कहते हैं भगवान को याद करने से मनुष्य की सारी दुःख, पीड़ा खत्म हो जाती है। लेकिन वास्तव में ब्रह्म मुहूर्त में भगवान का सच्चा सुमिरन कैसे करें? हमें नहीं पता होता।
युगों योगों से मनुष्य ईश्वर को अपना आराध्य मानता आया है विशेषकर हिन्दू धर्म में तो लोग आज भी लोग प्रार्थनाएं, मन्त्र जाप का उपयोग कर लोग ईश्वर को नमन करते हैं। अगर आपकी भी ईश्वर पर अटूट आस्था है तो आज का यह लेख आपके लिए विशेष होने वाला है।
आज हम भगवान् का सुमिरन करने की एक कारगर विधि आपको बतायेंगे जिससे ईश्वर के प्रति आपके मन में श्रृद्धा का भाव तो बढेगा ही साथ में जीवन की जितनी भी तकलीफें हैं उनसे लड़ने की शक्ति आपको मिलेगी।
हम सभी उस परमात्मा को चाहते हैं जिसे परम सत्य कहते हैं। यही वजह है की हम नाना प्रकार के काम करते हैं, पढ़ाई करते है, नौकरी करते हैं और न जाने क्या क्या? ताकि हम उस परम शांति को प्राप्त कर सकें।
पर जिस रास्ते पर चलकर हम भगवान को पाने की सोचते हैं वो हमें मिलता नहीं है इसलिए आइये जानते हैं की भगवान का सुमिरन कैसे हों ताकि हम उनके करीब आ सके।
भगवान का सुमिरन करने का अर्थ क्या है?
जब जीव अपना प्रत्येक कर्म, प्रत्येक विचार परमात्मा को स्मरण करते हुए करता है। इस स्तिथि को भगवान का सच्चा सुमिरन कहा जाता है।
जब इन्सान ऐसी स्तिथि में पहुँच जाता है तो फिर उसे भगवान को, हरि को याद करने के लिए सुबह या शाम थोडा समय निकालकर भजन-आरती करने की आवश्यकता नहीं रह जाती।
बल्कि सच्चे सुमिरन में तो इन्सान उठते बैठते, चलते फिरते, सोते जागते हर समय वो परमात्मा याद रहता है।
और जब ऐसा होता है तो इन्सान के जीवन में जो भी असीम आनन्द रहता है। क्योंकी वो जानता है अब अपना जीवन उसको समर्पित कर दिया है जो सबसे बड़ा है, जिसके लिए यह जीवन मुझे मिला है।
तो अब मुझे छोटी छोटी बातों की चिंता करने की भी क्या आवश्यकता है, जब मेरा तन मन, धन उसको समर्पित हो गया है। तो जिन्दगी में छोटी छोटी परेशानियां इनको भी मैं उसी को अर्पित कर देता हूँ।
अब यदि आप सोच रहे हैं इस प्रकार सच्चा सुमिरन करने का क्या यह अर्थ है की इन्सान को सब कुछ छोड़कर दिन भर भगवान के ध्यान में लगे रहना चाहिए? क्या उसे जीवन में काम धंधा नहीं करना चाहिए हर समय भक्ति में लीन होना चाहिए?
जी नहीं आइये इस बात को अब विस्तार में समझने का प्रयास करते हैं
भगवान का सुमिरन कैसे करें?
भगवान का सच्चा सुमिरन करने के लिए इन्सान का परमात्मा से प्रेम होना आवश्यक है। परमात्मा को ही सत्य, ब्रह्म जैसे नाम दिए गए हैं।
वह इन्सान जिसे सत्य से प्रेम है, जो सत्य की खातिर झूठ के प्रति विद्रोह करने का साहस रखता है जान लीजियेगा वो व्यक्ति वास्तव में परमात्मा का प्रेमी है।
भगवान का सुमिरन करने के लिए यह बिलकुल भी जरूरी नहीं की आप सुबह शाम पूजा पाठ, भजन कीर्तन करें। ये सब विधियाँ बचपन में ठीक रहती हैं लेकिन एक समय बाद परमात्मा भी यही चाहता है की हम इन विधियों से आगे बढ़ें।
और जिन्दगी में सच्चाई की खातिर ऐसे कर्म करें जिससे की हमारा जन्म लेना सार्थक हो जाये। क्योंकी अगर नियत और इरादा सच्चाई का है तो फिर आप जो भी कर्म करोगे उससे आप परमात्मा का सुमिरन ही करोगे।
उदाहरण के लिए शहीद भगत सिंह को हम कह सकते हैं की उस व्यक्ति ने वास्तव में भगवान का सच्चा सुमिरन किया था। भले ही उन्हें लोग नास्तिक कहते थे लेकिन सच्चाई से यानी परमात्मा से जितना प्रेम उनका था ऐसा लाखों करोड़ों में एक इन्सान में होता है।
छोटी ही उम्र में उन्होंगे देख लिया था की हम भारतीय गुलामी की जंजीरों से किस तरह बंधे हुए हैं। और एक बार सच्चाई जान ली तो फिर उसी सत्य को अपना उद्देश्य मानकर उन्होंने जीवन जिया।
उन्होंने सत्य यानी परमात्मा के प्रेम में हर वो काम किया जिससे की वो देश की आजादी में सहयोग कर सके। उन्होंने पढ़ाई भी की, लड़ाई भी की सिर्फ सच्चाई की खातिर।
इसी प्रकार जो इन्सान अपने जीवन की सच्चाई जानकर किसी महान/ऊँचे काम में खुद को समर्पित कर लेता है तो फिर भगवान सदा उसके दिल में रहते हैं और लगातार उसका सुमिरन वह करता रहता है।
ऐसा इन्सान बाहर बाहर से वो सारे कर्म करेगा जो एक आम इन्सान करता है, वो काम धंधा भी करेगा, वो खेलेगा भी, वो गायेगा भी पर प्रत्येक कर्म के पीछे उसकी नियत साफ होगी वो लगातार देखता रहेगा की क्या ये जो मैं काम कर रहा हूँ इससे कहीं मैं परमात्मा से तो दूर नहीं हो जाऊँगा?
