आत्मा और परमात्मा का मिलन कैसे होता है? जानें सच्चाई!

आत्माओं के मिलन होने, आत्मा के परमात्मा में समाहित हो जाने की बातें हम खूब सुनते हैं पर वास्तव में आत्मा और परमात्मा का मिलन कैसे होता है? आइये जरा सरल शब्दों में समझते हैं।

आत्मा और परमात्मा का मिलन

इस विषय को समझना इसलिए भी जरूरी है क्योंकी भारतीय समाज में धर्म के नाम पर जितना अन्धविश्वास व्याप्त है, शायद उतना कहीं भी नहीं। कोई कहता है मरने के बाद मृत शरीर से आत्मा एक शरीर से उड़कर दूसरे शरीर में जा बैठती है।

किसी को लगता है मन और आत्मा दोनों एक ही चीज़ हैं और किसी की आत्मा को दुखी नहीं करना चाहिए। इस तरह की बातें बहुत सुनने को मिलती है पर वास्तव में आत्मा क्या है? ये जानने के लिए कोई भी श्रीमदभगवदगीता, उपनिषद को पढने का प्रयास नहीं करता।

क्योंकी एक बार जो इन्सान जान गया यह आत्मा और परमात्मा क्या है? दोनों का आपस में क्या सम्बन्ध हैं? उस इन्सान को उसके प्रश्न का जवाब मिल जाता है।

आत्मा और परमात्मा क्या है?

आत्मा और परमात्मा दोनों के मिलन की प्रक्रिया को समझने के लिए हमें सर्वप्रथम इन दोनों को समझना होगा।

देखिये आत्मा और परमात्मा दोनों एक ही हैं लोगों को समझाने के लिए इस शब्द का अलग अलग इस्तेमाल होता है, कई बार आत्मा के स्थान पर सत्य, ब्रह्म जैसे शब्दों का भी प्रयोग किया जाता है।

अर्थात नाम अलग अलग हैं लेकिन ईशारा एक ही तरफ को है। वास्तव में हर जीवात्मा ( इन्सान का मन) परमात्मा की ही खोज में है।

पर चूँकि वह नहीं जानता की परमात्मा कहाँ है और कैसे मिलेगा तो वो इस परमात्मा को कभी किसी वस्तु में तो कभी किसी रिश्ते में ढूँढने लगता है।

पर संसार में कुछ भी ऐसा नहीं जिसे पाने से मन तृप्त हो जाये। अतः जिन्होंने जाना उन्होंने कहा की जिस सुकून को, आनन्द को,शांति को तुम ढूंढ रहे हो वो यहाँ मौजूद किसी चीज़ को पा लेने से नहीं मिलेगी।

यहाँ तो एक चीज़ पाओगे तो दूसरी चीज़ के पीछे भागने की तयारी शुरू हो जाएगी। यहाँ कुछ भी असली खरा नहीं है, यहाँ कुछ भी इतना विशाल और असीम नहीं है जिसको प्राप्त कर लेने से आप सदा के लिए आनन्द से भर जाए।

तुम्हें तो कुछ इतना बड़ा चाहिए जो तुमसे बहुत बड़ा हो, जो तुम्हारी पकड़ में न आ सके, जो असीम हो, अनंत हो। और उसी का नाम आत्मा या परमात्मा है।

इसलिए उपनिषदों में ऋषियों ने परमात्मा की बड़ी बात की है, संतों ने उस परमात्मा के ही गीत गाये हैं, भगवद्गीता में भी भगवान कृष्ण ने भी आत्मा पर विशेष बल दिया है।

क्योंकी परमात्मा/आत्मा ही है जो इस संसार से परे है। वो निराकार, निर्गुण है, अमिट है, उसे आँखें न भी देखें तो भी सदा था, है और रहेगा। तो ये परमात्मा की खूबी होने के साथ साथ मन की उलझन को भी बड़ा देती है।

क्योंकी मन जान तो गया है की उसे परमात्मा चाहिए पर वो कोई पैसा, घर या कोई भौतिक वस्तु तो नहीं है जिसे पाने के लिए इन्सान उसके पीछे भागे। अतः फिर इन्सान जब जानता नहीं है परमात्मा कब और कहाँ मिलेगा तो फिर वो जिन्दगी में बहुत ठोकरें खाता है।

बहुत सी जगह जाता है, बहुत गलतियाँ करता है पर वो उससे दूर ही रह जाता है। तो अब सवाल आता है

आत्मा और परमात्मा का मिलन कैसे होता है?

