भगवान् से प्रार्थना कैसे करें? सच्ची प्रार्थना कैसी होती है?

कहते हैं प्रार्थना में अद्भुत शक्ति होती है, जो लोग सच्चे मन से भगवान का ध्यान करते हैं उनसे भगवान अवश्य प्रसन्न होते हैं, ऐसे में बचपन में ही हमें प्रार्थना करने पर बल दिया जाता है हालाँकि भगवान् से प्रार्थना कैसे करें? सही विधि या तरीका कोई नहीं बताता।

भगवान से प्रार्थना कैसे करें

अतः आज हम इस लेख में जरा बारीकी से समझेंगे की सच्ची प्रार्थना का क्या अर्थ होता है? और किस तरह हम प्रार्थना के माध्यम से अपने जीवन में बदलाव लाकर अच्छे जीवन की तरफ बढ़ सकते हैं?

इन बातों को करीब से समझने के बाद निश्चित रूप से प्रार्थना करने को लेकर मन में जितने भी प्रश्न हैं वो सुलझ जायेंगे।

अधिकांश लोगों के लिए दोनों हाथों को जोड़कर, आँख बंदकर भगवान की तस्वीर को याद करना ही प्रार्थना है। लेकिन वास्तव में सच्ची प्रार्थना, समाज में प्रचलित इस प्रार्थना से काफी अलग होती है, जी हां सच्ची प्रार्थना के लिए इन्सान को धार्मिक स्थान पर जाने की आवश्यकता नहीं होती।

और उस प्रार्थना में इतनी ताकत होती है की इंसान को अपनी चिंता नहीं करनी पड़ती। उसकी सब समस्याएं ऊपर वाला खत्म कर देता है। आइये सर्वप्रथम समझते हैं की

प्रार्थना क्या है? प्रार्थना करने का वास्तविक अर्थ

अपने अहंकार (मन) को परमात्मा के चरणों में समर्पित कर देना ही प्रार्थना है। हम सभी अपने मन के चलाए चलते हैं, मन की अपनी इच्छाएं, स्वार्थ होते हैं। यही मन कभी दुखी तो कभी सुखी रहता है।

अपने जीवन को देखें तो आप पाएंगे की जीवन में जितनी भी परेशानियां, दुःख हैं उसका कारण यह मन ही है, मन ही है जो हमें डराता है, हमें बार बार एक ही गलती दोहराने को मजबूर करता है।

अतः संत, ऋषि मुनि जिन्होंने भी जीवन को समझा उन्होंने कहा की दुखों से मुक्ति पानी है तो अहम् से मुक्ति पाइए।

और अहम से मुक्ति यानी इसे त्यागा तभी जा सकता है जब हम इससे बड़ा कुछ और पा लें। क्या है? जो सबसे बड़ा है वो है “सत्य

जीवन में कभी ऐसी स्तिथि आई है जब सामने कुछ ऐसा जरूरी काम होता है जिसके आगे मन को सोचने का विकल्प नहीं होता बस आप उस काम को करने लगते हैं।

उदाहरण के लिए रोड पर किसी का एक्सीडेंट हुआ है तो ये इन्सान थोड़ी सोचता है की मन. मेरा कर रहा है, आप झट से इन्सान को अस्पताल ले जाते हैं क्योंकि सच्चाई को पीठ दिखाकर आप कहाँ भागोगे।

इसी तरह जब इंसान अपने जीवन में महत्वपूर्ण काम जैसे नौकरी, करियर का चुनाव अपनी इच्छाओं के आधार पर नहीं बल्कि देश और संसार की स्तिथि को देखकर करता है तो समझ लीजिये उसने वास्तव में अपना अहम सच्चाई को समर्पित कर दिया।

इस बात में कोई दो राय नहीं की मन की इच्छाओं को दबाकर जीवन में सही काम करने का फैसला लेने पर मन बड़ा विरोध करता है, मन तो चाहता है मजे मारना। पर जब आप उसे सत्य के रास्ते पर चलने के लिए कहते हैं तो इसे बड़ी तकलीफ होती है।

