गीता और महाभारत में क्या अंतर है? दोनों में फर्क और विशेषताएं

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कुरुक्षेत्र की भूमी में जहाँ महाभारत जैसा धर्म युद्ध हुआ तो वहीँ इसी रणभूमि में श्री कृष्ण ने अर्जुन को श्रीमदभगवद गीता का दिव्य ज्ञान दिया। ऐसे में प्रश्न आता है की गीता और महाभारत में क्या अंतर है?

गीता और महाभारत में अंतर

महाभारत के युद्ध की गाथा और गीता का उपदेश हजारों वर्षों से आज भी अमर है, हालाँकि इस बात में कोई दो राय नहीं अर्जुन की भाँती गीता का वास्तविक संदेश कुछ ही लोगों तक पहुँच पाया है।

जिसकी एक बड़ी वजह है अज्ञानता, हमारे पाठ्यक्रमों (सिलेबस), शैक्षिणक संस्थानों में गीता के अध्ययन को वह महत्वता नहीं दी गई, जिसके वह लायक है।

फलस्वरूप कई लोग जो एक हिन्दू, सनातनी होने का दावा करते हैं उनमें से अधिकांश लोगों को महाभारत और गीता के उपदेश के बीच सम्बन्ध का कोई ज्ञान नहीं है।

अतः आज हम आपको वे सभी प्रमुख कारण बतायेंगे जो गीता और महाभारत के ज्ञान के अंतर को हमारे समक्ष लाते हैं।

गीता और महाभारत में क्या अंतर है?

महाभारत और श्रीमदभगवद गीता के बीच अंतर

1.       महाभारत धर्मयुद्ध है।  श्रीमदभागवत गीता उपदेश है।
2.       महाभारत कौरव पांडव के बीच लड़ा गया युद्ध है। गीता, कृष्ण और अर्जुन के बीच का संवाद है।
3.       महाभारत दो सेनाओं के बीच लड़ा गया युद्ध है। गीता हमारे ही अंतर्जगत का युद्ध है।
4.       महाभारत राज्य का अधिकार पाने की लड़ाई है। जबकि गीता झूठा और अधर्म के खिलाफ लड़ाई है।
5.       महाभारत एक समय विशेष में लड़ा गया युद्ध है। जबकि गीता कालातीत है, जिसका उपदेश आज भी प्रासंगिक है।
6.       महाभारत के युद्ध में कृष्ण साकार हैं। जबकि गीता में कृष्ण, आत्मा स्वरूप हैं।
7.       महाभारत सगे सम्बन्धियों के बीच लड़े जाने वाला युद्ध है। जबकि गीता अर्जुन के अपने मोह, अज्ञान, आसक्ति के प्रति लड़ाई है।
8.       महाभारत की लड़ाई अस्त्र शास्त्र और दुनिया पर विजय पाने की है। श्रीमदभगवद गीता मन पर विजय पाने का युद्ध है।

 

महाभारत के युद्ध की कहानी हमें बतलाती है की किस प्रकार दुर्योधन के उग्र और लालची स्वभाव ने उसे इतना अधर्मी और पापी इन्सान बना दिया जिसने अपने भाइयों के अधिकारो को भी नजरंदाज कर दिया।

जुए में शर्त हारने के पश्चात जब पांडव 12 साल वनवास में बिताने के बाद अपने हक की भूमि दुर्योधन से मांगते हैं तो दुर्योधन उन्हें एक गाँव तो क्या एक सुई की नोक जीतनी जमीन देने को तैयार नही हुआ।

अतः जब मामला बातों से नही सुलझ पाया तो कौरव और पांडवों के बीच युद्ध की स्तिथि आ गई, यह युद्ध इतना विशेष था की इसमें शत्रु किसी दूसरे देश के राजा या डाकू नहीं थे, बल्कि अपने ही भाई थे।

अतः महाभारत का यह युद्ध सगे भाई बंधुओं और प्रियजनों के बीच हुआ जिसमें एक पक्ष 100 भाइयों के साथ कौरव था जबकि दूसरे खेमे में 5 भाई थे। अतः अपने अधिकारों के लिए मजबूरी वश पांडवों द्वारा कौरवों के साथ की गई लड़ाई को महाभारत का युद्ध कहकर संबोधित किया गया।

