ब्रह्म क्या है? जानिये ब्रह्म प्राप्ति की पूरी विधि

वे लोग जो अध्यात्म में रूचि रखते हैं, शुरू में उनका सामना आत्मा, सत्य या ब्रह्म जैसे शब्दों से होता है पर अज्ञान की वजह से हमें इनका अर्थ मालूम नही होता। अतः आज हम ब्रह्म क्या है? बेहद आसान और सच्चे शब्दों में इसकी व्याख्या करेंगे।

ब्रह्म क्या है?

अध्यात्मिक व्यक्ति का लक्ष्य ब्रह्म में लीन होता है, अतः सच्चाई के मार्ग पर चलकर जो आत्मनिष्ठ हो जाता है उसे ब्रह्मस्थ कहा जाता है। पर दिखने में ये बात जितनी सरल और सहज दिखाई देती है इसी बात को व्यवहारिक जीवन में लोग नहीं ला पाते हैं।

अतः आपके जीवन में झूठ, तनाव, अशांति कम हो और आप सच्चाई के आनन्द के निकट आयें इसके लिए यहाँ ब्रह्म की विस्तार से व्याख्या की गई है। अतः आपसे उम्मीद की जाती है यहाँ मौजूद प्रत्येक बात को ध्यान से समझेंगे और विचारों को कमेन्ट बॉक्स में भी सांझा करेंगे।

ब्रह्म क्या है? ब्रह्म की परिभाषा

ब्रह्म से आशय सत्य से है। आँखें जिसे देख नहीं सकती, कानें जिसकी ध्वनी नहीं सुन सकती, इन्द्रियां जिसे महसूस नहीं कर सकती और मन जिसकी कल्पना नहीं कर सकता उसे ब्रह्म कहा गया है।

दूसरे शब्दों में कहें तो जो चीज़ इंसान या प्रकृति के सीमित दायरे के पकड़ में नहीं आ सकती, जो अनंत है, असीम है उस निराकार सत्य को ही ब्रह्म कहकर परिभाषित किया जा सकता है।

अतः जब ब्रह्म के सीधे तौर पर दर्शन नहीं हो सकते और न उसको कल्पित किया जा सकता है तो ऋषियों ने फिर कहा की इन्सान को ब्रह्म यानि सत्य के बारे में रूचि रखकर कोई लाभ नही होगा।

अगर आपको अपने ही जीवन में दुःखों से, भ्रम से मुक्ति पानी है और आनदं की तरफ आना है तो आपको सत्य की नहीं झूठ को देखना होगा। आपके जीवन में जो कुछ भी ऐसा है जो सत्य जैसा प्रतीत होता है पर है झूठ, उसी को आपको अपनी जिन्दगी से निकालना होगा।

इसलिए सत्य की ब्रह्म की कुछ विशेष बात नहीं की जा सकती। नहीं इसकी पूजा की जा सकती है, क्योंकि उसका ध्यान करने के लिए भी मन में कोई छवि या नाम होना चाहिए न। पर सत्य का कोई रंग, रूप आकार नहीं है इसलिए ब्रह्म से प्रार्थना करनी भी है तो बस मौन रहना उचित होगा।

ब्रह्म की जरूरत क्या है?

प्रश्न उठता है जब ब्रह्मा की कोई छवि नहीं, कल्पना नही तो फिर ब्रह्म शब्द की मानव को आवश्यकता ही क्यों पड़ी?

क्योंकि हमारे जीवन में दुःख, असत्य मौजूद है उसी झूठ को मिटाने के लिए और आपको आनंद की तरफ ले जाने के लिए ही सत्य की आवश्कता बढ़ जाती है।

चलिए व्यवहारिक  जीवन में ब्रह्म की उपयोगिता को हम एक उदाहरण के माध्यम से समझते हैं। मान लीजिये आपके घर में मौजूद कोई कीमती वस्तु है, जिसे खोने का डर आपको अक्सर सताता है। और इसकी वजह से आपको दिन रात अशांत और बेचैन होना पड़ता है।

तो ऐसी स्तिथि में अब यदि आप इस बेचैनी भरी हालत से बाहर आना चाहते हैं तो एकमात्र उपाय यही है की आप उस वस्तु को किसी ऐसे के हवाले कर दें जिससे आपको उस बारे में सोचना न पड़े।

दूसरा सम्भव हो तो आप उसे घर से ही निकाल दें। हालाँकि ऐसा करना थोडा कठिन होगा क्योंकि हो सकता है आपको वो चीज़ भा गई हो और अब आपको उससे मोह भी हो गया हो।

अब अध्यात्म कहता है मोह, लगाव,आसक्ति सभी झूठी हैं। मात्र आत्मा सत्य है।  अगर आप मोह को त्याग दें तो तुरंत आपको बेचैनी का समाधान मिल जायेगा।

लेकिन हम माया के जाल में इस तरफ फंसे होते हैं, हमें अपने मोह के कारण जो चीज़ दुःख देती है। उसी को हम सत्य मान लेते हैं और चाहते हैं हमारा मोह भी बना रहे और वो कीमती चीज़ भी बची रहे और हमें कोई चिंता भी न हो, पर ऐसा नही हो सकता या तो मोह रहेगा या सत्य।

अब आप देख लीजिये जीवन में किन चीजों से आपको मोह है, जिनकी वजह से आपको दुःख, बेचैनी, मजबूरी के भाव में जीना पड़ता है, आज ही उस मोह को झूठ मानकर सत्य की तरफ जाइए।

पूर्ण ब्रह्म क्या है?