लेकिन जो लोग इस मन को साध कर इसे सत्य की दिशा में उन्मुख करते हैं। ऊपरवाला फिर उसे कुछ ऐसा आनंद देता है जो कभी मन के कहने पर उसे मिल ही नहीं सकता था।

इसलिए भगवदगीता, उपनिषद सभी ग्रन्थों को पढने पर पाएंगे वहां इन्सान को यह संदेश दिया जाता है की मन, ईगो, सेल्फ, अहम को महत्व देने की बजाय सच्चाई को महत्व दीजिये।

संक्षेप में कहें तो जब एक इंसान चाहे वो चाहे किसी भी मजहब से सम्बन्ध रखता हो यदि वह अपने मन की इच्छाओं से ज्यादा सच्चाई को प्राथमिकता देता है तो यही वास्तव में प्रार्थना है।

भगवान् से प्रार्थना कैसे करें? ईश्वर की प्रार्थना कैसे करें?

प्रार्थना का सच्चा अर्थ जानने के बाद अब आपके दिमाग में प्रार्थना को लेकर जो छवि आती है उसके विषय में प्रश्न आ रहा होगा।

आप सोच रहे होंगे हमारे लिए तो प्रार्थना का अर्थ हाथ जोड़कर भगवान का ध्यान करना होता है? तो क्या प्रार्थना का वो तरीका ठीक नहीं है?

देखिये विद्यालयों में, मंदिरों में, मस्जिद में, चर्च में जहाँ कहीं भी हम सुबह या शाम के समय प्रार्थना होते देखते हैं। वो प्रार्थना एक विधि है एक ईशारा है, जिसके माध्यम से हम सच्चाई तक पहुँच सके।

पर जिसने उसी को प्रार्थना मान लिया और उसी में वह संतुष्ट हो गया ऐसा इन्सान फिर वास्तविक प्रार्थना से वंचित हो जायेगा। ऐसा इंसान जिन्दगी में इसी भ्रम में जियेगा की मैं तो अच्छा इन्सान हूँ रोजाना नियमित रूप से प्रार्थना करता हूँ।

वो जान ही नहीं पायगा जो मन उसे इतनी बातें बोलकर बहका रहा है यही तो उसे छोटी छोटी बातों में उलझाकर उसका जीवन बर्बाद किये दे रहा है। और इसी मन से मुक्ति पाना ही तो वास्तविक लक्ष्य है न।

पर चूँकि इन्सान को ये मालूम भी हो जाये की मन ही समस्त दुखों का कारण है तो भी वह मन को प्राथमिकता देना बंद नहीं करता।

वो मन के अनुसार ही चलता है क्योंकि मन तो चाहता है वो जिन्दगी भर इन्सान को अपने कब्जे में रखें। इसलिए जैसे ही आप कोई ऐसा नेक काम करोगे जो सच्चा है, सही है।

मन तुरंत भीतर से कहेगा छोडो न। मुझे क्या पड़ी है इस काम को करने की।

इस तरह मन कभी डराकर, कभी लालच देकर इंसान को हमेशा सत्य जानने से, सच्चाई में जीने से दूर रखता है। और इन्सान जो मन के आधार पर जीता है वह जिन्दगी में अनेकों दुःख इस आस में सहता है की कभी तो सुख मिलेगा।

तो जब भी भगवान से प्रार्थना करें उनके आगे सर झुकाएं। तो सदैव कहें हे भगवान। मुझे, मुझसे ही बचाना। क्योंकि और कोई दुश्मन नहीं है मेरा मन ही मेरा शत्रु है। जो यह जानते हुए सच्चाई में जीने का अभ्यास करता है उस इन्सान की प्रार्थना वास्तव में स्वीकार होती है।

अन्यथा बहुत लोग घूम रहे हैं जो सुबह शाम पूजा पाठ, आरती भजन, प्रार्थना सब कर रहे हैं लेकिन जिन्दगी में उनके घोर लालच,डर और बेचारगी रहती है।

