वेदांत को विश्व के अनूठे और उच्चतम दर्शनों की श्रेणी में सबसे ऊपर रखा जाता है, पर सवाल आता है यह अद्वैत वेदांत क्या है? और ये बाकी दर्शनों से ख़ास कैसे है?
जब बात होती है दर्शन की तो पूरी दुनिया में वैदिक दर्शन का स्थान हमेशा से ही विशेष रहा है क्योंकि इसमें वेदों का ज्ञान समाया हुआ है। और इसी का गहरा सम्बन्ध वेदांत से भी है।
वेदांत दर्शन विश्व में अनूठा रहा है, जिसका लाभ कई सारे वैज्ञानिकों, बुद्धिजीवियों ने लेकर इसकी तारीफ़ भी की है।
तो आइये जरा बारीकी से वेदांत और अद्वैत दोनों शब्दों का अलग अलग अर्थ जानते हुए दोनों शब्दों को एक ही सूत्र में समझते हैं।
वेदांत क्या है? वेदान्त और अद्वैत का गहरा सम्बन्ध!
वेदान्त एक दर्शन है, जो वेदों पर आधारित है। वेद भारतीयों के सबसे प्राचीनतम और सबसे उच्चतम ग्रन्थ हैं।
वेदों के भी दो भाग हैं एक भाग है कर्मकांड का जिसमें सभी धार्मिक क्रियाएं जैसे यज्ञ, हवन, पूजा पाठ इत्यादि के बारे में बताया गया है।
लेकिन वेदों का ही एक दूसरा भाग भी है जिसे ज्ञानकाण्ड कहा गया है, और इसी ज्ञानखंड को वेदांत के रूप में जाना जाता है।
देखिये जिस तरह हर धर्म एक दर्शन पर चलता है। जैसे सिक्ख धर्म का दर्शन अगर समझना है तो आपको गुरु ग्रन्थ साहिब पढना होगा, मुसलमानों का कुरान और इसाईयों का दर्शन बाइबल में निहित है।
अतः वेदान्त हिन्दुओं का पूजनीय दर्शन है। हालाँकि यहाँ समझना जरूरी है की बहुत सारे हिन्दू जो स्वयं को धार्मिक कहते हैं उन्हें वेदांत दर्शन का कुछ ख़ास पता नहीं है।
और इस बात का प्रमाण ये है की वेदान्त दर्शन उतना कभी लोकप्रिय नहीं हो पाया जितना की यह हकदार था। उसके पीछे प्रमुख कारण यही था की बाकी अन्य धर्मों की एक ख़ास पुस्तक होती है जिसमें लिखी बातों पर वे भरोसा करते हैं।
पर हिन्दू धर्म में वेद तो हैं ही लेकिन इसके अलावा भी हजारों की संख्या में धार्मिक पुस्तकें हैं। ऐसे में जो सबसे प्रमुख पुस्तक (वेद) थी उस पर लोगों का ध्यान ही नहीं गया।
पीढ़ी दर पीढ़ी लोग धर्म पर विश्वास कर रहे थे पर जो सच्चा, असली धार्मिक ज्ञान जो वेदांत में निहित था उससे वह दूर हो रहे थे।
खैर अगर आज भी आप वेदांत को बारीकी से समझना चाहते हैं तो आप यह विडियो देखें।
अब वेदांत के बारे में थोड़ी सी जानकारी हासिल करने के बाद अब सवाल आता है की अद्वैत क्या है? और वेदांत का अद्वैत के साथ क्या सम्बन्ध है?
द्वैत क्या है?