देखिये आत्मा और परमात्मा चूँकि दोनों एक ही हैं। अतः उनका आपस में न तो मिलन सम्भव है और न ही उनके मिलन का कोई फायदा हमें मिलेगा।

चूँकि हम बेचैन रहते हैं, बड़े दुःख झेलते हैं अतः प्रश्न ये होना चाहिए की हर इन्सान यानी जीवात्मा का परमात्मा से मिलन कैसे हो?

हम सभी एक जीव हैं, और हमारे भीतर मौजूद मन को ही जीवात्मा कहा जाता है। जीवात्मा चूँकि अज्ञानी होता है इसलिए उसे यह भ्रम रहता है की जो मैं जिन्दगी में कर रहा हूँ वो ठीक है उसे करके मुझे चैन मिल जायेगा।

पर जैसा की हमने कहा की हम अपनी जिन्दगी में मन के इशारे पर चलकर जिन भी कामों को करते हैं, जिन भी वस्तुओं के पीछे भागते हैं उन्हें प्राप्त करते हैं मन को चैन तो मिलता ही नहीं। उसकी तो भूख बढती ही रहती है।

इसलिए जीवात्मा की यह एक मजबूरी हो जाती है की वो परमात्मा को पा ले, क्योंकी बिना इसके तो वो भटकता रहेगा कभी नौकरी बदलेगा तो कभी घर को पर उसे वो चैन मिलेगा नहीं जिसकी तलाश में है।

लेकिन अगर उसे परमात्मा/आत्मा मिल गई तो फिर जो बेचैनी, जो कष्ट झेल रहा था वो सब गायब हो जाते हैं क्योंकी जिसको वो दुःख हो रहे थे वो ही मिट जाता है।

यानि जब मन आत्मा में लीन हो जाता है, जब मन को परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है तो वो मिट जाता है। इसलिए मन के भीतर जितना भी द्वन्द चल रहता था, जितनी भी इच्छाएं घूम रही थी, जिन बातों से वो डर रहा था सब मिट जाता है।

देखिये मन तो छोटा सा है, और छोटी ही चीजें मांगने की कोशिश करता है जैसे थोडा पैसा, घर, इज्जत इत्यादि। पर जब मन को असीम, अनंत, निराकार परमात्मा मिल जाता है तो वो सब छोटी चीजों को भूल जाता है।

जैसे कोई प्यासा हो और उसे पूरा कुंवा मिल जाए तो वो भूल जाता है न की पानी एक घूँट पीना है या सौ घूँट इसी प्रकार मन को जब परमात्मा मिल जाता है तो फिर वो अपनी छोटी सुख सुविधाओं को तो भूलता ही है अपने सारे दुःख भी उसे याद नहीं रहते।

तो प्रश्न आता है की एक जीवात्मा को परमात्मा कैसे और कब मिलते हैं? इसके लिए उसे क्या करना पड़ता है।

आत्मा का परमात्मा से मिलन कब होता है?

आत्मा या परमात्मा कोई दूर की चीज़ नहीं है वो तो आपके ही पास खड़ा है। बस आप उससे दूर हैं, आपने मन में कुछ ऐसी मान्यताएं बनाई हुई हैं जिसकी वजह से आप चाहकर भी उसके पास नहीं आ पाते।

प्राकृतिक रूप से हमारा मन एक छोटे बच्चे की तरह होता है जो गंदी आदतों को तो आसानी से अपना लेता है लेकिन अच्छी बात सुनने में और समझने में बड़ा जिद करता है।

सच्चाई से तो ये मन दूर भागता है लेकिन कहीं थोडा डर लगे या मन में लालच दिखे तो ये जल्दी से उन कामों को भी करने के लिए तैयार हो जाता जो घटिया हैं।

