ब्रह्म मुहूर्त में क्या नहीं करना चाहिए? सावधान हो जाएँ!

ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना, भगवान को याद करना, धार्मिक पुस्तकें पढना बेहद शुभ माना जाता है ये हम बचपन से सुनते आ रहे हैं पर वास्तव में ब्रह्म मुहूर्त में क्या नहीं करना चाहिए? ये कोई नहीं बताता।

ब्रह्म मुहूर्त में क्या नहीं करना चाहिए

देखिये सिर्फ धार्मिक दृष्टि से ही नहीं अपितु वैज्ञानिक नजरिये से भी देखा जाये तो सुबह का समय शांत,ठंडा होता है ऐसे समय में इन्सान जिस भी चीज़ पर ध्यान लगाता है उस विषय के करीब चला जाता है।

प्राचीन समय में ऋषि और शिष्य गुरुकुल में प्रातः काल सत्संग किया करते थे, जहाँ शिष्य अपने मन के प्रश्नों को ऋषि से पूछते थे और ऋषि विनम्रतापूर्वक उनका जवाब भी देते थे। भले ही आज समय बदल चुका हो और ब्रह्म मुहूर्त का पालन पहले की तरह लोग नहीं करते।

लेकिन आज भी ब्रह्म मुहूर्त इन्सान की जिन्दगी बदल सकता है, अगर कोई ब्रह्म मुहूर्त का वास्तविक अर्थ समझ लें। तो उसके लिए ये भी जानना आसान हो जायेगा की मुझे क्या करना चाहिए और क्या नहीं। आइये सबसे पहले समझते हैं।

ब्रह्म मुहूर्त क्या है ?

ब्रह्म + मुहूर्त दो शब्दों से मिलकर बना है। जिसमें ब्रह्म का अर्थ है सत्य जबकि मुहूर्त से आशय किसी विशिष्ट समय से है।

अतः वह ख़ास समय जिसमें सत्य की वार्ता की जाए उसे ब्रह्म मुहूर्त कहा जाता है। दूसरे शब्दों में जिस पल हम सच्चाई के केंद्र से विचार करते हैं, कर्म करते हैं या अध्ययन करते हैं वह समय ब्रह्म मुहूर्त कहलाता है।

ब्रह्म मुहूर्त का दिन रात, सर्दी मौसम से कोई समबन्ध नहीं है। जिन्होंने भी जीवन को जाना और समझा उन्होना कहा जहाँ कहीं भी सच्चाई दिखे, वहीं सौन्दर्य हैं वही ब्रह्म मुहूर्त है।

यानी अगर रात के एक बजे आप कोई ऐसा ग्रन्थ पढ़ रहे हैं जिससे आपको जीवन का, संसार का या किसी विषय का सच मालूम हो तो समझ लीजिये वो ब्रह्म मुहूर्त है।

इसी तरह अगर दोपहर के 2 बजे सच्चाई से उद्भूत कोई आवश्यक कर्म कर रहे हैं तो समझ लीजिये जिस समय आपने सच्चाई के इरादे से कर्म करने का निश्चय किया वही समय आपके लिए ब्रह्म मुहूर्त हो गया।

अतः इसी बात से हम ये भी समझते हैं की भले कोई व्यक्ति नित्य सुबह उठकर भगवान का ध्यान करें मंदिर में जाएँ लेकिन वास्तव में वह कपटी है जो झूठे लोगों का सम्मान करता है, दूसरे का शोषण करता है तो समझ लीजिये ब्रह्म यानि सत्य से इसका कोई वास्ता नहीं है।

वास्तव में ज्यादातर लोग जो ब्रह्म मुहूर्त के नाम पर ध्यान इत्यादी करने का दावा करते हैं उनकी असल जिन्दगी में आम लोगों की भांति डर, लालच, वासनाएं हावी रहती हैं।

संक्षेप में कहें तो जिस इंसान के लिए सत्य ही सर्वोपरी है, जो सच्चाई का प्रेमी है और सच्चाई भरा जीवन जीता हो उस इन्सान के लिए जिन्दगी का प्रत्येक पल ब्रह्म मुहूर्त है।

दूसरी तरफ अगर नियत में खोट है, मन में लालच है, मन अपनी सुविधा की खातिर झूठ को भी प्रणाम करता है तो जान लीजिये कितना भी ध्यान क्यों न कर लें ब्रह्म मुहूर्त बस एक छलावा है।

अब सवाल आता है जब ब्रह्म मुहूर्त का किसी ख़ास समय से कोई सम्बन्ध नहीं है तो फिर सुबह के समय को ही ब्रह्म मुहूर्त क्यों कहा गया?

