आध्यात्मिक जीवन क्या है? जानें आम जिन्दगी से कैसे अलग है?

इन दिनों “अध्यात्म” शब्द लोगों के बीच काफी प्रसिद्ध है, और बहुत से लोग जानना चाहते हैं की आध्यात्मिक जीवन क्या है? और एक आम सांसारिक जिन्दगी और एक आध्यात्मिक जीवन में क्या अंतर है?

आध्यात्मिक जीवन क्या है

तो इस मकसद के साथ की देश के प्रत्येक व्यक्ति को अध्यात्म की सटीक और सच्ची जानकारी मिल सके, हमने आध्यात्मिक जीवन कैसा होता है? इस विषय का बेहद सरल और सटीक शब्दों में वर्णन किया है।

देखिये, एक समय था भारत आध्यात्मिक गुरु के तौर पर विश्व में विख्यात था, हर जगह हमारा डंका बजता था। और आज ऐसा भी समय है जब हम किसी से पूछें आप अध्यात्म माने क्या?

तो या तो वो मौन रहता है या फिर ऐसा ही कोई उल्टा पुल्टा जवाब देकर उस बात को टाल देता है, आपके साथ ऐसा न हों इसलिए हमने आध्यात्मिक जीवन का एक सच्चा और पवित्र अर्थ आपके साथ सांझा किया है?

आध्यात्मिक जीवन क्या है?

आत्मज्ञान अर्थात खुद की सच्चाई जानकर लगातार सत्य की राह पर आगे बढ़ना ही अध्यात्मिक जीवन का सूचक है।

खुद की सच्चाई पता होने का मतलब है की इन्सान को ये मालूम होना की ये मन क्या है? ये क्यों भटकता है? और इस मन की आखिरी चाहत क्या है?

आध्यात्मिक जीवन जीने के लिए आत्मज्ञान बेहद जरूरी है, बिना आत्मज्ञान के मनुष्य जीवन में सही कर्म, सही निर्णय का चुनाव नहीं कर सकता।

क्योंकि जो व्यक्ति ये जानता ही नहीं है की जीवन क्या है? क्यों मिला है? और मन क्यों इतना बेचैन रहता है? ऐसा व्यक्ति एक के बाद एक मन की इच्छा को पूरी करने में जीवन बिता देता है।

इसलिए तो हम पाते हैं की अधिकांश लोगों को मौत आ जाती है लेकिन मन में उनके अधूरी कामनाएं फिर भी दौड़ती रहती हैं, अतः मन को मुक्ति की तरफ ले जाना यानी इसे इच्छा मुक्त करना ही अध्यात्म का परम उद्देश्य है।

अब हो सकता है की आपके मन में सवाल आये की मन में तो लगातार इच्छाएं आती रहती हैं, ये कैसे खत्म होंगी। तो देखिये इसका एक ही उपाय है सत्य यानी परमात्मा के रास्ते पर चलना।

देखिये जब इन्सान जान लेता है की मन के कहने पर चलने पर आज तक उसे ठोकर ही मिली है। तो आत्मज्ञानी कहता है की अब मैं सच्चाई का दास बन जाऊँगा अर्थात मेरा मन, शरीर, बुद्धि उसी दिशा में चलेगी जहाँ मुझे परमात्मा यानि सच्चाई लेकर जायेगी।

तो संक्षेप में कहें तो जीवन की हकीकत जानकर, अब झूठ नहीं अपितु सच के रास्ते पर चलना ही आध्यात्मिक होने की प्रमुख निशानी है।

आध्यात्मिक जीवन और सांसारिक व्यक्ति के जीवन में अंतर

सुनने में आज भी लोगों को अध्यात्म शब्द बड़ा रहस्यमई लगता है, कई लोगों के मन में आध्यात्मिक व्यक्ति की छवि एक बाबा, सन्यासी के रूप में बनी हुई हैं।

उन्हें लगता है आध्यात्मिक हो जाने का अर्थ है गेरुवे या पीले रंग के वस्त्र धारण करके घर परिवार से कहीं दूर निवास करना।