अब जानते हैं इस युद्ध में श्रीमदभगवद गीता की क्या भूमिका रही।

इस धर्मयुद्ध का होना आसान नहीं था, क्योंकी एक तरफ 100 भाई और उनकी बलशाली सेना तो दूसरी तरफ सच के लिए लड़ने वाले मात्र 5 भाई। पर फिर भी युद्ध करने का फैसला हो चुका था और यह तय था की दोनों भाईयों के दल में से किसी एक को राज्य तो किसी को हार मिलेगी।

अतः युद्ध शुरू होने से ठीक पहले धनुर्धारी अर्जुन अपने सारथी श्री कृष्ण को अपने रथ को दोनों सेनाओं के बीच में ले जाने को कहते हैं।

दोनों सेनाओं को करीब से देखने और इस युद्ध के परिणाम से अपने गुरु, भाइयों और अपने कुल के नाश के बारे में सोचते हुए अर्जुन कांप जाते हैं और युद्ध न करने का फैसला करते हैं।

लेकिन यही से श्री कृष्ण अर्जुन की इस हालत को समझते हैं और दोनों के बीच लम्बी बातचीत होती है, और इसी बातचीत का परिणाम रहा की अर्जुन के मन में हिम्मत आती है और वह इस धर्म युद्ध को करने के लिए तैयार खड़े होते हैं।

और इस तरह अर्जुन और श्री कृष्ण के बीच हुई इस रोचक और बेहद उपयोगी बात का वर्णन श्रीमदभगवद गीता में है।

गीता में अर्जुन और श्री कृष्ण के इस संवाद में कुल 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं इसलिए हर भारतीय गीता में अर्जुन को कही गई इन विशेष बातों का सम्मान देने के लिए गीता को पूजता है?

✔  जानिए श्रीमदभगवद गीता में क्या लिखा है?

महाभारत और श्रीमदभगवद गीता के बीच 8 प्रमुख अंतर

#1. महाभारत कौरव नामक 100 भाइयों और 5 पांडवों के बीच लगभग 3000 वर्ष पूर्व लड़ा गया एक धर्म युद्ध है। जिसमें अंततः पांडवों की जीत होती है। जबकि भगवद गीता श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया वह दिव्य ज्ञान है जिसने युद्ध से भाग खड़े होने का फैसला कर चुके अर्जुन को धर्म के लिए लड़ाई करने के लिए आत्मबल दिया।

#2. महाभारत का युद्ध कौरव और पांडव के बीच हुए जिसमें दोनों ही दलों का मकसद एक दूसरे पर विजय प्राप्त करना था, इस लड़ाई में श्री कृष्ण अर्जुन के रथ के सारथी बनकर अर्जुन के साथ खड़े होते हैं।

जबकि दूसरी तरफ श्रीमदभगवद गीता अर्जुन और कृष्ण के बीच के संवाद के रूप में इस महान लड़ाई का एक भाग है। दोनों के बीच यह बातचीत इतनी विशेष है की गीता आज भी हम सभी के दिलों में सम्मान के काबिल है।

#3. महाभारत के युद्ध को जीतने के लिए विभिन्न प्रकार के हथकंडे दोनों दलों द्वारा अपनाये गए, इस युद्ध में जहाँ एक तरफ कुशल युद्धनीति देखने को मिलती है, खून और भयंकर चीक पुकारें सुनाई देती हैं।

वहीँ दूसरी तरफ गीता का उपदेश हमें बताता है की भले ही हमारे पास कवच, रथ और शस्त्र नहीं है पर आज भी झूठ और सच्चाई की यह लड़ाई हमारे भीतर हर पल चलती है।

कई मौके ऐसे आते हैं जब हमारा मन सही काम को न कहकर आलस, मोह की वजह से हम अधर्म के रास्ते पर चलने लग जाते हैं। इसलिए इस मन को गलत जगह पर झुकने से अगर रोकना है और एक साफ़ सुथरी, निडर जिन्दगी जीनी है तो गीता को हमें हाथों में रखना ही होगा।