इसलिए इस मन को जितना आप सच्चाई की तरफ, अच्छी चीजों की तरफ ले जायेंगे उतना यह परमात्मा के निकट आता रहता है। यदि आप पाते हैं की आपकी जिन्दगी में डर बहुत है, आप आलस की वजह से कोई ढंग का काम नहीं करते, आप लालची बहुत हैं और आपके अंदर सौ कमियां हैं जिनकी वजह से आपको अक्सर दुःख झेलना पड़ता है।

तो अपनी इस स्तिथि को सुधारने के लिए जितना आप प्रयास करते हैं धीरे धीरे आप परमात्मा के उतने करीब चले आते हैं, जितना आप झूठ के सामने न झुकने का फैसला लेते हैं उतना आप परमात्मा के करीब आने का फैसला लेते हैं।

तो अगर ये जानना है की किसी इन्सान के जीवन में परमात्मा हैं या नहीं तो देख लीजिये उसका जीवन कैसा है? अगर जिन्दगी में प्रेम है, शान्ति है, अच्छे कर्म वह कर रहा है और निडर बेख़ौफ़ होकर जीवन जी रहा है तो समझ लीजिये उसे परमात्मा मिल चुके हैं।

पर अगर ऐसा नहीं और वह भगवान की भक्ति खूब करता है, जिन्दगी उसकी घटिया बीत रही है तो समझ लीजिये अभी परमात्मा उससे काफी दूर है।

आत्मा का दर्शन कैसे होता है?

आत्मा चूँकि कोई भौतिक वस्तु नहीं है जिसे देखा, छुआ जा सके यहाँ तक की मन जिसपर विचार कर कल्पना कर सके। आत्मा के दर्शन का प्रमाण इन्सान की जिन्दगी होती है।

वह व्यक्ति जिसके जीवन में सत्य से अधिक मूल्यवान और प्रिय कुछ नहीं। जो अपने जीवन के फैसले अपने मन के कहने पर नहीं बल्कि सच्चाई के आधार पर लेता है। जो डर,लालच, झूठ के आगे सर न झुकाकर सच्चाई के आगे नतमस्तक रहे ऐसा इंसान आत्मस्थ हो जाता है।

उदाहरण के लिए जिन महापुरुषों को आज हम पूजते हैं उन्होंने जीवन में सत्य को सर्वोपरी रखा। भगवान राम हो या शहीद भगत सिंह या स्वामी विवेकानन्द सभी का घर बार था। उनके जीवन में अनेक चुनौतियाँ आई कई बार डर भी उन्हें लगा होगा लेकिन इसके बावजूद उन्होंने जिन्दगी में वो किया जो करना उनका धर्म था।

इसी कारण शरीर से जीवित न होने के बावजूद वो सभी के भीतर आत्मा/सच्चाई के रूप में आज भी निवास करते हैं। अतः जो व्यक्ति एक सच्चा जीवन जी रहा है जान लीजिये उसे आत्मा/परमात्मा मिल चुके हैं। लाखों करोड़ों में कोई एक होता है जो भगत सिंह, संत कबीर जैसी सच्ची जिन्दगी जीने का निर्णय लेता है।

यही वजह है की जीव तो लाखों पैदा होते हैं रोजाना और मर भी जाते हैं पर आत्मा के दर्शन सभी को नहीं होते।

दो आत्माओं का मिलन क्या होता है?

तो आत्माओं का मिलन जैसा कुछ नहीं होता। आत्मा एक है जो अपने आप में पूर्ण है, असीम है, अनंत है। वहां कोई द्वैत नहीं है, उसके सिवा कोई दूसरा नहीं है अतः यह संभव नही हो सकता की आत्मा की तरह ही कोई दूसरी आत्मा हो जिसका मिलन हो जाये।

आमतौर पर इस तरह की बातें तब की जाती है जब एक इन्सान किसी से प्यार करता है तो हम कह देते हैं उसकी आत्मा उसमे बस कही गई है। पर सच्चाई ये है की जब किसी को किसी से प्रेम होता है तो मन उस इन्सान की भलाई के बारे में सोचता है।

ये नहीं होता की मेरे भीतर की आत्मा किसी दूसरे के मन पर जाकर बैठ गई। इस तरह की बातें करके हम आत्मा शब्द का दुरूपयोग कर देते हैं और हम उस सर्वशक्तिमान परमात्मा, ब्रह्म, सत्य चाहे कोई भी नाम दे दो, उससे दूर हो जाते हैं।

आत्मा के अंदर क्या होता है?