द्वैत का अर्थ है दो का होना, दो सिरे।
अर्थात ये मान लेना की मैं हूँ और ये संसार है ये द्वैत है। क्योंकि एक बार आपने खुद को इस संसार से अलग देखना शुरू कर दिया तो अब आप अपनी शांति संसार में खोजोगे।
लेकिन ऋषि, ज्ञानी तो कह रहे हैं की प्रेम, शांति, सुकून तो मनुष्य के भीतर है, वो कहीं बाहर नहीं मिल सकता! पर जब आप ये सोच लेते हैं की मैं और दुनिया अलग अलग हैं तो फिर अब आप दुनिया में वो खोजने लगते हैं जो दुनिया में मिल ही नही सकता।
आप कहते हैं की मैं बेचैन हूँ तो मुझे शांति इस दुनिया से मिलेगी! उदाहरण के लिए बहुत से लोग सोचते हैं की जिन्दगी में जो उनकी टेंशन है, बेचैनी है उसका समाधान है पैसा।
तो वे लोग दुनिया में सुकून ढूंढते हैं पैसे कमाने में, पर मजेदार बात ये है की जितना इन्सान पैसा कमाता है उतना और ज्यादा व्याकुल हो जाता है।
इसलिए जानने वालों ने समझाया की जिस चीज की तलाश में हो वो तुम्हें दुनिया में नहीं मिलेगी, मौको कहाँ ढूढे रे बन्दे मैं तो तेरे पास।
माने परमात्मा, माने सच्चाई, शान्ति कहीं और नहीं वो तो भीतर ही है पर चूँकि अधिकतर लोग ये बात नहीं समझते वो लोग फिर मजबूर हो जाते हैं दुनिया के सामने भिखारी बनने के लिए।
वो दुनिया में कभी एक चीज के पीछे भागते हैं तो कभी किसी और विषय के पीछे परन्तु उन्हें कहीं भी चैन नहीं मिल पाता! अगर आप ध्यान से देखें तो ये द्वैत के कारण ही सम्भव हो पाया है।
द्वैत और अद्वैत में अंतर
मनुष्य को लगता है की द्वैत ही सच है यानि की उसे लगता है हम अधूरे हैं और बाहर किसी वस्तु या विषय को पा लेने से हम पूरे हो जायेंगे। ये द्वैत है।
जबकि अद्वैत कहता है की जिसे तुम मेरी दुनिया, मेरा संसार कहते हो वो तो सत्य नहीं है माने स्थाई नहीं है। इस संसार में तो जो कुछ भी तुम्हारी इन्द्रियां आँखें देख रही हैं, जो कुछ भी तुम्हें महसूस हो रहा है वो सब मिट जायेगा।
इन्सान का शरीर मिट जायेगा, विचार मिट जायेंगे, प्रकृति में जो चीज बाहरी है, भौतिक है वो सब मिट जाएगी या बदल जाएगी! तो अद्वैत कहता है की यहाँ तो कुछ भी ऐसा नहीं है जिसपे भरोसा किया जा सके। मात्र सत्य है जो हमेशा था, है और रहेगा!
इसलिए अद्वैत कहता है मात्र सत्य है, और सब मिथ्या है ये वास्तव में अद्वैत है।
अद्वैत वेदांत क्या है?
वेदांत दर्शन का एक हिस्सा है अद्वैत वेदान्त। जिसके विकास और प्रचार प्रसार का श्रेय आदि शंकराचार्य जी को जाता हैं। जिनके अनुसार ब्रह्म यानी आत्मा सत्य है और संसार मिथ्या है।
अद्वैत दर्शन के महावाक्य के इस श्लोक के मुताबिक़ जीव ही वास्तव में ब्रह्म है और इसके अलावा सब मिथ्या है। आत्मा मात्र है जो सत्य है उसके अलावा मन, इन्द्रियां और उनसे दिखाई देने वाला ये सम्पूर्ण संसार सब झूठा है।
अगर आपने अद्वैत क्या है? ऊपर समझा होगा तो आपको मालूम होगा की अद्वैत दर्शन मात्र सत्य के होने की बात स्वीकारता है इसके सिवा जगत में जो कुछ भी है उसे नकारता है।
अद्वैत वेदान्त में ईश्वर, भगवान से ऊपर का स्थान सत्य को दिया गया है। सत्य ही अटल है, अजर है, अविनाशी है मात्र सब कुछ प्रकृति में विनाशी है यह कहकर जगत को मिथ्या कहकर सम्बोधित किया गया है।
अब आपके मन में यदि ये प्रश्न है की जगत मिथ्या है? संसार झूठा है ये क्यों कहा गया है? तो इसका जवाब यही है की भीतर आपके जो अहंकार है जिसे लगता है ये दुनिया सच्ची है।
आप उसी अहंकार से पूछिए जिसे आप सच्चा मान रहे हैं देखिये तो सही क्या वो वस्तु कभी परिवर्तित नहीं होगी। उदाहरण के लिए आपको लगता है पैसा पाना ही जीवन का सबसे बड़ा सुख है।