प्रार्थना से जुड़े भ्रम 

हमारे लिए प्रार्थना का अर्थ किसी ईश्वर, भगवान को प्रसन्न करना होता है। हम सोचते हैं जब इन्सान किसी धार्मिक स्थल पर जाएँ, वहां किसी विशेष मुद्रा में खड़े रहें या बैठे तो वास्तव में यह प्रार्थना है।

इस प्रार्थना में आमतौर पर इंसान अपने मन की इच्छाओं की पूर्ती के लिए भगवान को याद करता है।

बल्कि वास्तव में प्रार्थना इन सबसे परे है, प्रार्थना तो आंतरिक बात है। यह बिलकुल सम्भव है की कोई इन्सान रोज प्रार्थना, पूजा पाठ करते दिखाई दे, लेकिन आन्तरिक रूप से वह पैसे का, इज्जत का या किसी अन्य वस्तु का लालची हो।

और ये भी सम्भव है की कोई इन्सान आपको न तो पूजा पाठ करते दिखाई दे, न वह किसी धार्मिक स्थल पर  जाते दिखाई दे लेकिन आंतरिक रूप से उसका जीवन सच्चाई को समर्पित है। उसका हर एक काम, उसका उठना बैठना और भाग दौड़ करना सब काम सच्चाई को समर्पित हो।

फिर दोहराते हैं सच्चाई को समर्पित माने जीवन में कोई ऐसा लक्ष्य बना लेना जिसे करना अब मजबूरी सी बन जाये। तो उस बात को या उस स्तिथि को सत्य मानकर उसको ठीक करने के लिए कर्म करना ही सच्चाई पर आधारित जीवन है।

जैसे देख लिया की दुनिया में धर्म को लेकर अन्धविश्वास बहुत हैं, तो अब चाहे मन विरोध करे या ख़ुशी दे, काम तो यही करना है जिससे समाज का भला होता है तो जानिए सच्चाई को आपने अपना जीवन समर्पित किया।

इसलिए जल्दी से किसी को धार्मिक या अधार्मिक घोषित करने से पूर्व तथा किसी को प्रार्थना करते देख ये मत समझ लीजियेगा वो अच्छा इन्सान है। अच्छा मात्र वो इन्सान है जिसने अब अपने मन की इच्छाओं पर चलना छोड दिया है जिसने सत्य (आत्मा, परमात्मा) के आगे सर झुका दिया है उसी की प्रार्थना भगवान ने स्वीकार की।

प्रार्थना कब करनी चाहिए? 

जिस पल ये अहसास हो जाये की अब जीवन में दुखों का निवारण मुझसे नहीं होगा जब यह जान लोगे की अपनी तेज बुद्धि से जीवन में बहुत आगे नहीं जाया जा सकता। तो समझ लीजियेगा की अब प्रार्थना करने का समय आ गया है, अब खुद को उस परमात्मा के आगे समर्पित करने का समय आ गया है जो तुम्हारे दुखों से मुक्ति देगा।

इन्सान के जीवन में दुःख ही न होते तो शायद इन्सान को पूजा पाठ, भगवान से प्रार्थना की भी अवश्यकता नहीं पड़ती। पर प्रार्थना हमें संदेश देती है की देखो तुम यानि तुम्हारा अहम बहुत छोटा है, और ये ऐसा ही रहते हुए सच्चाई को, शांति को नहीं पा सकता।

तुम्हें अगर मन को तृप्त करना है, जीवन में असीम शान्ति चाहिए तो तुम्हें इसका त्याग करना पड़ेगा।

तभी जाकर तुम्हारे दिल का जो बड़ा सा छेद है जो तमाम चीजों को पा लेने के बाद भी भरता नहीं है, वो तभी भरेगा जब तुम मन के कहने पर मन के रास्ते पर चलना छोड़ दोगे। जब तुम मन से भी बड़ी कोई चीज़ मन को दे दोगे तो चमत्कार यह होगा की जो मन में छोटी छोटी बातें चलती थी अब वो चलना बंद हो जाएगी।

एक बार ईमानदारी से ये जान गए की दुनिया में कितने सारे लोगों को आज भी किसी चीज़ के कारण बहुत कठिनाई झेलनी पड़ती है तो अब आपसे रहा नहीं जायेगा उस समस्या को सही करने में। और जब आप दूसरे की समस्या को हल करने के लिए प्रयत्न करते हैं आपकी अपनी निजी समस्या छूमंतर हो जाती है।

सुबह की प्रार्थना कैसे करें?