आत्मा कोई भौतिक वस्तु नहीं है, ठीक वैसे जैसे हम आपसे कहें सत्य के भीतर क्या होता है? तो आपका जवाब कुछ नहीं होगा।

इसी प्रकार आत्मा के अन्दर कुछ नहीं होता। आत्मा इस संसार में मौजूद कोई तत्व नहीं है जिसको देखा जा सके, जिसके बारे में बात की जा सके। वो तो इस संसार से परे है।

जिस प्रकार सच्चाई का रूप, रंग,आकार नहीं होता लेकिन इसके बावजूद सच्चाई जानना हर कोई पसंद करता है, हर कोई चाहता है की वो सच जानें।

इसी प्रकार आत्मा का कोई रंग रूप नहीं होता, हर इन्सान आत्मा/परमात्मा को पाना चाहता है पर जब हम कहानियों में पढ़ते हैं की आत्मा तो एक शरीर से दूसरे शरीर में जाती है और इस तरह की बातों में यकीन करते हैं।

तो जो सच्चा है, सुन्दर है हम उससे दूर हो जाते हैं और उन मान्यताओं पर यकीन कर लेते हैं जो झूठ है,व्यर्थ है।

आत्मा परमात्मा का रहस्य

आत्मा यानी सच्चाई तो सर्वदा हर काल में हर जगह उपस्तिथ है, अतः उसमें तो कोई रहस्य नहीं है। लेकिन चूँकि हम नहीं जानते आत्मा और परमात्मा का सच। अतः हमें कोई स्पष्ट बात भी बहुत घुमावनी लगती है।

आत्मा का दूसरा नाम है सत्य, और सत्य से तो हमें बड़ा डर लगता है। कोई हमें सच बता दे कोई हमें कह दे देखो तुम्हारे अन्दर कितना लालच भरा है, देखो तुम छोटी छोटी बातों में झूठ बोलते हो।

तो सच जानते हुए भी हम लड़ने लगते हैं और कहते हैं। वास्तव में जो सत्य हमें सुधार सकता था जो हमें एक बेहतर इन्सान बना सकता था उसी सत्य को ठुकराकर हम दूसरे का गला पकड़ने को तैयार हो जाते हैं।

इसलिए जिन्होंने भी जीवन को जाना समझा उन्होंने सत्य को अपना बाप माना उन्होने कहा सच से बड़ा कुछ नहीं है। वास्तव में रामायण, भगवदगीता,उपनिषद ये सभी ग्रन्थ इसलिए रचे गए ताकि हम सत्य के करीब आयें।

ताकि जैसी घटिया जिन्दगी हम जीते हैं जिसमें लालच,डर,शोषण और क्रोध होता है उसके स्थान पर हम जिन्दगी में सच्चाई को, शान्ति, आनन्द को ला सके।

पर रामायण जो हमें सिखाना चाहती है वो हम राम से सीखना नहीं चाहते, हम कृष्ण की भगवद्गीता को सुनना नहीं चाहते क्योंकि सच हमें डरावना लगता है। सच हमें एक बेहतर इंसान बनाता है और बेहतर बनने में तो तकलीफ होती है न।

तो इससे बढ़िया है आत्मा/परमात्मा को खुद से इतना दूर कर दो की कोई इनका नाम ले तो या तो डर जाए या फिर इन बातों को बहुत छोटा समझ ले।

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अंतिम शब्द

तो साथियों इस लेख को पढने के बाद आत्मा और परमात्मा का मिलन कैसे होता है? अब आप भली भाँती समझ गए होंगे। लेख को पढ़कर अभी भी मन में कोई प्रश्न है तो आप इस whatsapp नम्बर 8512820608 पर सांझा करें। साथ ही लेख उपयोगी साबित हुआ है तो इसे शेयर भी कर दें।

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