तो पैसा पाकर देख लीजिये। आप पाएंगे जितना पैसा आप कमा रहे हैं, और उससे जितनी इच्छाएं पूरी कर रहे हैं, वो इच्छाएं और बढ़ रही हैं।
इसी तरह दुनिया में बहुत कुछ ऐसी चीज़ें हैं जिनके बारे में समाज और दुनिया हमें बताती हैं की ये सच्ची हैं। लेकिन उन्हें पाने पर आपको मालूम हो जाता है की ये सच नहीं है। इस तरह आपका अहंकार झूठा साबित हो जाता है।
अतः आपके मन में संसार की जितनी भी कल्पनाएँ हैं वो सभी नष्ट होती रहती हैं, उनमें बदलाव आता रहता है। कोई भी चीज़ संसार में अपरिवर्तनीय नहीं इसलिए जगत को मिथ्या कहा गया है।
द्वैत, अद्वैत, विशिष्टाद्वैत में अंतर
द्वैत | अद्वैत | विशिष्टाद्वैत |
जब मनुष्य खुद को, इस संसार को और सत्य (जीव, जगत और ब्रह्म) को अलग अलग देखता है तो इसी मान्यता को द्वैत अथवा द्वैतवाद कहा जाता है। | आचार्य शंकर के अद्वैत सिद्धांत के अनुसार मात्र सत्य है, इसके अलावा सब भ्रम है, मिथ्या है। इसी को अद्वैतवाद भी कहकर सम्बोधित किया गया है। | विशिष्टाद्वैत का सिद्धांत आचार्य रामानुज द्वारा 1017-1137 ईं के बीच प्रतिपादित किया गया था। |
द्वैत के अनुसार जीव भी है और संसार भी है। और साथ ही कोई ब्रह्म, ईश्वर भी है जिसकी शक्ति से ये पूरा विश्व चल रहा है। | अद्वैत कहता है की प्रकृति माने जगत में सबकुछ परिवर्तनशील है, इसलिए प्रकृति को सत्य नहीं माना जा सकता। मात्र ब्रह्म यानी सत्य है उसके सिवा कुछ नहीं। | विशिष्टाद्वैत का सिद्धांत स्पष्ट रूप से ये कहता है की ब्रह्म सत्य है, परन्तु जगत मिथ्या नहीं। जो कुछ भी हमारी इन्द्रियां देख रही हैं, अनुभव हो रहे हैं उसे झूठलाया नहीं जा सकता! |
द्वैत में इन्सान स्वयं को ब्रह्म अथवा ईश्वर से अलग मानकर उसकी पूजा कारता है। व्यक्ति का मूर्ती पूजना या किसी अन्य प्रतिमा के आगे सर झुकाना द्वैत है। | आचार्य शंकर के अनुसार ब्रह्म यानी सत्य का कोई रंग, रूप, आकार नहीं होता। यह सब गुणों, आकारों से परे है। इसलिए ब्रह्म को निर्गुण कहा गया है। | जबकि आचार्य रामानुज का विशिष्टाद्वैत सिद्धांत कहता है की ब्रह्म सगुण है, उसकी पूजा करना सम्भव है इसलिए उन्होंने मूर्ती पूजा पर विशेष बल दिया। |
द्वैत खुले तौर पर इस बात का समर्थन करता है की जीव और सत्य दो अलग अलग हैं, वो ये मानता है की प्रकृति, जीव और सत्य तीनों के बीच रिश्ता अलग अलग है। | आचार्य शंकर के अद्वैत सिद्धांत को पढने पर मालूम होता है की मात्र सत्य है, उसके अलावा कुछ भी ऐसा नही है जो शाश्वत हो, जो कभी मिटे न इसलिए उन्होंने संसार के होने का भी खंडन किया है। | जबकि विशिष्टाद्वैत को मानें तो वहां कहा गया है की जब इन्सान संसार की प्रत्येक चीज को महसूस कर पाता है तो फिर संसार क्यों नहीं? संसार है, माया है, दुःख है, सुख है और ये सभी विषय ब्रह्म यानी सत्य के ही अलग अलग रुप हैं। |
द्वैत कहता है मन है और ये संसार है। और संसार को अपनी इच्छा पूर्ती का साधन मानकर इस दुनिया से कुछ पाने की कामना करना ही द्वैत है। | अद्वैत कहता है की सब कुछ मन का विस्तार है, जो कुछ भी दुनिया में अच्छा या बुरा भासित हो रहा है ये सब मन का खेल है इसमें कोई सत्य नहीं है। | विशिष्टाद्वैत कहता है की जब सत्य है तो फिर सुख, दुःख, अच्छा बुरा, ये सब भी हैं और ये सभी सत्य की ही शाखाएँ हैं। अन्य शब्दों में कहें तो विशिष्टाद्वैत मानता है की सबकुछ ब्रह्म से उद्भूत हैं। |
अद्वैत सिद्धांत के अनुसार परम तत्व कौन सा है?