अगर हाँ तो फिर वह उस कर्म को टाल देता है, लेकिन कोई काम ऐसा है जिसे करने से वह परम लक्ष्य के करीब आ सके तो उसके लिए फिर वह हर वो प्रयास करता है जिससे वह उसके करीब आ सके।
भगवान का सुमिरन करने का सरल विधि
जैसी हम जिन्दगी जीते हैं उसमें प्रायः भगवान का सुमिरन एक जिम्मेदारी की तरह होता है, ठीक वैसे जैसे हम और सारे काम करते हैं हम उसी प्रकार भगवान को भी दिन का थोडा समय देकर उनकी पूजा पाठ करके हम उन्हें भी उसी स्तर का बना देते हैं।
हम बाजार जाते हैं, शौपिंग करते हैं दिनभर में फ़ालतू के काम करते हैं और उसमे से थोडा समय भगवान को भी दे देते हैं ये सोचकर की मैं तो एक अच्छा इन्सान हूँ। यानी हमारी जिन्दगी में आधा घंटा भगवान का और साढ़े 23 घंटे अन्य चीजों को समर्पित रहते हैं।
तो बताइए ऐसी स्तिथि में क्या भगवान का सतत सुमिरन हो सकता है? क्या ऐसे जीवन जीकर हम परमात्मा के करीब आ पाएंगे?
नहीं न, अगर चाहते हैं की भगवान सदैव आपके साथ रहें, तो फिर आपकी एक एक साँस में परमात्मा को बसाना होगा।
और ऐसा तभी सम्भव हो पायेगा जब आप अपनी जिन्दगी का एक एक कर्म परमात्मा की याद में करोगे। अगर इरादा कर लिया है की परमात्मा को तो खुद से दूर नहीं करना है तो एक विधि आपके साथ साँझा करने जा रहे हैं।
सबसे पहले देखिये जिन्दगी में आपकी तकलीफें कितनी हैं, किन कारणों से आपको दुखों को झेलना पड़ता है? कौन से काम मजबूरी में, डर में करने पड़ते हैं। वह सभी कर्म जो आपको दुःख देते हैं जिन्हें करके आप पछताते हैं वही कर्म आपके बंधन होते हैं।
और परमात्मा आपके उन बन्धनों को तोड़कर आपको अपने करीब ले जाने में मदद करता है। तो एक बार आपने ईमानदारी से यह देख लिया की जिन्दगी में क्या कुछ है जिसकी वजह से आपकी जिन्दगी से चैन, शन्ति, सच्चाई, प्रेम गायब है तो उन चीजों को जिन्दगी से निकाल दीजिये।
हालाँकि ये काम आसान नहीं है लेकिन असम्भव भी नहीं, आप कोशिश कीजिये। एक बार आप अपनी भीतर की कमजोरियों से जीत गए। तो दोबारा से व्यर्थ के बंधन आपकी जिन्दगी में न आये इसके लिए खुद को किसी ऐसे काम में झोंक दीजिये जिसे करके आप परमात्मा के करीब आ जाये।
कोई भी ऐसा काम जिससे समाज का वास्तव में कल्याण होता है, जिस काम को करने से समाज का प्रकृति का भला होता हो किसी ऐसे काम को चुन लीजिये। और उस काम में अपना समय, उर्जा, पैसा जो बन पड़े लगा दीजिये।
वो काम कितना जरूरी है एक बार आप समझ गए तो आप उस काम को अपना लक्ष्य बना लेंगे। और चूँकि वो काम सच्चा है और आवश्यक है इसलिए अपने इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए जब आप एक एक कर्म करोगे या मन में विचार करोगे तो हर साँस में आपके परमात्मा होंगे।
परमात्मा का दूसरा नाम है सच्चाई, और जब नियत सच्ची है तो जो भी आप कर्म करते हो वो उसमें परमात्मा सदा आपके साथ रहते हैं। फिर आप जीवन में सब काम करते हैं लेकिन नियत क्योंकी आपकी सच्ची है, इरादा नेक है तो फिर परमात्मा का आशीर्वाद और साथ हमेशा रहता है।
पर जो लोग सच्चाई को छोड़कर अपने मन के कहने पर चलते हैं परिणाम ये होता है की जिन्दगी उन्हें कई ठोकरें देती है और उन ठोकरों को खाते खाते वो एक दिन मर जाते हैं।
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FAQ
भगवान का स्मरण कैसे किया जाता है
अपने अच्छे कर्मों से भगवान का स्मरण सदैव होना चाहिए। जब सच्चाई की खातिर आप सही कर्म करते हैं तो आपकी हर सांस में भगवान बस जाते हैं।
भगवान का स्मरण कब करना चाहिए
अगर जीवन आप किसी सच्चे और ऊँचे लक्ष्य हेतु जी रहे हो तो भगवान का स्मरण चौबीस घंटे होता है, आपको ध्यान करना नहीं पड़ता। ध्यान हो जाता है।
अंतिम शब्द
तो साथियों इस लेख को पढने के बाद भगवान का सुमिरन कैसे करें? आप भली भाँती समझ गये होंगे, लेख को पढने के बाद अभी भी कोई प्रश्न है तो आप सीधे मन के प्रश्नों को इस whatsapp नम्बर 8512820608 पर बेझिझक सांझा कर सकते हैं।