सुबह उठकर कुछ समय अपने साथ एकांत में बिताएं और पूछें क्या है जिन्दगी में जो मुझे सबसे ज्यादा परेशान करता है, क्या है जिसकी वजह से मुझे खुलकर जीने में समस्या हो रही है?

और जब धीरे धीरे जवाब मिलने लगे तो अपनी परेशानियों का समाधान निकालकर एक आजाद जीवन बिताने के लिए एक मिनट भगवान को याद करें।

और कहें हे प्रभु। मेरे जीवन में असीम दुःख हैं जिनकी वजह से मैं हमेशा बेचैन, निराश रहता हूँ। इस दुःख से बाहर निकलने के लिए और सच्चाई के रास्ते पर चलने का जो मैंने अब फैसला लिया है इस मार्ग में मुझे शक्ति देना। मन मेरा विरोध करेगा, इसे तकलीफ होगी पर आप मुझे अपने लक्ष्य तक पहुँचने की शक्ति देना।

यीशु मसीह की प्रार्थना कैसे करें?

एक मुक्त जीवन जीने की अभिलाषा सभी रखते हैं, पर इन्सान ऐसा प्राणी है जो अपने ही मन के चलाए चलता है और फिर अंततः इसी मन की वजह से दुखी भी हो जाता है। तो यीशु मसीह को अपनी प्रार्थना में याद करते हुए कहें की

हे भगवान। आप मुझे हमेशा सच्चाई के मार्ग पर लेकर चलना। जब कभी मन में मेरे लालच, आलस्य,डर जैसी कोई भी भावना आये और मुझे सही काम से डर लगने लगे, मैं विचलित होऊं मुझे याद कराना की मेरा जन्म इसी संसार में फंसे रहकर मरने के लिए नहीं बल्कि सच्चाई तक पहुंचकर मुक्त होने के लिए हुआ है।

ये जीवन कर्म भूमि है और मेरे कर्म सच्चाई को समर्पित रहें मुझे याद दिलाना। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।।

कृष्ण भगवान की प्रार्थना

वे लोग जो कृष्ण प्रेमी हैं उन्हें भगवद्गीता अवश्य पढनी चाहिए। क्योंकी वह मात्र कोई पुस्तक नहीं है बल्कि सच्चा जीवन जीने का एक जीवंत शास्त्र है। जो आज भी उतना ही उपयोगी है। अतः वे लोग जो भगवान कृष्ण से प्रार्थना कर जीवन में शान्ति और प्रेम लाना चाहते हैं उन्हें कृष्ण भगवान को याद करते हुए मन में ये शब्द कहने चाहिए।

हे प्रभु। अर्जुन को धर्म का पाठ पढ़ाकर अधर्म और पाप से उसे मुक्ति देने वाले हे कृष्ण मुझे भी सदा बुराई से दूर रखना। अर्जुन की भाँती मैं भी मोह ममता में और तमाम बन्धनों में फंसा हुआ हूँ, मेरा सर आपके यानी सच्चाई के समक्ष हमेशा झुका रहे। जीवन में एक निडरता रहे, मन में प्रेम और शांति रहे इस कामना के साथ मैं आपको प्रणाम करता हूँ।

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अंतिम शब्द

तो साथियों इस लेख को पढने के बाद भगवान् से प्रार्थना कैसे करें? इस विषय पर सच्ची और सटीक जानकारी मिल गई होगी। लेख को पढ़कर मन में अभी भी कोई प्रश्न है या सुझाव है तो बेझिझक कमेन्ट बॉक्स में सांझा करें, साथ ही लेख को सोशल मीडिया पर शेयर भी कर दें।

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