नीचे भी हो तो भगवान सब माफ़ कर देते हैं।

 शाम को आरती कितने बजे करनी चाहिये?

संध्या समय की आरती संध्याकाल के पश्चात की जा सकती है, परन्तु आरती कब और किस समय होनी चाहिए इस प्रश्न से अधिक महत्वपूर्ण है ये मालूम होना की आरती का क्या अर्थ है?

प्रायः हम भगवान जी की आरती गा लेते हैं, लेकीन आरती के पीछे का अर्थ मालूम नहीं होता।

लेकिन अगर हम समझें की आरती क्यों और किस लिए की जा रही है तो हमारी आरती सफल हो जाएगी।

उदाहरण के लिए अगर मैं इस भाव के साथ गणेश जी की आरती गा रहा हूँ ताकि मुझे भगवान की कृपा से थोडा पैसा, घर, गाड़ी, पुत्र प्रति इत्यादि हो जाए तो ये साफ़ साफ दर्शाता है की मैं अपनी कामना पूर्ती के लिए आरती कर रहा हूँ।

देखिये इस संसार में हमें जो कुछ पाना है वो तो मेहनत करने से और बुद्धि लगाने से मिल ही जाता है, फिर चाहे वो कोई भी वस्तु क्यों न हो।

तो बेहतर ये है की हम भगवान से वो मांगे जिसके लिए धर्म की स्थापना की गई। याद रखें धर्म, पूजा पाठ, आरती,भजन ये सब इसलिए तो है ताकि हम सच्चाई के रास्ते पर चल सके, जो सच है उसकी सेवा में लग सके।

गीता में कृष्ण भी तो हमें धर्म का मतलब सच्चाई बता रहे हैं न, रामयाण में भी प्रभु श्री राम अपने महान जीवन के माध्यम से संदेश दे रहे हैं न की सत्य ही सबसे बड़ी बात है।

तो जब धर्म का मतलब ही सत्य पर चलना है तो बताइए आरती गाने का मकसद रुपया, पैसा पा लेना होना चाहिए या फिर आरती ऐसे गाई की मुझे याद आ गया की मुझे तो सत्य की राह में चलना है।

बताइए कौन सी आरती बेहतर है।

शाम को पीपल की पूजा कितने बजे करनी चाहिए?

पीपल के पेड़ में भगवान विष्णु का वास माना जाता है, साथ ही इस पेड़ के धार्मिक महत्व को देखते हुए संध्याकाल में सूर्यास्त के ठीक पहले पीपल के पेड़ के नीचे दिया अर्पित करने से पितृ प्रसन्न होते हैं।

तो ये तो रही पीपल के पेड़ से जुडी धार्मिक मान्यता हालाँकि सदैव भगवान के किसी भी प्रतीक की पूजा करते हुए हमें एक आँख अपने भीतर की तरफ रखनी चाहिए।

और स्वयं से पूछना चाहिए की हम किस उद्देश्य के लिए पूजा कर रहे हैं? क्या हम सिर्फ पूजा अपने निजी लाभ के लिए कर रहे हे हैं या फिर पूजा करके हम धर्म में स्थापित होना चाहते हैं।

उदाहरण के लिए एक इन्सान है जो पूजा इसलिए कर रहा है ताकि उसे वस्तुगत कुछ लाभ मिल जाए, जैसे रुपया, मान सम्मान इत्यादि।

दूसरा है जो इसलिए भगवान को पूज रहा है ताकि वो धर्म यानि सच्चाई की राह पर चलकर अपना नहीं अपितु दुनिया का भला कर सके।

अब कहने की जरूरत नहीं की भवान उस इन्सान से खुश होंगे जो कामना पूर्ती के साथ आया है या फिर दूसरा जो दूसरों की भलाई के भाव से आया है।

शाम की पूजा कैसे करें?

शाम की पूजा करने की विधि बहुत सरल है, घर में या बाहर जहां भी मन्दिर हो। मंदिर पर जाएँ और भगवान के सामने सर झुकाएं अपनी इच्छा के अनुरूप धूप बाती करें।

उसके बाद भगवान से ये कामना करें की हे प्रभु आज जहाँ पग पग पर स्वार्थ है, लालच है, युग है ऐसे मतलभी भरी दुनिया में मुझे आप हमेशा सच्चाई की राह में आगे बढ़ाना।

मेरे भीतर जो डर,लालच है उसको कम करने की शक्ति देना ताकि मैं जिन्दगी में कोई बेहतर काम कर सकूं।

भगवान से इतनी सी प्रार्थना करें। फिर देखिये आपके जीवन में जो टेंशन हैं वो कम होंगी और सही दिशा में कदम बढाने से आपकी जिन्दगी पहले से बेहतर होगी।

अंतिम शब्द

तो साथियों इस लेख को पढने के बाद शाम की पूजा कितने बजे करनी चाहिए? इस प्रश्न का सटीक जवाब आपको मिल गया होगा। अभी भी मन में कोई सवाल जवाब है तो बेझिझक इस हेल्पलाइन whatsapp नम्बर 8512820608 पर शेयर करें, साथ ही लेख को अधिक से अधिक शेयर भी जरुर कर दें।

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