अद्वैत सिद्धांत में मूल तत्व ब्रह्म यानी सत्य है, और इसी सत्य को केन्द्रीय विषय बनाकर यह सिद्धांत किसी भी बात को स्वीकार अथवा नकारता है।
दूसरे शब्दों में कहें तो अद्वैत वेदांत ब्रह्म का उपासक है। जहाँ कहीं भी किसी भी मान्यता, विचार से अधिक सत्य को प्राथमिकता दी जाए समझ लेना चाहे वहां अद्वैत सिद्धांत लागू है।
अन्य सिद्धांत जहाँ हमें किसी मान्यता को, किसी विचारधारा को मानने के लिए प्रेरित करते हैं वहीँ दूसरी तरफ अद्वैत सिद्धांत हमें परम्पराओं से, आग्रहों से मुक्त कर किसी भी विषय का ईमानदारी से सच जानने और फिर सही निर्णय लेने में मदद करता है।
सही मायनों में देखा जाये तो जीवन में क्या सही है, क्या गलत है? ये जानने का विज्ञान है अद्वैत वेदांत। अद्वैत कहता है की संसार में जो कुछ भी तुम्हें यहाँ अलग अलग दिखाई देता है, जिस चीज को तुम अपना और पराया कहते हो।
यही तो जीवन का दुःख है, अगर तुम सभी वस्तुओं को एक ही जानो, उन वस्तुओं की आखिरी सच्चाई जान लो तो जो दुःख तुम्हें सता रहा है वो भी गायब हो जायेगा। इसलिए अद्वैत सिद्धांत में आप पायेंगे सौ तरह की व्यर्थ बातों को कोई स्थान नहीं दिया गया है।
वहां एक ही परम तत्व है, मूल तत्व है सत्य और जो व्यक्ति असल में सत्य का उपासक हो गया जान लीजिये वो धार्मिक हो गया। क्योंकि सत्य ही सनातन है। बाकी सब कुछ जो व्यर्थ है वो एक दिन मिट जाएगा।
FAQ~ अद्वैत वेदांत से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
आदि शंकराचार्य को अद्वैत वेदांत का प्रवर्तक माना जाता है।
प्राप्त जानकारियों के अनुसार सातवीं शताब्दी में दार्शनिक गौणपाद द्वारा माण्डुक्य उपनिषद पर की गई टीकाओं के पश्चात इसकी शुरुवात हो चुकी थी।
सर्वप्रथम सातवीं शताब्दी में भारतीय दार्शनिक गौणपाद जी द्वारा अद्वैत वेदांत की व्याख्या की गई, जिसे बाद में आचार्य शंकर ने आम जनमानस तक पहुंचाने का काम किया।
अद्वैत वेदांत में ब्रह्म से आशय सत्य से है।
अद्वैत सत्य है और पूरा जगत झूठ है ये अद्वैत वेदांत का मूल सूत्र है।
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अंतिम शब्द
तो साथियों हमें आशा है अद्वैत वेदांत क्या है? अब आप भली भाँती जान गए होंगे। इस पोस्ट को पढ़कर मन में कोई सवाल है तो बेझिझक आप अपने सवालों को whatsapp नम्बर 8512820608 पर पूछ सकते हैं, साथ ही लेख उपयोगी साबित हुआ है तो इसे शेयर भी जरुर कर दें।