#4. देखने पर मालूम होता है की महाभारत अपने ही अधिकारों को पाने की लड़ाई है, जिसमें युद्ध जीतना ही अर्जुन का लक्ष्य था ताकि जो सुख सुविधाएँ कौरव भोग रहे थे।

वैसा ही जीवन पांडव भी जियें, लेकिन गीता का संदेश हमें लड़ाई जीतकर सुख भोगने का संदेश नहीं देता, अपितु गीता हमें अन्याय और झूठ के विरुद्ध लड़ाई लड़ने की प्रेरणा देती है।

फिर चाहे उस लड़ाई में हमें हार मिले या जीते, उससे फर्क नहीं पड़ता। अंतर केवल इस बात से पड़ता है की हमने सही लड़ाई लड़ी है या नहीं।

#5. महाभारत का युद्ध बीते हजारों वर्ष हो चुके हैं, यदि हम भारत के पिछले 1 हजार वर्षों के इतिहास को देखें कई देशों से युद्ध हुए और उसमें हमें हार भी मिली। लेकिन महाभारत का युद्ध ख़ास है क्योंकि इस युद्ध से हमें गीता मिली और श्री मदभगवद गीता का यह संदेश आज भी हमारे लिए उतना ही विशेष और उपयोगी है जितना वह पहले था।

आज भी युद्ध हमारे चारों ओर चल रहा है जिस तरह पहले कौरवों के रूप में लालची, कपटी और पैसे और सत्ता का लालच था उसी तरह के लोग आज भी हमारे जीवन में मौजूद हैं इसलिए गीता का ज्ञान आज भी प्रासंगिक है।

#6. महाभारत के युद्ध में कृष्ण का अर्जुन से भाई और मित्र का गहरा सम्बन्ध है, अतः इस युद्ध में अर्जुन की इस लड़ाई में श्री कृष्ण खुद सारथी बनकर अर्जुन के रंथ का संचालन कर रहे हैं और उन्हें मार्गदर्शन दे रहे हैं।

इसलिए यहाँ हमें कृष्ण साकार यानी एक अवतार के रूप में दिखाई देते हैं। लेकिन गीता का ज्ञान मन और आत्मा के समबन्ध में है इसलिए भले कृष्ण साकार रूप में अर्जुन को यह ज्ञान दे रहे हो लेकिन उनका यह ज्ञान आत्मा के प्रकाश के रूप में हमारे भीतर के अन्धकार को मिटाता है।

#7. महाभारत के युद्ध में सभी सगे सम्बन्धी शामिल हैं एक तरफ पितामह भीष्म हैं, गुरु द्रोणाचार्य हैं तो दूसरी तरफ 100 भाई हैं, ऐसी विकट परिस्थति में अपने लाभ के लिए किसी पर शस्त्र चलाना कोई सरल बात नहीं।

दूसरी तरफ गीता हमें बताती है की धर्म से बड़ा कुछ नही है, कृष्ण अर्जुन से कहते हैं हे पार्थ, अपने मोह और अज्ञान और लगाव की वजह से तुम धर्म से दूर होकर अधर्म के साथ मत जाओ। और हमारे जीवन में भी अक्सर हम मोह, लालच, और अज्ञानता की वजह से कई ऐसे फैसले लेते हैं जिससे जिन्दगी में अधर्म को बढ़ावा मिलता है।

#8. महाभारत की लड़ाई में जहाँ दोनों दलों में हजारों की संख्या में शस्त्रों से सुशोभित सैनिक हैं, जो एक दूसरे की मौत के प्यासे हैं।

जबकि दूसरी तरफ गीता का अर्जुन और हमारे जीवन से सीधा सम्बन्ध है। हम सभी एक अर्जुन हैं जो जीवन में कुछ सही करना तो चाहते हैं पर आलस, अपनों का मोह और डर, लालच इत्यादि हमारे मन पर हावी रहते हैं जिससे हम अधर्मी और पापी जीवन जीने का चुनाव करते हैं।

 

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अंतिम शब्द

तो साथियों इस लेख को पढने के पश्चात गीता और महाभारत में क्या अंतर है? भली भांति समझ चुके हैं, ऐसे ही धर्म सम्बन्धी अन्य विषयों को स्पष्टता से जानने के लिए आप धर्म श्रेणी के अन्य लेखों को चेक कर सकते हैं।

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