ब्रह्म ही स्वयं में पूर्ण है, न उसमें आप अतरिक्त जोड़ सकते हैं न उसमें कुछ घटाया जा सकता है। जिस प्रकार कोई बात सच्ची है तो हम पूरी सच्ची है कहने की बजाय यह कहते हैं मात्र सच्ची है उसी तरह ब्रह्म का दूसरा नाम सत्य है अतः उसके अपूर्ण होने की कोई संभावना नहीं होती।

इंसान की चेतना/मन अपूर्ण होती है, जो इधर से उधर शान्ति पाने के लिए भटकती है। हमारा मन अपूर्ण होता है जो कर्म इसलिए करता है ताकि उसे पूर्णता मिल जाये, उसका खालीपन मिट जाए।

पर दुर्भाग्य से मनुष्य अपने अज्ञान की वजह से हमेशा गलत जगहों पर ही पूर्णता पाने का प्रयास करता है, जैसे कोई बीमार व्यक्ति अपनी बीमारी का उपचार डॉक्टर से करवाने की बजाय शराब पीकर थोड़ी देर के लिये राहत पाने में करता है।

अब ऐसा करने से निश्चित रूप से उसे थोड़ी देर के लिए तृप्ति मिल जाएगी क्योंकि वो अपनी होश में नहीं रहेगा अतः बीमारी से जो दर्द उत्पन्न हो रहा था वो बंद हो जायेगा। इसी तरह हमें नहीं मालूम हम बेचैन क्यों है? और कैसे हम अपनी बेचैनी से शांति पा सकते हैं।

अतः हम कई तरह के फ़ालतू के काम करते हैं, कोई कुछ खरीदकर उस तृप्ति को मिटाना चाहता है तो कोई घूमकर, पर कुछ समय की तृप्ति के बाद मन फिर बेचैन हो जाता है।

लेकिन जब व्यक्ति ब्रह्म में लीन हो जाता है अर्थात जो आत्मनिष्ठ हो जाता है उसके जीवन में वो बेचैनी, अतृप्तता मिट जाती है अब उसे खुश होने केलिए आनन्दित रहने के लिए संसार की तमाम चीजों की तरफ भागना नहीं पड़ता।

क्योंकि वो आत्मा के चलाए जीवन जीता है अतः वह आनंदित रहता है, याद रखें आनन्द ही आत्मा का स्वभाव है, तो दुःख, तनाव से बचना है तो मन के कहने पर नहीं आत्मा के कहने पर जीवन जिए।

ध्यान दें इसका यह अर्थ कदापि नही की वह सन्यास धारण कर लेता है, बल्कि जो इन्सान यह जानकार की इस दुनिया में क्या करना सही है? जिससे लोगों की भलाई होती है, उस काम को वह सत्य, आत्मा मानकर करता है उसे ही ब्रह्मा में लीन माना जा सकता है।

 ब्रह्म और ईश्वर में क्या अंतर है?

आमतौर पर हमें ईश्वर, भगवान या सत्य दोनों एक जैसे प्रतीत होते हैं, परन्तु अध्यात्म और उपनिषदों का अध्ययन करने पर आप पायेंगे की मन, प्रकृति और आत्मा इन तीनों के अतरिक्त वहां कुछ नहीं है।

हम जब कहते हैं की कोई ईश्वर या देवता हैं जो हमारी रक्षा करते हैं, तो हम सोचते हैं कोई है आकाश में या कहीं पर जो सबसे बड़ा है, जिसकी अनुकम्पा से ये पूरा विश्व जीवत है।

पर आप हिन्दू धर्म के शीर्षतम ग्रन्थ उपनिषद और वेदांत की मानें तो वहां पर साफ़ साफ़ कहा गया है जो कुछ भी मनुष्य की इन्द्रियां देख सकती हैं, महसूस कर सकती हैं यहाँ तक की मन जिस भी विषय का या द्रश्य का विचार कर सकता हो वह सब प्रकृति के क्षेत्र में आता है।

अतः जिन देवताओं का हम स्मरण करते हैं चूँकि मन ही है जो उनकी कल्पना करता है, अतः वेदांत में ईश्वर और मनुष्य दोनों को प्रकृति के क्षेत्र में रखा गया है, हालाँकि देवता अपने महान कार्यों की वजह से मनुष्य से श्रेष्ठ जरुर हैं पर हैं तो दोनों ही प्रकृति के क्षेत्र में।

मात्र आत्मा ही है जो प्रकृति से आगे की है, प्रकृति से परे है, ऊँचा है जिसे प्रकृति का पितामह कहा जा सकता है, अतः उसी को सत्य, परमात्मा, शिव जैसे नाम दिए गए हैं।

इससे आप समझ सकते हैं की सभी देवता या ईश्वर हमारे लिए एक माध्यम हैं जिससे हम ब्रह्म तक पहुँच सके। राम का जीवन पूजनीय है क्यों? क्योंकि वो एक महान राजा थे और उनके पास अलौकिक शक्तियाँ थी?

नहीं राम पूजनीय हैं क्योंकि उनका जीवन हमें सच्चाई के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है, और सत्य यानि आत्मा दोनों एक ही हैं अतः जो व्यक्ति जीवन में मन के कहने पर नहीं बल्कि सच्चाई के कहने पर जीवन जीता है वो फिर जीते जी सभी दुखो से आजाद होकर आत्मा में लीन हो जाता है।

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अंतिम शब्द

तो साथियों इस लेख को पढने के पश्चात ब्रह्म क्या है? इसकी सरल और स्पष्ट व्याख्या इस लेख में आपको देखने को मिली होगी। हमें आशा है यह लेख आपके लिए उपयोगी साबित होगा, और वे लोग जो जीवन में आनन्द का रस पीना चाहते हैं या जिनकी अध्यात्म में रूचि है उन लोगों को यह लेख शेयर कर इस सच्चाई को जरुर पहुंचाएं।

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