देखिये कारण साफ़ था, पहले के समय में ऋषि शिष्य की पढ़ाई के लिए गुरुकुल होते थे। और सुबह शांत माहौल में उठकर ऋषि शिष्यों को सत्य का पाठ पढ़ते थे। इसीलिए उसी समय को विशेष मानकर उसे ब्रह्म मुहूर्त कहा गया।

पर आज समय बदल गया है, अतः जिस भी पल आपको दिखे सत्य के ज्ञान की गंगा बह रही है तो समझ लीजिये यही समय ब्रह्म मुहूर्त का है।

ब्रह्म मुहूर्त में क्या नहीं करना चाहिए?

एक बार यह समझने के बाद की वास्तव में ब्रह्म मुहूर्त क्या है? इसके बावजूद आप जानना चाहते हैं की कौन से ऐसे काम हैं जो ब्रह्म मुहूर्त में नहीं करने चाहिए तो आपको निम्न बातों को ध्यान से पढना चाहिए। ताकि आप ब्रह्म/परमात्मा के और करीब आ सके।

#1. सच्चाई से दूर भागना।

हम सभी की जिन्दगी में कुछ न कुछ दुःख अवश्य होते हैं, मजबूरी में, डर में इन्सान को अनेक ऐसे काम करने पड़ते हैं जो काम नहीं करने चाहिए। पर अफ़सोस। अधिकांश लोग रोजाना डरी-सहमी, उबाऊ, प्रेमहीन जिन्दगी जीते हैं पर थोडा ठहरकर ये जानने का भी प्रयास नहीं करते की मैं इस घटिया जिन्दगी से बाहर कैसे निकलूं?

कैसे मैं झूठ, लालच से भरी जिन्दगी से बाहर आकर एक शांति पूर्ण, सच्चा जीवन जी सकता हूँ? अगर आप उन लोगों में से हैं जो सत्य के रास्ते पर चलकर एक सहज, शांत और सुन्दर जीवन जीने की कामना रखते हैं तो आपको सच्चाई से प्रेम करना होगा।

जो इंसान सच के सामने सर झुकाए, सच के रास्ते पर चले उसे इनाम ये मिलता है की दिल में उसके एक सुकून और चैन लगातार बना रहता है। उसे कोई चोट पहुँचाने की भी कोशिश करे तो भी मन में उसके प्रेम रहता है।

अतः जब कोई ऐसा मौका आये जब कोई पुस्तक या इंसान आपको सच दिखाने का प्रयास करें तो इस ब्रह्म मुहूर्त में आप उस जगह से भागें नहीं इसी में आपका धर्म और भलाई है।

ठीक वैसे जैसे कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन अपने मोह, अज्ञान के कारण धर्म युद्ध न करने का मन बना चुका था, पर जब भगवान कृष्ण ने उसे जिन्दगी का सच बतलाया यानि भगवदगीता का उपदेश दिया तो इस दौरान वो भागा नहीं, और अंततः उसने झूठ और अन्याय के विरुद्ध लड़ाई लड़ी।

इसी प्रकार हम सभी के जीवन में कृष्ण सत्य के रूप उपस्तिथ होते हैं पर जहाँ कहीं हमें सच दिखाई देता है हम उसे स्वीकार करने की बजाय उसी का विरोध कर लेते हैं, परिणामस्वरुप एक घटिया जीवन जीते हुए मर जाते हैं।

#2. कमजोरियों के आगे घुटने टेक देना।

सत्य सुन्दर होता है लेकिन इसकी कीमत वही जानते हैं जो सच्चाई के प्रेमी हो। अन्यथा आमतौर पर एक इंसान की हालत ठीक वैसी ही होती है जैसे खुद उसे कैंसर की बीमारी हो और अगर कोई डॉक्टर उसे ये सच बता दे तो वह उसी से लड़ने लग जाए।

बहुत लोग होते हैं जिन्हें साफ़ साफ ये मालूम होता है की जिन्दगी में उनके कितना दर्द है? वो कितने लालची और डरपोक हैं जो झूठ के खिलाफ आवाज उठाने से डरते हैं? यह जानने के बावजूद की मेरी तकलीफें इसीलिए है क्योंकी मैं स्वार्थी हूँ वो कभी भी अपनी कमजोरियों के खिलाफ लड़ाई करने की हिम्मत नही जुटाते।