लेकिन इन दोनों में पाए जाने वाले मूल अंतर का वर्णन नीचे किया गया है।

#1. कर्म करने का उद्देश्य।

एक आम सांसारिक व्यक्ति में और एक आध्यात्मिक व्यक्ति में जो मूल अंतर पाया जाता है वो है काम का, आप पाओगे की दुनिया में अधिकांश लोग किसी नौकरी या व्यापार इसलिए करते हैं ताकि उससे उन्हें धन की प्राप्ति हो सके और फिर वो उस धन से अपनी आवश्यता और इच्छा पूरी कर सके।

पर आत्मज्ञानी वो है जो जान चुका है की दुनिया की हकीकत क्या है? जो जान गया है की पैसा, मान सम्मान या शारीरिक सुख यहाँ कुछ भी ऐसा नही जो मन को तृप्त कर सके।

तो ऐसा मनुष्य अब काम का चयन कुछ पाने के लालच और डर से नहीं करता बल्कि वो काम ऐसा चुनता है जिस काम को करना ही आज के समय में सबसे ज्यादा जरूरी है, श्रेष्ठ है। अब उस काम को अपना धर्म मानकर पूरी निष्ठा के साथ उस काम को करता है।

वो काम शिक्षा, धर्म, राजनीति किसी भी क्षेत्र में हो सकता है। तो हम कह सकते हैं की एक सांसारिक व्यक्ति जहाँ अपने पेट का पोषण करने के लिए जीता है, सांसारिक व्यक्ति जीवन में किसी ऊँचे लक्ष्य के लिए काम करता है।

पढ़ें: जिन्दगी में क्या करना चाहिए? जीवन में करने योग्य क्या है?

#2. जीवनशैली में आने वाले बदलाव।

सडकों में चलता हुआ एक व्यक्ति जिसे आम सांसारिक व्यक्ति कहा जाता है वो अपने भोजन, अपने काम, विवाह इत्यादि जीवन का महत्वपूर्ण फैसले समाज में दूसरों को देखकर लेता है।

यानी जो समाज में बाकी लोग करते हैं वैसा ही वो भी करता है, लेकिन जो आध्यात्मिक व्यक्ति होता है वो ख़ास इसलिए है क्योंकि वो देखा देखी करने की बजाय अपनी बुद्धि का प्रयोग करता है।

वो कहता है जो मैं कर रहा हूँ उससे मेरे जीवन पर और दुनिया पर क्या प्रभाव पड़ेगा? उदाहरण के लिए एक आम इन्सान के लिए पशुहत्या सामान्य सी बात है।

पर जो आत्मज्ञानी होता है वो कहता है किसी जिन्दा मासूम जानवर की मौत करके उसे खाना कहाँ तक नार्मल है, तो इस करुणा भाव से वो न सिर्फ मीट नही खायेगा बल्कि वो दूसरों को भी ये करने के लिए मना करेगा।

यही नहीं और लोग जहाँ विवाह को जीवन का अभिन्न हिस्सा मानते हुए बस किसी तरह शादी कर लेते हैं दूसरी तरफ आध्यात्मिक व्यक्ति सवाल करता है और पूछता है खुद से की क्यों शादी करनी है?

शादी करने का परिणाम क्या होगा? क्या वाकई विश्व में बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए बच्चे पैदा करने जरूरी है? या शादी करके किसी को जबरदस्ती अपने साथ रहने के लिए मजबूर करना कितना सही है?

इस तरह संक्षेप में कहें तो अध्यात्मिक व्यक्ति के हर काम के पीछे एक विशेष कारण होता है, वो यूँ ही लोगों को देखकर कोई काम नहीं करता। इसलिए असल मायने में एक आध्यात्मिक व्यक्ति समझदार होता है।

#3. सत्य ही धर्म है।

अध्यात्मिक व्यक्ति के मन में शांति, करुणा तो होती ही है पर साथ में सच्चाई के साथ उसका कुछ ऐसा रिश्ता होता है जिसे वो किसी हाल में नहीं तोड़ सकता।

आप बाहर बाहर से देखेंगे तो पायेंगे की जैसे बाकी लोग हैं वैसा ही ये भी दिखता है, लेकिन भीतर अगर आप उसके मन को समझने का प्रयास करें तो पाएंगे ये इन्सान बिलकुल अलग है।