इस प्रकार जो इन्सान सच जानने के बाद उसे स्वीकार कर, सच्चाई को जीता नहीं है वह व्यर्थ ही जीवन गंवाता है। ठीक वैसे जैसे ये जानने के बाद भी की देश को आजादी दिलाना कितना जरूरी है ये जानकर भी बहुत से लोग गुलामी की जंजीरों में पैदा हुए, बड़े हुए और समय के साथ मिट्ठी की धूल बन गए।

वहीँ कुछ गिने चुने लोग जिन्होंने सच्चाई जानकर लड़ाई करने का फैसला लिया वो शहीद होने के बाद भी आज भी अमर हैं। तो देखिये आज के समय में जो झूठ का बोलबाला चारों तरफ दिखाई दे रहा है आप उससे कैसे लड़ सकते हैं?

#3. धर्मग्रंथों से ज्यादा लोगों की बातों को मानना

धर्मग्रन्थों में जो सच लिखा होता है, उसके नजदीक हम कभी जाते ही नहीं। हम धर्मग्रन्थों के नाम पर बहुत सी बेतुकी बातों को सुन लेते हैं उन्हें सच मानकर उनका पालन भी कर लेते हैं। पर जरा भी उस बात की सच्चाई जानने का प्रयास नहीं करते।

बहुत से लोग हैं जो भगवद्गीता को आधार बनाकर अपने स्वार्थों की पूर्ती के लिए लोगों को गीता ज्ञान समझा रहे हैं और लोग उनकी बातों को मानकर आगे भी बढ़ रहे हैं। परिणाम यह है की अधिकाश लोग जो खुद को धार्मिक बताते हैं उन्हें धर्मग्रन्थों से कोई लेना देना नही होता।

वास्तव में यदि आप ब्रह्म के यानी सत्य के प्रेमी हैं तो आपको किसी भी धार्मिक बात पर विश्वास कर उसका पालन करने की बजाय उसका सच जानना चाहिए। आपको भगवान कृष्ण से प्रेम है तो आपको भगवदगीता के पास आना चाहिए, आपको राम के बारे में जानना है तो आपको रामायण और योगवाशिष्ठ पढना चाहिए।

इस तरह जब आप सच्चाई जानने के लिए इन धर्मग्रन्थों के करीब आयेंगे तो वह समय ब्रह्म मुहूर्त कहलायेगा।

#4. समय की बर्बादी करना।

ब्रह्म मुहूर्त नामक यह शब्द इसीलिए इजाद किया गया ताकि इंसान झूठ, अंधकार, अज्ञान को त्याग सच्चाई के प्रकाश की तरफ बढे। लेकिन जिसने ब्रह्म मुहूर्त को कामना पूर्ती का साधन मानकर इस समय का इस्तेमाल व्यर्थ की इच्छाओं को पूरा करने में लगा दिया समझ लीजिये उसका जीवन बर्बाद हो गया।

अतः जीवन के एक एक पल को कीमती मानते हुए जो इन्सान ब्रह्म की तरफ, सच्चाई की तरफ आने के लिए लालायित रहता है ऐसा इंसान जीवन में फालतू की गलतियों को, बेकार के कामों में अपना जीवन उलझाने से बच जाता है।

#5. ब्रह्म की बातें पर ब्रह्म में जीना नहीं।

बहुत से लोग मिल जायेंगे जो कहते हैं की हमें झूठ बिलकुल भी पसंद नहीं है। पर जरा गौर से आप उनकी जिन्दगी को देखें तो आप पाएंगे ये इन्सान कितना लालची है, कितना पाखंडी है इसने धर्मग्रन्थ तो अपने पास में रखें हैं लेकिन धर्म से इसका कोई लेना देना नहीं।

इसी तरह बहुत से लोग जोर जोर से राम के नारे लगायेंगे लेकिन राम के गुण उनकी शिक्षा उनके जीवन में कहीं नहीं दिखाई देती। बताइए वाकई मुझे कृष्ण से प्रेम होगा तो मैं भगवद्गीता पढ़कर उनकी बात को जीवन में अपनाऊंगा या राधे राधे बोलकर जिन्दगी में फालतू के काम करूँगा।

परमात्मा को तो वही पाता है जो अंततः सच्चाई जानकार सत्य में जीता है, अन्यथा सच जानकर भी जो पीछे हटे सो पाखंडी है।

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अंतिम शब्द

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