जहाँ लोग कुछ पैसों की खातिर किसी भी अच्छे या बुरे काम को करने के लिए तैयार हो जाते हैं, वहीँ दूसरी तरफ वे लोग जो सच्चाई के पक्षधर हैं वो कहते हैं और कुछ नहीं जो काम जरूरी है, सही है मैं तो उसे ही करुँगा।

और ऐसे इन्सान को आप फिर कितने भी पैसे दे दो, कितना ही सम्मान का लालच दे दो ऐसा आदमी झुकता नहीं है। इसलिए अगर आप गर्व के साथ सर उठाकर जीना चाहते हैं तो आपके लिए आध्यात्मिक होना बहुत जरूरी है।

कुल मिलाकर सत्य के प्रति प्रेम, झूठ के प्रति विद्रोह, मन में करुणा और जीवन में एक शांति ये कुछ ख़ास लक्षण होते हैं एक अध्यात्मिक व्यक्ति होने के। अब प्रश्न आता है की

आध्यात्मिक जीवन कैसे जियें

आध्यात्मिक जीवन जीने के लिए कुछ ख़ास बातें आपको समझनी है, जिसे आप जान गए तो आपको ये भी मालूम हो जायेगा की आपको क्या चीज़ें छोडनी होती हैं और क्या बिलकुल नहीं।

#1. स्वयं की हालत को स्वीकार करना। वो इन्सान जो अपनी बुराइयां देखकर जीवन में बेहतर होने की चाहत रखता है मात्र वही आध्यात्मिक होने का अधिकारी होता है।

#2. सच्चाई के प्रति मन में प्रेम होना। हम प्रायः जैसे होते हैं हमारे भीतर डर और लालच दोनों होता है लेकिन ये जानते हुए भी जो इन्सान सही काम, सही चुनौती को स्वीकार करे जान लीजिये वो अध्यात्मिक है।

#3. इन्सान के मन में जीव और इंसानों के प्रति करुणा का भाव हो, जिसे दूसरों के दर्द में अपना दर्द दिखाई दे मात्र वो आध्यात्मिक बन सकता है, पत्थर दिल वालों के नहीं अध्यात्म।

#4. जो लोग अकेले चलने का इरादा रखते हैं वही आध्यात्मिक बन सकते हैं, क्योंकि ये राह ऐसी नहीं जिसमें आप कुनबा ले जा सके। सत्य की राह में चुनिन्दा लोग ही चलते हैं, याद रखें।

तो संक्षेप में कहें तो हर वो इन्सान जिसे शांति पसंद है, जो सच के रास्ते पर चलने का जिगरा रखता हो वो अध्यात्मिक बन सकता है?

क्या आध्यात्मिक होने के लिए कुछ छोड़ना पड़ता है?

जी हाँ आपको अपनी शर्म, अपनी बेईमानी, अपना लालच, और झूठ छोड़ना पड़ता है। आपको किसी तरह के ख़ास वस्त्र छोड़ने की आवश्यकता नहीं जो इन्सान सच के रास्ते पर चलना चाहता है उसे कठिन चुनौतियों को पार करके आगे बढ़ना ही होता है।

वह व्यक्ति जो काम करने में कंजूसी करता है, जिसे चंद रुपये ही बहुत अच्छे लगते हो ऐसा इन्सान आध्यात्मिक नहीं बन सकता। याद रखें आध्यात्मिक जीवन मात्र सच्चाई के प्रेमियों के लिए और किसी के लिए नहीं।

गजब की बात ये है की जो सच्चाई का प्रेमी होता है ऐसा इन्सान दुनिया में एक राजा की तरह जीता है, क्योंकी वो जानता है जो सबसे ऊँचा था उसके सामने सर झुका दिया, अब हमें किसी के आगे सर झुकाने की जरूरत नहीं।

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अंतिम शब्द

तो साथियों हमें आशा है आध्यात्मिक जीवन क्या है? और कैसे जियें? इस प्रश्न का उत्तर देने की हमारी यह कोशिश आपको पसंद आई होगी। अभी भी आध्यात्मिक जीवन से जुड़ा मन में कोई सवाल बाकी है तो बेझिझक आप अपने सवालों को इस Whatsapp नम्बर 8512820608 पर शेयर कर सकते हैं।

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